स्कूल में मिला पहला मंच
बचपन में संगीत के प्रति चिन्मय की बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और हकलाने की वजह से उसका मजाक भी उड़ाया जाता था। वही एक दिन संगीत के बड़े मंच पर प्रस्तुति देकर लोगों का दिल जीत लेगा, ये कभी किसी ने नहीं सोचा था। उसने ना केवल अपने डर पर काबू पाया बल्कि संगीत के सुरों का ऐसा ज्ञान प्राप्त किया कि अब लोग उसके शिष्य बनना चाहते हैं। चिन्मय ने बताया कि 8वीं के बाद उनकी संगीत के प्रति सोच ही बदल गई। वह लोगों के सामने कुछ ऐसा कर दिखाना चाहता था जिससे लोग उसके अंदर के कलाकार को जान सकें। ऐसे में बिना किसी भी गुरु और प्रशिक्षण के खुद से ही बांसुरी बजाना सीखा और पहली बार स्कूल में स्टेज पर परफॉर्म किया। उस दिन जो तालियां मिलीं और टीचर्स व दोस्तों की सराहना मिली वो आज हजारों लोगों की प्रशंसा में तब्दील हो चुकी है।
बचपन में संगीत के प्रति चिन्मय की बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और हकलाने की वजह से उसका मजाक भी उड़ाया जाता था। वही एक दिन संगीत के बड़े मंच पर प्रस्तुति देकर लोगों का दिल जीत लेगा, ये कभी किसी ने नहीं सोचा था। उसने ना केवल अपने डर पर काबू पाया बल्कि संगीत के सुरों का ऐसा ज्ञान प्राप्त किया कि अब लोग उसके शिष्य बनना चाहते हैं। चिन्मय ने बताया कि 8वीं के बाद उनकी संगीत के प्रति सोच ही बदल गई। वह लोगों के सामने कुछ ऐसा कर दिखाना चाहता था जिससे लोग उसके अंदर के कलाकार को जान सकें। ऐसे में बिना किसी भी गुरु और प्रशिक्षण के खुद से ही बांसुरी बजाना सीखा और पहली बार स्कूल में स्टेज पर परफॉर्म किया। उस दिन जो तालियां मिलीं और टीचर्स व दोस्तों की सराहना मिली वो आज हजारों लोगों की प्रशंसा में तब्दील हो चुकी है।
युवाओं को संगीत से जोडऩे का लक्ष्य
चिन्मय के संगीत का शुरुआती सफर भले ही आसान नहीं रहा लेकिन जब उन्हें गुरु मिले तो उनके संगीत को दिशा मिल गई। चिन्मय अपने गुरुगोविंद गंधर्व और सुधाकर पीयूष को जीवन में संगीत का ज्ञान कराने के लिए श्रेय देते हैं। आज के समय में जहां अधिकतर युवा देश के शास्त्रीय संगीत एवं सभ्यता से दूर होते जा रहे हैं, वहीं वे युवाओं को भारतीय संगीत से जोडऩे का लक्ष्य लेकर चल रहे चिन्मय ने बताया कि वे हिंदी सिनेमा में संगीत को नया रूप देने और अपना स्थान बनाने के लक्ष्य पर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।
चिन्मय के संगीत का शुरुआती सफर भले ही आसान नहीं रहा लेकिन जब उन्हें गुरु मिले तो उनके संगीत को दिशा मिल गई। चिन्मय अपने गुरुगोविंद गंधर्व और सुधाकर पीयूष को जीवन में संगीत का ज्ञान कराने के लिए श्रेय देते हैं। आज के समय में जहां अधिकतर युवा देश के शास्त्रीय संगीत एवं सभ्यता से दूर होते जा रहे हैं, वहीं वे युवाओं को भारतीय संगीत से जोडऩे का लक्ष्य लेकर चल रहे चिन्मय ने बताया कि वे हिंदी सिनेमा में संगीत को नया रूप देने और अपना स्थान बनाने के लक्ष्य पर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।