उदयपुर

पानी होगा तो शुद्ध व समुचित पानी का हमारा मानवाधिकार

स्टॉकहोम में जल प्रबंधन की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ नंदिता सिंह ने की पानी व मानवाधिकार पर चर्चा

उदयपुरJul 12, 2019 / 02:52 am

Manish Kumar Joshi

पानी होगा तो शुद्ध व समुचित पानी का हमारा मानवाधिकार

उदयपुर. प्रकृति में पानी होगा तभी शुद्ध व समुचित पानी मिलने के हमारे मानवाधिकार की रक्षा हो सकेगी। पानी का हमारा यह मानवाधिकार केवल कानून, नीतियां व इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने से ही नहीं मिलेगा, बल्कि इसके लिए समाज को जोड़ते हुए समग्र जल संसाधन संरक्षण के विविध आयामों पर कार्य करना होगा।
यह विचार स्टॉकहोम में जल प्रबंधन की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ नंदिता सिंह ने गुरुवार शाम विद्या भवन पॉलिटेक्निक सभा कक्ष में विद्या भवन व झील संरक्षण समिति की ओर से आयोजित पानी व मानवाधिकार विषयक चर्चा में व्यक्त किए। उन्होंने
कहा कि वर्ष 2010 से संयुक्त राष्ट्र ने पानी के मानवाधिकार को मान्यता दी। और विभिन्न देशों ने इस पर कानून बनाये। दक्षिणी अफ्रीका में भी नागरिकों की घरेलू आवश्यकताओं व दैनंदिन जीवन के लिए जरूरी जल की आपूर्ति को मानवाधिकार कानून बनाया गया, लेकिन जब केपटाउन में पानी ही नहीं रहा तो मानवाधिकार के इस कानून का कोई अर्थ ही नहीं रह गया। इसलिए यह समझना होगा कि नागरिकों को जीवन के लिए जल का मानवाधिकार तभी प्राप्त हो सकेगा जब प्रकृति में जल होगा।
डॉ नंदिता ने पानी से जुड़े मानवाधिकारों का विश्लेषण करते हुए कहा कि इसकी प्राप्ति के लिए वहनीय शुल्क सीमा में उचित गुणवत्ता के जल की उपलब्धता, पहुंच, समान व भेदभाव रहित वितरण तथा आम नागरिक तक उसकी मात्रा व गुणवत्ता की सूचना व जानकारी होना आवश्यक है। इन सभी आयामों का पूर्ण होना तभी संभव है जब पारंपरिक ज्ञान व विधियों से जल का संरक्षण व प्रबंधन किया जाए व हर स्तर पर समाज की सहभागिता सुनिश्चित की जाए।
इस अवसर पर रियाज तहसीन, डॉ तेज राजदान, निर्मल नागर, ओमप्रकाश सिंह, पीसी सामर, प्रज्ञा टांक ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ अनिल मेहता ने किया।

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