देश के पंजाब राज्य में पेस्टीसाइज एवं यूरिया से होने वाली खेती से मानव शरीर में बढऩे वाले कैंसर को ध्यान में रखते हुए विवि ने ऑर्गेनिक खेती की कार्ययोजना बनाई है। पशुपालकों को ऑर्गेनिक उत्पाद की आकर्षित करने के प्रयास तो बेहतर हैं, लेकिन खुद पर इन कायदों को लागू करने से पहले दूसरों को सिखाना थोड़ा मुश्किल भरा सफर होगा।
विवि बीकानेर की दूरदर्शिता मानें तो देश में खाद्यान्न बढ़ाने के लिए यूरिया का उपयोग शुरू हुआ था। तब देश में खाद्यान्न की कमी रहती थी। चूंकि अब भारत दूसरे देशों में खाद्यान्न का एक्सपोर्ट कर रहा है। ऐसे में पर्याप्त खाद्यान्न व्यवस्था के बीच जैविक उत्पादों को बढ़ाने के प्रयास होंगे। विवि की मानें तो इसके लिए आवश्यक शोध कार्य किए जा चुके हैं। विवि के अधीन प्रदेश के 13 जिलों में संचालित प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्रों पर आगामी कार्ययोजना के तहत करीब 50 हजार पशुपालकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। आंकड़ों पर गौर करें तो विवि की ओर से वर्ष 2014-15 में 30 हजार, 2018-19 में 50 हजार पशुपालकों को अलग-अलग विषयों पर प्रशिक्षित किया गया है। अबकी बार भी आंकड़ा यही रहेगा।
ऑर्गेनिक पशु उत्पाद बनाने के लिए कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के कुछ मापदण्ड व कायदे निधार्रित हैं। वैज्ञानिक शोध के मुताबिक अधिक यूरिया, पेस्टिसाइज, पशुओं से जुड़ी एलोपैथिक दवाइयों के उपयोग से पशुओं में बीमारियों का संकट बढ़ता है। ऐसे पशुओं के दूध और अण्डे की खपत मनुष्यों में होती है। इससे होने वाली बीमारियों की रोकथाम को लेकर पहले ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। जैविक उत्पाद मवेशियों को खिलाया जाएगा। यहां तक कि पशुओं की बीमारियों का उपचार भी आयुर्वेद व होम्योपैथी पद्वति में किया जाएगा। तब कहीं जाकर किसी पशु को जैविक आधार माना जाएगा।
जैविक पशुपालन से पशुपालकों को जोड़कर ऑर्गेनिक खेती की ओर मोड़ा जाएगा। विवि स्तर पर तय कार्ययोजना को लेकर तैयारियां हो चुकी हैं। हम जल्द ही प्रशिक्षण आयोजित करेंगे। महाविद्यालय परिसर में भी ऑर्गेनिक कामकाज की शुरूआत करेंगे।
डॉ. आर.के. धूरिया, अधिष्ठाता, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, नवानिया (उदयपुर)