यूं सामान्य दिनों में रोज चिकित्सालय में सात सौ से आठ सौ रोगियों का आउटडोर है। वर्ष 2011 में यहां 400 से 450, वर्ष 2012 में लगभग 500, वर्ष 2013 में 550, 2014 में भी लगभग इतना ही और वर्ष 2015 में 600 से 700 रोगियों तक का आउटडोर था।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रंजन चरपोटा बताती है कि सर्दी का सबसे ज्यादा कहर बच्चों पर है। इन तीन माह में यहां आने वाले मरीजों की संख्या दो गुना हो जाती है। शुरुआत इंफेक्शन से होती है। इसके बाद सर्दी-जुकाम, निमोनिया और कई बार तो बच्चे कोल्ड स्ट्रोक में चले जाते है। हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि इनको बचाना मुश्किल हो जाता है।
डॉ. चरपोटा बताती है कि इन तीन महीनों में बच्चों की सार-संभाल अतिरिक्त होनी चाहिए। बच्चों को सुरक्षित कपड़ों में रखना होगा। सर्दी में इन बच्चों के पास तन ढंकने को पर्याप्त ऊनी वस्त्र होते नहीं है और यहीं सर्दी की चपेट में आने की वजह है। हम भी अब इन बच्चों की मदद को तैयार हैं। पहल पत्रिका ने की है तो गरीबों के लिए सर्दी राहत ही बनेगी।