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दोस्‍ती की म‍िसाल हैं ये र‍िश्‍ते, क‍िसी ने पर‍िवार को बनाया दोस्‍त तो कोई दोस्‍त ही बना जीवनसाथी

locationउदयपुरPublished: Aug 03, 2020 09:33:34 pm

Submitted by:

madhulika singh

आज जब हम कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं और पहले लॉकडाउन का दौर भी देख चुके हैं तो इस दौरान रिश्तों की अहमियत समझ आ गई है। ना केवल परिवार की बल्कि दोस्तों की भी।

International Friendship Day 2020: History, importance

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उदयपुर. किसी ने सही कहा है…दोस्तों से दोस्ती रखा करो, तबीयत मस्त रहेगी, ये वो हकीम हैं जो अल्फाज से दुरुस्त किया करते हैं । दोस्त कुछ ऐसे ही हैं जिनका साथ और दो प्यार भरे शब्द से ही जादू सा असर हो जाता है। आज जब हम कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं और पहले लॉकडाउन का दौर भी देख चुके हैं तो इस दौरान रिश्तों की अहमियत समझ आ गई है। ना केवल परिवार की बल्कि दोस्तों की भी। दोस्त परिवार का सदस्य भी हो सकता है और एक दोस्त परिवार का सदस्य बन भी सकता है। दोस्ती के रंग कई हैं, फ्रें डशिप डे के खास मौके पर कुछ ऐसे ही दोस्ती के रंग बताती ये रिपोर्ट-

जब पे्रग्नेंट थी तब दोस्त ने परिवार से भी बढकऱ रखा ख्याल

राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की प्राचार्य शीला शर्मा की मित्रता तनुजा भट्ट से 40 सालों से हैं। शीला बताती हैं कि तनुजा और वे जयपुर में स्कूल में साथ थे। इसके बाद वे उदयपुर आ गई और उनकी शादी जयपुर हो गई, जबकि तनुजा की शादी उदयपुर हो गई। वे दो साल जयपुर रही और फिर उनके पति का ट्रांसफर भी उदयपुर ही हो गया तो यहां भी दोनों सहेलियां फिर से साथ हो गईं। दोनों की सरकारी नौकरी लग गई। करीब 27 साल से दोनों एक ही विद्यालय में हैं। शीला कहती हैं कि जब मैं प्रेग्नेंट थी तब परिवार ने जितना साथ नहीं दिया, उतना ध्यान तनुजा ने रखा जैसे मां अपने बच्चे का ध्यान रखती है। वो दिन मैं आज भी भूल नहीं सकती।
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जो अच्छे दोस्त होते हैं, वे अच्छे जीवन साथी भी
एमबी अस्पताल में कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुशील यादव और उनकी पत्नी गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शालिनी की मुलाकात एमबीबीएस करने के दौरान हुई थी। वे बैचमैट थे। दोस्त से वे बाद में जीवन साथी बन गए। डॉ. सुशील बताते हैं कि वे मूलत: उत्तरप्रदेश से हैं। बीएचयू में साथ थे। जो अच्छे दोस्त होते हैं। वे अच्छे जीवन साथी भी साबित होते हैं। डॉ. शालिनी एमबीबीएस और एमएस गायनेकोलॉजी में टॉपर थीं और सुपर स्पेशिलिटी में कॉर्डियोलॉजी में मेरे चयन का श्रेय पूरी तरह से उनको ही जाता है। एक सही दोस्त आपकी काबिलियत समझकर हमेशा आपको आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
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पेंटिंग सीखने क्लास में आई और बन गई जीवनभर की दोस्त

टीचर संतोष डाबी बताती हैं कि वर्ष 2006 में वे चैन्नई रहती थीं तब पेंटिंग की क्लासे लिया करती थीं, तब उनकी क्लास में स्टूडेंट के रूप में मनीषा रास्कर भी आईं। लेकिन, वे स्टूडेंट से कब उनकी पक्की दोस्त बन गई उन्हें पता ही नहीं चला। आज उनकी दोस्त हलद्वानी में हैं लेकिन तब भी वे उनसे जुड़ी हुई हैं। वे दोस्त से बढकऱ उनका परिवार बन चुकी हैं। संतोष कहती हैं, उनकी दोस्ती निस्वार्थ भाव की है। जब किसी के कोई भी मुश्किल आती है तो दूसरी दोस्त उसके लिए खड़ी होती है।
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परिवार भी किसी दोस्त से कम नहीं

अरावली ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के निदेशक डॉ. आनंद गुप्ता के अनुसार, अक्सर लोग दोस्त बाहर ढूंढते हैं लेकिन परिवार से दूर होते जाते हैं जबकि परिवार ही आपका दोस्त है। हम तीन पीढिय़ां साथ में रह रहे हैं। हिमांशु और जयंत हम सब एक-दूसरे के अच्छे दोस्त हैं। हमें किसी बाहर वालों की जरूरत महसूस ही नहीं होती। अब बच्चे भी इस बात को समझते हैं, उन्हें भी परिवार में ही दोस्त मिल गए हैं। हंसने-खेलने से लेकर पढ़ाई तक सब साथ ही होती है। यही संस्कार आगे भी बढ़़ेंगे। इसलिए परिवार को ही दोस्त समझना चाहिए।
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