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कभी देशभर में जाती थी बंदूक, अब 7 में से 6 फैक्ट्रियां बंद, 9 वर्ष में पूरे प्रदेश में सिर्फ 100 लाइसेंस जारी

locationउदयपुरPublished: Jul 09, 2019 06:31:55 pm

Submitted by:

madhulika singh

– Arms license लाइसेंस नहीं बन पाने से हथियार निर्माता का रोजगार छीना

arms licence

कभी देशभर में जाती थी बंदूक, अब 7 में से 6 फैक्ट्रियां बंद, 9 वर्ष में पूरे प्रदेश में सिर्फ 100 लाइसेंस जारी

उदयपुर. श्रीगंगानगर Sriganganagar में 13 वर्ष पहले हुए हथियार लाइसेंस arms license के फर्जीवाड़ा पकड़ में आने के बाद बरती गई सख्ती ने शहर के बंदूक निर्माताओं की रोजी-रोटी छीन ली। देश के कई प्रदेशों में टोपीदार बंदूक सप्लाई arms suppliers करने वाला उदयपुर में हथियार निर्माता की सात फैक्ट्रियों में से छह पर ताले लटक गए हैं। ऐसे में इस पेशे से जुड़े लोग ड्राइविंग व दिहाड़ी मजदूरी करने लग गए।
वर्ष 2006 से पूर्व टोपीदार बंदूक का लाइसेंस के लिए तहसीलदार अधिकृत थे। श्रीगंगानगर कांड के बाद सरकार ने कारतूसी हथियार के साथ टोपीदार बंदूक के लाइसेंस के लिए भी जिला कलक्टर को अधिकृत कर दिया। जिला कलक्टर्स ने तीन वर्ष तक हथियार के नाम पर टोपीदार बंदूक के लिए कोई लाइसेंस जारी नहीं किया, जबकि यह आदिवासियों एवं किसानों का हिंसक पशुओं से आत्मरक्षा का हथियार था। रोजी-रोटी पर संकट आता देख बंदूक निर्माताओं ने गृह विभाग व सरकार को टोपीदार बंदूक के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए इसे आत्मरक्षा का साधन बताया तो सरकार ने उनकी बात मानते हुए लाइसेंस के लिए उपखंड अधिकारी को अधिकृत कर दिया। इस आदेश के बावजूद उपखंड अधिकारियों ने अपने हाथ खींचते गत 9 वर्ष में पूरे राज्य में महज 100 लाइसेंस जारी किए। अब लाइसेंस प्रक्रिया में जटिलता ने हथियार निर्माताओं का रोजगार बिल्कुल छीन लिया है।
सिर्फ उदयपुर में बनती थी बंदूकें
भरमार (भर के मारो) व मजर लोडिंग के नाम से मशहूर टोपीदार बंदूक भारत में सिर्फ उदयपुर में बनती थी। यहां इसके सात कारखाने थे। इन बंदूकों को आदिवासी बहुल राज्यों के अलावा ठंडे प्रदेशों में भेजा जाता था। बंदूक निर्माताओं का कहना है कि यह एकनाली व दुनाली होती है। इसमें बारूद भरने के बाद एक बार फायर करने के बाद दूसरे के लिए 15 मिनट का समय लगता है। इसकी जोरदार आवाज से खेतों में घुसे जानवर भाग निकलते हैं। अंग्रेजों व मुगलकाल में चलन में आया यह हथियार आदिवासियों का गहना है।
इन कामों से जुड़े कई लोग बेकार

पाइप काटना, धुकाई, कोठी गढ़ाई, टर्नर (लैथमशीन का काम), नाल की पॉलिशिंग, बट बनाना, पीतल के पुर्जों की ढलाई, ब्राउनिंग-पॉलिसिंग, लकड़ी पर पेटिंग के बाद चाप व लोंग बनाने सहित अन्य कार्यों में कई लोग यहां पर फैक्ट्रियों या अलग-अलग जगहों पर काम करते थे, जो सभी बेरोजगार हो गए। फैक्ट्रियों में आमेट, कुवांरिया, सरदारगढ़, कुचामन, सलूम्बर व देवगढ़ के कारीगर काम करते थे।

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फैक्ट फाइल
7 फैक्ट्रियां थी शहर में टोपीदार बंदूक निर्माण की
4100 बंदूकें एक वर्ष में बंदूक बनाने के थे लाइसेंस
6 फैक्ट्रियों पर लटके ताले

50-60 बंदूक बन रही अब वर्षभर में


देश में यहां जाती थी बंदूकें

-हिमाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, पठानकोट तक
-राजस्थान में उदयपुर संभाग के अलावा अजमेर, सिरोही, भरतपुर
राजस्थान सरकार के गृह विभाग व गृह मंत्री को कई बार इस बारे में लिख चुके हैं। व्यक्तिगत मिलने के बावजूद टोपीदार बंदूक की लाइसेंस प्रक्रिया का सरलीकरण नहीं किया गया। इससे यह व्यवसाय खत्म होने के कगार पर पहुंच गया।
– अब्दुल रशीद खां, सचिव, गन डीलर एसोसिएशन
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