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Patrika Exclusive : ग्रामीण स्कूलों में छात्र कोष ही नहीं , फिर कैसे खेले इंडिया’

locationउदयपुरPublished: Sep 15, 2018 04:47:04 pm

Submitted by:

madhulika singh

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Patrika Exclusive : ग्रामीण स्कूलों में छात्र कोष ही नहीं , फिर कैसे खेले इंडिया’

भुवनेश पंड्या/ उदयपुर . राज्य एवं केन्द्र सरकार स्कूली स्तर पर खेलों का उत्थान तो चाहती है लेकिन जब इसके लिए बजट एवं संसाधनों की बात आती है तो टालमटोल कर जाती है। सरकारी स्कूलों के बच्चों में जबर्दस्त प्रतिभा है मगर वे सरकार की ढुलमुल नीति से सामने नहीं आ रही है।
आमतौर पर स्कूलों से ख‍िलाड़ी तब ही निकलते हैं, जब उन पर कोई पैसा खर्च करने वाला होता है। हालात यह हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में ख‍िलाड़ी तो काफी है, लेकिन उन्हें आगे भेजने के लिए पैसा नहीं। ऐसे में सरकार ने खुद को बचाने के लिए भले ही स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक खेलने जाने वाले बच्चों के लिए राशि तय कर दी, लेकिन वह राशि छात्र कोष से देनी होती है। हकीकत यह है कि प्रदेश के 70 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण स्कूलों में छात्र कोष ही नहीं है। इन हालात में ‘ खेलो इंडिया’ का नारा बेमानी साबित हो रहा है।
बढ़ोतरी की घोषणा, बोझ स्कूल पर
सरकार ने शिक्षा विभाग की खेल प्रतियोगिताओं के लिए यात्रा, पोशाक व दैनिक भत्ता बढ़ाने की घोषणा कर दी, लेकिन सच्चाई बिल्कुल उलट है, क्योंकि यह राशि विद्यालय विकास या छात्र-कोष से खर्च करनी होती है। कुछ शहरी स्कूल या बड़े स्कूलों को छोड़ जनजाति तथा सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में यह कोष ही नहीं है। जहां खेल की नैसर्गिक प्रतिभाएं तो है, लेकिन पैसा नहीं होने से वे आगे खेल नहीं पाते हैं। ऐसे में हर बार बच्चों को आगे खेलने भेजने के लिए स्कूलों को भामाशाहों का मुंह ताकना पड़ता है।

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पहले फीस से भरता था छात्र कोष
पहले फीस से छात्र कोष भर जाता था, लेकिन अब सरकार ने स्कूलों में शुल्क लेना बंद कर दिया है। ऐसे में छात्र कोष केवल भामाशाहों पर ही निर्भर रह गया है। बड़े शहरी स्कूलों के लिए भामाशाह आगे आ जाते हैंं, लेकिन छोटे स्कूलों में प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैंं।

अभी यह तय है राशि

स्कूल स्तर पर स्थानीय प्रतियोगिता के लिए 30 रुपए प्रति विद्यार्थी, 15 किलोमीटर से दूर यदि कोई ख‍िलाड़ी खेलने जाता है तो 100 रुपए और नेशनल पर 200 रुपए प्रति दिन का प्रावधान है।

यह सही है कि कोष के अभाव में स्कूलों से खेल प्रतिभाएं नहीं निकल पाती। भामाशाहों के भरोसे ख‍िलाडिय़ों का खेल बिगड़ रहा है। यह राशि छात्र कोष से ही देने का नियम है। यदि कोष खाली है तो ख‍िलाड़ी आगे नहीं जा सकेंगे।
लक्ष्मणलाल सालवी, ,खेल पर्यवेक्षक, उमावि माध्यमिक स्तर उदयपुर
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