----- नेट से अधूरी जानकारी के बूते दर्ज करवाते है मामला- सरकार की ओर से एसओपी तय की गई पत्रावली में उल्लेख किया गया कि आज के दौर में आमजन में अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, ऐसे में नेट से अधूरी सूचना लेकर चिकित्सक व चिकित्साकर्मियों के खिलाफ रोगी के परिजन आपराधिक प्रकरण दर्ज करवाते हैं। ऐसे में संबंधित को मानसिक उत्पीडन झेलना पड़ता है। इसका असर कार्यक्षमता पर भी पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर कई निर्णयों में विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किए हैं।
------ चीरघर में पोस्टमार्टम का बनेगा वीडियो, बिना चिकित्सक मंडल नहीं हो सकेगा निर्णय - किसी चिकित्सक, चिकित्साकर्मी, हिंसा व सम्पत्ति के नुकसान का निवारण अधिनियम 208 में इसे परिभाषित किया है। इसमें उपचार के दौरान की गई चिकित्सकीय उपेक्षा के अभियोग की सूचना, परिवाद पुलिस थाने के प्रभारी को मिलने पर वह सीधे रोजनामचे में लिखेगा। यदि सूचना, परिवाद चिकित्सकीय उपेक्षा के कारण मौत से संबधित है तो दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 174 के तहत मामला दर्ज होगा। इस स्थिति में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी अनिवार्य रूप से होगी।- थानाधिकारी पहले प्राथमिक जांच करेंगे, जांच के दौरान अभियोग के संबंध में स्वतंत्र व निष्पक्ष राय चिकित्सक , चिकित्सक मंडल से प्राप्त करेगा।
- थानाधिकारी द्वारा मेडिकल कॉलेज प्राचार्य, सीएमएचओ को राय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करने पर यह उनका दायित्व होगा कि वह यथाशीघ्र तीन दिन में चिकित्सक मंडल का गठन करेंगे। किसी व्यक्ति की मौत या आघात लगने पर चिकित्सक मंडल अनिवार्य रूप से गठित होगा। इससे जुड़ा प्रकरण है तो उस विषय विशेषज्ञ चिकित्सक को मंडल में जोड़ा जाएगा।- चिकित्सक मंडल बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्र निर्णय लेगा, मंडल की ओर से यदि समय पर थानाधिकारी को राय नहीं मिलती है, तो थानाधिकारी प्राचार्य व सीएमएचओ को सूचना देते हुए एसपी व सरकार को भी जानकारी देगा।
- घोर चिकित्सकीय उपेक्षा की जानकारी पर प्राथमिकी दर्ज होगी। जांच कर न्यायालय में आरोप पत्र भेजे जाएंगे। साथ ही सक्षम स्तर से अभियोजन स्वीकृति लेनी होगी।- ----- सरकार ने आदेश दिए हैं, इसमें पूरी प्रक्रिया के बाद ही निर्णय होगा। एसपी व पुलिस उपायुक्त की अनुमति के बिना चिकित्सक को गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा। साथ ही जांच में सहयोग नहीं करने व स्वयं को अभियोजन से बचने के लिए छिपा रहा हो तो गिरफ्तारी होगी। चिकित्सकों से भी अपेक्षा की गई है कि वे जनसाधारण के जीवन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कार्य बहिष्कार नहीं कर विधि के अनुसार अपनी मांग रखेंगे।
डॉ. दिनेश खराड़ी, सीएमएचओ, उदयपुर