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कोई इतिहासकार नहीं मानता- खिलजी ने पद्मिनी के लिए किया चितौड़गढ़ पर आक्रमण

locationउदयपुरPublished: Nov 15, 2017 01:17:54 pm

Submitted by:

santosh

एक भी इतिहासकार यह स्वीकार नहीं करता कि खिलजी ने चित्तौडग़ढ़ पर आक्रमण रानी पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए किया।

padmawati johar
उदयपुर। सल्तनत काल में दर्जनों जाने-माने इतिहासकार और लेखक हुए, जो तत्कालिन एेतिहासिक घटनाओं का स्पष्ट कारण और वर्णन लिखते थे। मगर समकालीन एक भी इतिहासकार यह स्वीकार नहीं करता कि खिलजी ने चित्तौडग़ढ़ पर आक्रमण रानी पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए किया। युद्ध के समय अलाउद्दीन के साथ प्रसिद्ध लेखक अमीर खुसरो स्वयं मौजूद था, जिसने युद्ध का कारण रानी पद्मिनी होता तो खुसरो अपनी पांच में से कम से कम एक रचना में इसका जिक्र अवश्य करता। खुसरो ने युद्ध का कारण राजनीतिक ही मानता है। इसी तथ्य को मेवाड़ के इतिहासकार सही स्वीकार करते हैं।
अमीर खुसरो की प्रसिद्ध इन पांच रचनाओं किरान्मुस्सदायन, मिफ्ताहल फुतुह, आशिक नहसि पिर, तारीखे देहली, तामूल फतूह, खजानल उल फतूह किसी में भी रानी पद्मिनी संबंधी कोई प्रसंग नहीं है। कर्नल जेम्स टॉड ने जानकारी के अभाव में 1303 में खिलजी के चित्तौडगढ़ पर आक्रमण के 224 साल के बाद मल्लिक मोहम्मद जायसी के काल्पनिक प्रेमालाप को एेतिहासिक समझ कर अपने एनल्स में शामिल कर लिया, जो इस भ्रांति के प्रसार का कारण बनी।
सल्तनत काल की रचनाओं में उल्लेख नहीं
सल्तनत काल की प्रमुख रचनाओं में तारीखे फिरोजशाही, तारीखे बरमका, लब्बातुल तारीख, फतखे जहांदारी इतिहास के प्रमुख स्रोत हैं। इनमें से एक में भी रानी पद्मिनी को लेकर युद्ध का कोई वर्णन नहीं है। अमीर खुसरो की तरह प्रसिद्ध लेखक निजामुद्दीन औलिया, मीर हसन देहलवी भी इस प्रकार कोई जिक्र नहीं करते हैं, जबकि इनकी रचनाओं में तमाम एेतिहासिक घटनाओं का जिक्र है।
फारसी विद्वान भी मौन
अलाउद्दीन खिलजी के समकालिन में सदुद्दीन अली, फखरूद्दीन, इमामुद्दीन रजा, मौलाना आरीफ अस्दुल्ला हकीम, शिहाबुद्दीन आदि प्रमुख फारसी लेखक हुए हैं जिन्होंने भी अपनी रचना में इस तरह की घटना का उल्लेख नहीं किया है।
खिज्र खां चैन से रहने तक नहीं दिया
नैणसी के अनुसार रावल रत्न सिंह युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। गुहिल वंश की एक छोटी शाखा सिसोद के सामंत ने खिज्र खां को कभी चैन से नहीं रहने दिया। सामंत हमीर केदादा लक्ष्मण सिंह अपने कई पुत्रों सहित खिलजी की सेना से युद्ध करते हुए शहीद हुए थे। हमीर ने कम संसाधन होने के बावजूद भी खिलजी के प्रतिनिधियों को हमेशा परेशान रखा। हमीर सिसोदा के सामंत थे, इसलिए मेवाड़ राजवंश सिसोदिया राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1621 के आसपास हमीर ने चित्तौडग़ढ़ पर पुन: अपना अधिकार कर लिया।
रावल रत्न सिंह और रानी पद्मिनी एेतिहासिक पात्र हैं, काल्पनिक नहीं। इन एेतिहासिक पात्रों के नाम का सहारा लेकर जायसी ने अपने प्रेमाख्यान में कल्पना के रंग भरे और सूफी परम्परा को खड़ा किया है। मध्यकाल में भी सूफी के काव्य को एेतिहासिक रूप में नहीं स्वीकारा गया, फिर स्वतंत्र भारत में उसकी स्वीकार्यता कैसे हो सकती है। खिलजी के आक्रमण का कारण चित्तौडग़ढ़ दुर्ग पर आधिपत्य जमाना था।
डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, इतिहासकार मेवाड़
पद्यावत एक काल्पनिक साहित्यिक कृति है, जिसमें एेतिहासिक नाम प्रयुक्त किए गए हैं। यह पूरी तरह गलत और अस्वीकार्य है। कुछ लोगों ने जायसी के साहित्य को इतिहास मान लिया। युद्ध का कारण राजनीतिक और साम्राज्य का विस्तार था।
प्रो. पीएस. राणावत, भू धरोहर समन्यक मेवाड़
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