प्रति वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मंदिर पर ध्वजा चढ़ाई जाती है। इस पर्व पर सुबह प्रभु जगन्नाथ स्वामी का पंचामृत अभिषेक किया गया। सुबह करीब 8 बजे हवन शुरू हुआ। इसके साथ ही प्रभु की विशेष उत्सव का शृंगार धराया गया। हवन में पूर्णाहुति से पूर्व नौ नई ध्वजाओं को ठाकुर जी के समक्ष अर्पित किया गया। इसके बाद श्रद्धालु ध्वजाओं को लेकर मंदिर के शिखर पर चढ़े। पहले मुख्य ध्वजा चढ़ाई गई। इसके बाद गुंबद के चारों ओर ध्वजा चढ़ाई गई। इसके बाद मंदिर की परिक्रमा में मौजूद भगवान शिव , गणपति, सूर्य और दुर्गा माता के मंदिरों पर भी ध्वजा चढ़ाई गई। इसके बाद हवन के पूर्णाहुति हुई। राजभोग की आरती हुई। मंदिर के गजेंद्र पुजारी ने बताया कि महोत्सव को लेकर शाम को श्रद्धालुओं की प्रसादी का आयोजन हुआ। आयोजन में भावेश, लोकेश, अशोक पुजारी, गोपालसिंह सहित कई श्रद्धालुओं का विशेष सहयोग रहा।
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भजनों पर झूमे श्रद्धालु मंदिर में सुबह से भक्तों बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने एक से बढकऱ एक भजनों की प्रस्तुति दी। इन भजनों पर अन्य श्रद्धालु झूमने लगे। इधर जोधपुर के बड़ा रामद्वारा के रामप्रसाद महाराज और उनके भक्तों ने दोपहर तक भजन-कीर्तन किए।
भजनों पर झूमे श्रद्धालु मंदिर में सुबह से भक्तों बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने एक से बढकऱ एक भजनों की प्रस्तुति दी। इन भजनों पर अन्य श्रद्धालु झूमने लगे। इधर जोधपुर के बड़ा रामद्वारा के रामप्रसाद महाराज और उनके भक्तों ने दोपहर तक भजन-कीर्तन किए।
सात दिन चला था उत्सव पुजारी रामगोपाल ने बताया कि जगदीश मंदिर के निर्माण साथ ही विक्रम संवत 1709 की द्वितीय वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को पाट उत्सव शुरू हुआ। इस दिन प्रभु गर्भगृह में पाट पर विराजे। इस दिन से सात दिन तक लगातार विविध धार्मिक आयोजन हुए। जेष्ठ शुक्ल षष्ठी को मंदिर पर ध्वजा चढ़ाने के साथ ही उत्सव भी सम्पन्न हुआ।