scriptमैसेनरी माइंस की आड़ में डोलामाइट का अवैध खनन! | Illegal Mining of Dalmatite under the guise of the Massenary Mines | Patrika News

मैसेनरी माइंस की आड़ में डोलामाइट का अवैध खनन!

locationउदयपुरPublished: Mar 24, 2019 12:14:29 am

Submitted by:

Sushil Kumar Singh

चोरी छिपे स्टील कंपनियों को पहुंच रहा डोलोमाइट, आयकर विभाग, जीएसटी सहित अन्य विभागों को हो रहा राजस्व नुकसान

udaipur

मैसेनरी माइंस की आड़ में डोलामाइट का अवैध खनन!

डॉ. सुशील सिंह चौहान/ उदयपुर. खनन विभाग के प्रदेश मुख्यालय उदयपुर की सीमाओं में मैसेनरी स्टोन के नाम पर आवंटित खनन पट्टों की आड़ में ‘डोलोमाइटÓ खोदा जा रहा है। मैसेनरी स्टोन (गिट्टी) के नीचे ट्रकों में डोलोमाइट को छिपाकर इसकी सप्लाई स्टील कंपनियों को हो रही है। नामी कंपनियों में जा रहे डोलोमाइट का भुगतान इन खनन धारियों के खाते में सीधे आ रहा है। इससे न केवल खनन विभाग के राजस्व को चपत लग रही है। बल्कि आयकर विभाग, जीएसटी सहित अन्य विभागों को इस घालमेल से करोड़ों रुपयों की चपत लग रही है। लेकिन, ये सब जानते हुए भी खनन विभाग के सिपहसलार मौन साधे हुए हैं।
खान एवं भू विज्ञान विभाग की ओर से वर्ष २०११ के आसपास ईसवाल क्षेत्र को हाई ग्रेड डोलोमाइट जोन घोषित किया गया था, जहां वर्तमान में करीब २० से ३० मैसेनरी स्टोन पट्टे आवंटित हैं। खास बात यह है कि इस क्षेत्र में नए आवेदनों को यह कहकर खारिज कर दिया जाता है कि ये क्षेत्र डोलोमाइट जोन है, जबकि पुराने संचालित मैसेनरी पट्टों के कुछ खास हिस्सों में निकल रहे डोलोमाइट को लेकर विभाग आंखें मूंदे बैठा है। गौरतलब है कि डोलोमाइट की स्टील कंपनियों में बड़े स्तर पर खपत होती है।
रॉयल्टी में अंतर
जानकारी के अनुसार डोलोमाइट व मैसेनरी स्टोन के नाम पर राजस्व वसूली यानी रॉयलटी राशि में भी खासा अंतर है। एक अनुमान से मैसेनरी स्टोन पर विभाग को करीब 32 रुपए प्रति टन रॉयल्टी मिलती है तो डोलोमाइट के नाम पर पट्टाधारी को यह कीमत 90 रुपए चुकानी होती है। इस रॉयल्टी से बचने के लिए माइंस मालिक ट्रक में मैसेनरी स्टोन के नीचे डोलोमाइट को चोरी छिपे व्यापार बढ़ा रहे हैं। मैसेनरी की रॉयल्टी पर डोलोमाइट की आपूर्ति की जा रही है।
अवधि की 50 साल
करीब 5 साल पहले एक सरकारी आदेश के तहत सभी माइनर व मेजर मिनरल्स वाले पट्टाधारियों की अनुज्ञप्ति अवधि को बढ़ाकर सीधे 50 साल कर दिया गया था। पहले यह अवधि 30 साल की थी। आदेश की क्रियान्विति का फायदा बंद पड़ी माइंसों को भी हुआ। वहीं एक साथ इतनी लंबी अवधि की अनुज्ञप्ति से विभाग को करोड़ों रुपए की राजस्व हानि होनी सामने आई है। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 32 से 33 हजार माइनिंग पट्टे जारी हैं। इनमें से बड़े पट्टाधारियों की संख्या करीब 12-13 हजार है।
इसकी जांच नहीं
वर्तमान में संचालित खनन अनुज्ञप्ति के रिकॉर्ड को जांचें तो आवंटित प्रति माइंस क्षेत्र की ड्राइंग में सीमांकन को लेकर 25 से 30 पिल्लर लगाए गए थे, लेकिन वर्तमान में इन माइंस सीमाओं में केवल 2 से 3 ही पिल्लर दिखाई देते हैं। इनकी संख्या में भी नहीं के बराबर है।
एक नंबर में काली कमाई
डोलोमाइट की खपत स्टील कंपनियों में हो रही है। इसका सीधा भुगतान खाताधारक को बैंक खातों से हो रहा है। गिट्टी के बदले डोलोमाइट की मिल रही राशि को लेकर हर महकमा अनजान बना हुआ है। स्टील कंपनियों की खाता डिटेल और खनन अनुज्ञप्ति खाता धारक के बैंक खातों की डिटेल इसकी सच्चाई को बयां कर सकती है।
अच्छी ग्रेड नहीं
केंद्र के आदेश पर अनुज्ञप्ति धारकों की खनन अवधि बढ़ाई गई थी। ईसवाल में लॉ ग्रेड का डोलोमाइट है। बॉर्डर इलाकों में अच्छा डोलोमाइट है। अगर, चोरी छिपे डोलोमाइट जा रहा है तो इसकी जांच करेंगे। खनन पट्टों के सीमांकन की वैसे तो जांच करते हैं, लेकिन सभी खाताधारक उनकी सीमाओं में ही आपसी समझ से खनन करते हैं।
एस.पी.शर्मा, माइनिंग इंजीनियर, खनन विभाग
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