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इस बार 17 प्रतिशत बदला हुआ है कोरोना, भारतीय वैज्ञानिक समूह के शोध में हुआ खुलासा

locationउदयपुरPublished: Apr 01, 2020 09:15:51 pm

Submitted by:

jitendra paliwal

माइक्रो आरएनए एसएचए-एमआइआर-27 बी केवल भारतीयों में पाया जाता है, यह कोरोना की मूल संरचना को बदलकर उससे लड़ने की कोशिश करता है

इस बार 17 प्रतिशत बदला हुआ है कोरोना, भारतीय वैज्ञानिक समूह के शोध में हुआ खुलासा

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जितेन्द्र पालीवाल @ उदयपुर. भारतीय इंसानों में एक विशेष प्रकार का आरएनए (रिबोन्यूक्लेइक एसिड) पाया गया है, जो कोरोना वायरस की मूल संरचना में थोड़ा बदलाव कर देता है और उससे लड़ने की कोशिश करता है। एक रिसर्च में हुए इस खुलासे में सामने आया कि कोविड-19 पहले के कोरोना परिवार के वायरस की मूल संरचना से 17 फीसदी अलग है। पांच यूरोपीय और एशियाई देशों के नागरिकों के जीनोम पर हुए इस अध्ययन से भविष्य में कोरोना की वैक्सीन बनाने में मदद मिल सकती है।
इंटरनैशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आइसीजीइबी), नई दिल्ली के एक वैज्ञानिक समूह द्वारा किए गए ताजा रिसर्च में सामने आया कि यह एक खास आरएनए एशियाई देशों में भी केवल भारतीयों में पाया गया है। शोध में पांच देशों इटली, अमरीका, नेपाल, चीन और भारत के लोगों में सार्स-कोविड 19 के संकलित जीनोम का अध्ययन किया गया। आइसीजीइबी के पास करीब 400 प्रकार के सार्स-कोविड 19 के जीनोम के आंकड़े उपलब्ध हैं। रिसर्च के हवाले से मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की प्राणीशास्त्र विभागाध्यक्ष डाॅ. आरती प्रसाद बताती हैं कि भारतीयों में पाया गया आरएनए कोरोना वायरस के जीन को रूपांतरित कर देता है। इससे हमारे शरीर में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता को उससे लड़ने में ज्यादा बल मिलता है। हालांकि पूरी तरह कोरोना को हराने में सक्षम नहीं है, लेकिन इस आनएनए की खोज से आगामी समय में कोरोना के खिलाफ वैक्सीन तैयार करने में मदद मिल सकती है। यह आरएनए हमारी कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। अध्ययन में चीन के उस वुहान शहर से कोविड-19 के जीनोम को शामिल किया गया है, जहां सबसे पहला केस सामने आया और दुनियाभर में महामारी फैलने का पहला बड़ा केन्द्र बना।
– क्या इसीलिए भारत में अब तक कम असरदार है कोरोना?
कोरोना अब तक भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में इतनी खतरनाक शक्ल में सामने नहीं आया है, जितना कि दुनिया के सबसे विकसित देश अमरीका, इटली, फ्रांस और चीन में तबाही मचा चुका है। भारत में अभी तक कोरोना का असर तो कम रहा ही है, बीमार हुए लोगों में ठीक होने वालों की संख्या भी संतोषजनक मानी जा रही है। तो क्या विशेष आरएनए के कारण भारतीयों पर कोरोना का असर कम है? इस सवाल के जवाब में जानकार इसे निश्चित वजह नहीं मानते, लेकिन इससे इनकार नहीं करते कि भारतीयों के जीनोम में मौजूद खास आरएनए का भी कोई योगदान हो सकता है।
– सर्दी से बीमार होने पर लगवाते हैं
यूरोपीय देशों मंे सर्दी का असर ज्यादा रहता है। वहां बुजुर्ग नागरिकों की संख्या ज्यादा है। भारत एक युवा देश है, जबकि यहां सर्दी अपेक्षाकृत कम पड़ती हैं। यूरोपीय देशों में सर्दी के कारण बीमार होने पर लोग अक्सर फ्लू शाॅट (वैक्सीन) लगवाते हैं, जिससे कि सर्दी-खांसी-जुकाम जैसे सामान्य रोगों के खिलाफ उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। वहां प्रतिवर्ष एन्फ्लुएन्जा के कारण 24 से 55 प्रतिशत तक मौत का शिकार हो जाते हैं।
– सार्स, कोरोना परिवार का तीसरा वायरस है कोविड-19
प्रो. आरतीप्रसाद बताती हैं कि कोविड-19 भी एक तरह का एन्फ्लुएन्जा है, जो कि सार्स और कोरोना की तरह ही बर्ताव करता है। तीनों ही इंसान के श्वसन-तंत्र पर हमला करते हैं। कोविड-19 कोरोना परिवार का तीसरा वायरस है, जो पहले दो के मुकाबले थोड़ा ज्यादा घातक है। यह थोड़ा ताकतवर है, आसानी से हारता नहीं है और खुद को बहुत तेजी से फैलाता है। इसमें अपनेआप को जिन्दा रखने की काबिलियत भी ज्यादा विकसित है। इसकी ऊपरी सतह के प्रोटीन में बदलाव हुआ है।
– क्यों दी जा रही गर्म पानी पीने की सलाह?
बताया गया कि कोविड-19 गले में बहुत देर तक ठहरता है तथा फिर फेफड़े में उतर जाता है। इसीलिए सलाह दी जाती है कि अधिकाधिक गर्म पानी पीएं, जिससे इस वायरस पेट में चले जाने की गुंजाइश बढ़ जाती है। पेट में जाने से इसे हमारा पाचन-तंत्र पचा लेगा और मौत से बचा जा सकता है।
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