—– ये है सरकार का कहनासरकार कोरोना से होने वाली मौतों पर अंकुश लगाना चाहती है, सरकार कहती है कि कई शोध में ज्ञात हुआ है कि सामान्य व्यक्ति के रक्त में रात में नींद के समय श्वसन दर कम होने व अन्य सायकोलॉजिकल कियाओं के कारण आक्सीजन की मात्रा कम रहती है। ऐसे में कोरोना संक्रमित मरीजों का श्वसन तंत्र इस बीमारी के कारण कमजोर हो जाता है, इसे श्वास लेने में कठिनाई होती है, इससे आक्सीजन सेचुरेशन कम होता है, ऐसे में मरीजों को अद्र्धरात्रि में आक्सीजन का स्तर रक्त में और अधिक कम होने से अचानक मृत्यु होने की संभावना रहती है। इसे देखते हुए घरों में रह रहे रोगी व चिकित्सालय स्तर पर अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। रात्रि के समय मरीजों के ऑक्सीजन सेचुरेशन पर निगरानी जरूरी है, दिन के दौरान चार घंटे में एक बार सेचुरेशन की निगरानी की जाए, लेकिन रात्रि में हर दो या एक घंटे में इसकी निगरानी होनी चाहिए। यदि मरीज में आक्सीजन के स्तर में गिरावट देखी जाए तो रोगी को जगाकर उसे जरूरी चिकित्सकीय सहायता देनी होगी। कोविड-19 के रोगियों में रात्रिकालिन गंभीरता को रोकने के लिए रात्रि के समय भारी आहार देने, अधिक वार्तालाभ करने व शौचालय जाना भी टालना चाहिए। मरीजों की मृत्यु की संभावना को न्यूनतम करने के लिए सभी चिकित्सक व नर्सेज को इस विषय के संबंध में प्रशिक्षण देना होगा।
—— मरीजों की जुबानी… बदले हुए नाम कांजी का हाटा निवासी अली (44) निजी हॉस्पिटल में भर्ती थे, उन्होंने बताया कि यहां पहले से खाना देकर जाते थे, इसके बाद कोई देखने वाला नहीं था। पीपीई किट पहनकर आते थे, बिना देखकर ही चले जाते थे। उनके परिवार के तीन लोगों का कोरोना का उपचार हुआ।
– मंडी की नाम निवासी मनोज सोनी ने बताया कि परिवार के छह लोग थे। एमबी में भर्ती थे, सभी सुविधाएं थी और कार्मिक देखने भी आते थे। कई बार पूछते थे कि कोई समस्या तो नहीं थी।
– जगत गिर्वा के राजेश ने बताया कि निजी हॉस्पिटल में था। एक भी बार डॉक्टर तो नहीं आते थे, वह नीचे बैठते थे। खाना देने के लिए जो आते थे वह दवा दे जाते थे। साफ-सफाई पर ध्यान नहीं था।
– सराड़ा से योगेश जैन ने बताया कि पांच लोग परिवार से थे, एमबी में भर्ती थे, दिन में नर्सेज पीपीई किट पहनकर एक बार देखने आते थे। कोई समस्या होने पर बाहर जाकर कहना पड़ता था। दवाई एन्ट्री के साथ ही दे दी थी। खाना सामान्य था, सफाई भी ठीक थी।