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उदयपुर

दूधमुंही बच्ची कैसे बोली, मां को करो सुपुर्द, अधीनस्थ न्यायालय का फैसला अपास्त

-गिर्वा न्यायालय ने काका व दादी के किया था सुपुर्द

उदयपुरOct 29, 2017 / 11:32 am

Mohammed illiyas

baby girl
उदयपुर . मां के साथ नहीं रहने संबंधी तर्क के आधार पर गिर्वा न्यायालय ने दो साल की बच्ची को मां से लेकर काका व दादी के सुपुर्द कर दिया, जबकि दूधमुंही बच्ची बोल ही नहीं सकती थी। पीडि़ता की ओर से निगरानी याचिका पेश करने पर अपर न्यायालय ने इसे स्वीकार करते हुए बच्ची को मां के सुपुर्द करने का आदेश दिया। अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश क्रम-1 के पीठासीन अधिकारी अनुपमा राजीव बिजलानी ने अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय को विधि सम्मत नहीं मानते हुए उसे अपास्त कर दिया।
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लालमगरी हिरणमगरी निवासी मंजू भाट पत्नी आकाश कंजर ने राजस्थान राज्य जरिये लोक अभियोजक, पंडेर भीलवाड़ा निवासी तुलसी बाई पत्नी मदनलाल कंजर, उसके पुत्र श्यामलाल के विरुद्ध निगरानी याचिका पेश की। इसमें बताया कि उसका विवाह दस वर्ष पूर्व आकाश से हुआ था। उसके दो जुड़वा बच्चे पुत्री आरूषि व पुत्र अनमोल है। दो माह पहले पति के निधन के बाद वह अपनी दूधमुंही बच्ची आरूषि के साथ मां के घर आ गई थी। एक फरवरी २०१७ को मां के साथ वह पुत्री को अस्पताल दिखाने गई तो आरोपित जीप लेकर वहां पहुंचे और पुत्री को जबरन छीनकर अपने साथ ले गए और वह आज भी उनके कब्जे में है। उसकी देखरेख और चिकित्सा सही ढंग से नहीं हो पा रही है। इस संबंध में बच्चों द्वारा मां के साथ नहीं रहने, श्यामलाल द्वारा बच्चों को तकलीफ नहीं देने एवं उचित शिक्षा देने का तर्क देने पर उपखण्ड न्यायालय गिर्वा ने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए दादी और काका को सुपुर्दगी के आदेश दिए। इसके विरुद्ध परिवादिया ने निगरानी याचिका पेश की। अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश क्रम-1 ने अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को अपास्त करते हुए बच्ची को मां के सुपुर्द करने के आदेश दिए।

काका ने परिवादिया को बताया था झूठा
विपक्षी श्यामलाल ने अधीनस्थ न्यायालय में बयान दिया कि परिवादिया ने झूठे तथ्यों के आधार पर यह प्रार्थना पत्र पेश किया है। वह ही बच्ची का लालन-पोषण कर रहा है। उसके कोई औलाद नहीं है। अनमोल को उसने सामाजिक रीति-रिवाज से गोद लिया था और आरूषि दादी तुलसी की निगरानी में रह रही है।
मां से बेहतर देखभाल कोई नहीं कर सकता
न्यायालय ने कहा कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, किसी लडक़े या अविवाहिता लडक़ी की दशा में पिता और उसके बाद माता के हाथ में अभिरक्षा रहेगी। दो साल की बच्ची का कल्याण और सुरक्षा उसकी मां से अधिक अन्य किसी व्यक्ति के हाथ में हो यह नहीं माना जा सकता।

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