दोस्ती एक एहसास है, एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसके सामने सारे रिश्ते-नाते छोटे पड़ जाते हैं।
Friendship Day Special : जब पिता के लिए पड़ी खून की जरुरत तो दोस्त बने फरिश्ते, जरूरत से ज्यादा इकट्ठा हो गया ब्लड
मधुलिका सिंह/उदयपुर. दोस्ती में ना शर्तें होती हैं और ना कोई समझौता…दोस्त को उसकी हर कमी के साथ कुबूल किया जाता है तो उसकी हर अच्छाई दिल की गहराई में उतर जाती है। दोस्ती एक एहसास है, एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसके सामने सारे रिश्ते-नाते छोटे पड़ जाते हैं। एक ऐसा रिश्ता जिसमें ना कोई जात-पांत का बंधन है, ना कोई धर्म का बंटाव और ना ही कोई ऊंच-नीच की गहराई है। एक ऐसा रिश्ता जो कहने को तो खून का रिश्ता नहीं होता लेकिन खून के रिश्ते से भी बढ़ा होता है। वैसे, तो हमारी जिंदगी में सभी की अहमियत होती है लेकिन एक दोस्त की जगह कोई नहीं ले सकता है। इतिहास में कृष्ण और सुदामा, कर्ण-दुर्योधन, श्रीराम-सुग्रीव की दोस्ती की मिसालें दी जाती हैं लेकिन इस डिजिटल युग में रिश्ते भी डिजिटल हो गए हैं। हाय-हैलो से लेकर बातें तक सोशल मीडिया से शुरू होती हैं तो उसी पर खत्म भी हो जाती हैं, लेकिन ऐसे में भी दोस्ती के मायने जानने वाले इसे शिद्दत से निभा रहे हैं। फ्रेंडशिप डे के खास मौके पर हम आपसे मिलवा रहे हैं कुछ ऐसे ही दोस्तों से और बता रहे हैं उनकी दोस्ती के बारे में जो मिसाल भी है-
आईएएस और आईपीएस की दोस्ती जनता के हित में उदयपुर कलक्टर आनंदी और एसपी कैलाशचंद्र बिश्नोई बैचमेट रहे हैं। दोनों 2007 के बैचमेट हैं। एसपी कैलाशचंद्र बिश्नोई ने बताया कि दोनों ने लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी, मसूरी में वर्ष 2008 में फाउंडेशन कोर्स साथ किया। इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब दोनों एक ही जगह साथ हैं। हमने कभी सोचा नहीं था कि ट्रेनिंग के बाद कभी एक ही जिले में काम करने का मौका मिलेगा, ये एक संयोग ही है। हम पहले से दोस्त हैं तो हमारे बीच अंडस्टेंडिंग अच्छी है। बैचमेट होने के नाते एक-दूसरे के साथ कंफर्ट लेवल है। एडमिनिस्ट्रेशन और पुलिस का साथ अच्छा हो तो इसका फायदा सीधे जनता को मिलता है। जो पुलिस या लॉ एंड ऑर्डर आदि से जुड़ी जनता की समस्याएं हैं उनके संबंध में उनसे बैचमेट के तौर पर आसानी से बात हो जाती है। फिर जो सब ऑर्डिनेट्स हैं उनमें भी अच्छा सामंजस्य बन जाता है। फॉर्मल मीटिंग होती रहती है और कभी दूसरे बैचमेट भी आते हैं उदयपुर तो गेट-टुगेदर कर लेते हैं। इससे फॉर्मल व इनफॉर्मल मीटिंग हो जाती है तो बॉन्डिंग बनी हुई है।
दोस्ती का रिश्ता बदला प्रेम में 28 साल पहले उदयपुर घूमने आईं फ्र ांसिस्का और दिनेश की दोस्ती हुई और वो दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि उन्होंने इस रिश्ते को शादी में तब्दील कर लिया। भटियानी चौहट्टा में मामाजी की हवेली में रहने वाले दिनेश जैन ने बताया कि फ्रांसिस्का से उनकी पहली मुलाकात वर्ष 1991 में हुई थी। उस समय वे इंडियन कल्चर पर स्टडी कर रही थीं और उदयपुर घूमने आई थीं। वे हॉलैंड से हैं। तब दोस्ती की शुरुआत हुई और दोनों अच्छे दोस्त बन गए। दोस्ती का रिश्ता करीब 8 साल चला। इतनी अच्छी दोस्ती को उन्होंने शादी के रिश्ते बांधने की सोचा और 1999 में शादी कर ली। दिनेश ने बताया कि जब डफरेंट कल्चर में शादी करते हैं तो बहुत मुश्किल आती है। लेकिन फ्र ांसिस्का ने हर चीज बड़ी आसानी से कर ली। उन्होंने हिंदी सीखी, भारतीय खाना बनाना सीखा। उनके 18 साल का एक बेटा मार्टिन किशन भी है। वे कहते हैं, अगर रिश्ते में दोस्ती होती है तो वो रिश्ता और मजबूत हो जाता है। यही हमारे रिश्ते की खासियत है कि हम जीवनसाथी से पहले अच्छे दोस्त हैं।
स्वभाव अलग लेकिन आपसी समझ पर बरसों से कायम है दोस्ती दो विपरीत स्वभाव के लोग जब दोस्त बनते हैं और उनमें घनिष्ठता होती है तो वह भी एक मिसाल बन जाती है। ऐसी ही दोस्ती है आलोक संस्थान के प्रदीप कुमावत और संजय भटनागर की। दोनों पिछले 35 वर्षों से दोस्त हैं। वे दोनों कई सालों से साथ मॉर्निंग वॉक पर जाते हैं। ये उनका नियम है। भटनागर ने बताया कि वे भारतीय जीवन बीमा निगम में विकास अधिकारी के पद पर काम करते हैं, उनकी प्रदीप कुमावत से दोस्ती कॉलेज के समय से है। वे दोनों कॉलेज में साथ ही पढ़ते थे। दोनों स्वभाव में अलग हैं लेकिन उनकी दोस्ती आपसी समझ पर टिकी हुई है। वे एक-दूसरे के दुख-सुख में हमेशा साथ खड़े रहते हैं। दोनों ही हंसने-हंसाने और ठहाके लगाने का कोई अवसर नहीं चूकते हैं। यहां तक कि दोनों के परिवारों में भी उतनी ही प्रगाढ़ता है। वे कहते हैं, आज जमाना बदल गया है और सब कुछ सोशल मीडिया पर होता है। लेकिन सच्ची दोस्ती सोशल मीडिया पर नहीं बनती इसे प्यार और आपसी समझ की खाद चाहिए होती है।