scriptWatch : उदयपुर की जगन्‍नाथ रथयात्रा है विश्व में तीसरे नम्बर की , 24 सालों से न‍िकाल रहे हैं भक्‍त | Jagannath rathyatra in udaipur, Jagdish Temple | Patrika News

Watch : उदयपुर की जगन्‍नाथ रथयात्रा है विश्व में तीसरे नम्बर की , 24 सालों से न‍िकाल रहे हैं भक्‍त

locationउदयपुरPublished: Jul 01, 2019 07:38:51 pm

Submitted by:

madhulika singh

जगदीश मंदिर jagdish temple udaipur में ठाकुरजी की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर से भगवान जगदीश की जगन्नाथपुरी Jagannath Puri के तर्ज पर तत्कालीन महाराणा ने आषाढ़ सुदी द्वितीया पर प्रभु की रथयात्रा निकाली, jagannath rath yatra 2019

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Watch : उदयपुर की जगन्‍नाथ रथयात्रा है विश्व में तीसरे नम्बर की , 24 सालों से न‍िकाल रहे हैं भक्‍त

प्रमोद सोनी/उदयपुर . शहर के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर Jagdish Temple का निर्माण विक्रम संवत 1709 ईस्वी में तत्कालीन महाराणा जगतसिंह ने करवाया था। मंदिर jagdish temple udaipur में ठाकुरजी की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर से भगवान जगदीश की जगन्नाथपुरी jagannath puri के तर्ज पर तत्कालीन महाराणा ने आषाढ़ सुदी द्वितीया पर प्रभु की रथयात्रा jagannath rath yatra 2019 निकाली। वर्षो पूर्व रथयात्रा मंदिर से शुरू होकर जगदीश चौक, मांझी की बावड़ी और घंटाघर तक निकाली जाती थी। मंदिर के वंशानुगत पुजारी रामगोपाल ने बताया कि उस समय तत्कालीन महाराणा रथ को खींचते और उसके बाद रथ को जेठी समाज के लोग रथ पूरे रास्ते खींचते थे। इस दौरान महाराणा के साथ ठिकानेदार व शहर के लोग पारम्परिक वेशभूषा में शामिल होते थे। वर्षो तक यह क्रम चलता रहा। कुछ वर्ष बाद यात्रा को मंदिर से बाहर निकालना बंद कर दिया गया। महाराणा भूपाल सिंह के समय से मंदिर में ठाकुरजी की रथयात्रा निकाली जाती थी। उस समय मंदिर में गिने चुने भक्त प्रभु की इस रथयात्रा में शामिल होते थे। मंदिर में ढ़ोलक मंजीरों के साथ भक्त भजन कीर्तन करते हुए रथ को मंदिर परिक्रमा करवाते थे। उस समय रथ के आगे नर्तकियां नृत्य करती थी। सैकड़ों भक्तों दर्शन को उमड़ते थे। मंदिर परिक्रमा में रथ सबसे पहले गणपति मंदिर और इसके बाद सूर्य मंदिर पहुंचता है। यह परम्परा सदियों पुरानी चली आ रही है। मंदिर में भक्तों की अथाह आस्था के चलते व भक्तों की भीड़ को देखते हुए वर्षो बाद फिर प्रभु के रथ को १९९६ में मंदिर से नीचे उतारा गया। रथयात्रा की अनुमति में आई दिक्कतउस समय रथयात्रा निकालने की प्रशासन से आज्ञा लेने के लिए बहुत परेशानी हुई। उस दौरान किरण महेश्वरी, मांगीलाल जोशी, पुष्पराज मेहता, मनोज मेहता सहित वयोवृद्ध वंशानुगत पुजारी रधुनंदन व हुकमराज आदि को प्रशासन ने अनुमति नहीं दी। हालांकि बाद में जयपुर से भैरोसिंह शेखावत के दखल से प्रशासन की अनुमति मिली। उस समय एक बैंड व हाथ थैले पर काठ का हाथी व ऊंट गाड़ी पर पारम्परिक रथ को रखा गया जिसे भक्तों ने खींचा। उस रथ यात्रा में झांकियां भी शामिल नहीं थी। इसके बाद धर्मोत्सव समिति के साथ अन्य समाज व संगठनों के जुडऩे से प्रभु की यात्रा के साथ ही कारवां जुड़ता गया।पिछले २२ वर्षो से रथयात्रा से जुडे़ धर्मोत्सव समिति के दिनेश मकवाना ने बताया कि १९९६ में जब पहली बार भगवान जगन्नाथ राय का रथ मंदिर से बाहर नगर भ्रमण पर निकला तब पारम्परिक रथ के साथ धर्मोत्सव समिति की दो झांकियां थी। रथयात्रा के लिए घोड़े भी बाहर से मंगवाए गए थे। रथ समिति के धनश्याम चावला ने बताया कि पहली बार जब पारम्परिक रथ नगर भ्रमण पर निकाला गया तब लोगों की संख्या बहुत कम थी ओर इसका मार्ग भी छोटा था। आज रथयात्रा का मार्ग भी विशाल है और समाजों का भी सहयोग है।इसी तरह रमेश लालवानी भी वर्षो से रथयात्रा आयोजन में सिंधी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने बताया कि पहले समाज संगठनों से सम्पर्क करना पड़ता था। लेकिन, आज रथयात्रा विशाल रूप ले चुकी है। जगन्नाथ की कृपा से अपने आप समाज संगठन जुड़ते गए।
साम्प्रदायिक सद्भाव भी

जगदीश चौक में जन्मे इकबाल खान लम्बे समय से रथयात्रा से जुड़े हुए हैंं जो साम्प्रदायिक सद्भाव की एक अलग मिसाल है। वे धर्मोत्सव समिति कार्यकर्ता के रूप में रथयात्रा व्यवस्था संभालते हैं। जिसमें झांकियों को क्रमबद्ध करवाना, रथयात्रा में भक्तों को प्रसाद वितरण की व्यवस्था करना आदि कार्य शामिल हैं।इनके अलावा कैलाश सोनी, लाला वैष्णव सहित रथ समिति के राजेन्द्र श्रीमाली ने बताया कि वे भी मंदिर से पारम्परिक रथ के नगर भ्रमण के इस आयोजन से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि आज यह रथयात्रा किसी एक संगठन का नहीं बल्कि पूरे हिन्दू समाज के बडे़ त्यौहार जैसा आयोजन बन गया है। भगवान जगन्नाथ की पारम्परिक रथयात्रा में लोगों का उत्साह बढने के साथ ही कुछ वर्ष बाद भक्तों के सहयोग से ठाकुरजी के लिए रजत रथ निमार्ण करवाया गया। पहली बार 12 जुलाई 2002 को प्रभु जगन्नाथ को रजत रथ में विराजित कर नगर भ्रमण पर निकाला गया। गोविन्द सोनी ने बताया कि साल 2002 में रजत रथ यात्रा में पहली बार सोनी समाज की ओर से साउंड सिस्टम लगाया। बाद में कई संगठनों के साउंड सिस्टम जुड़ते गए। रथयात्रा के बढ़ते कारवां के साथ इस बार समाज के ठाकुरजी का रजत रथ भी शामिल होगा।
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