भाइयों का प्रेम हो राम-लक्ष्मण जैसा
हुमड़ भवन में आयोजित धर्मसभा में सुमित्रसागर महाराज ने कहा कि भगवान के पास जो जैसी भावना लेकर जाता है। उसकी भावना अनुरूप ही उसका कार्य होता है। उन्होंने कहा कि भाइयों में राम-लक्ष्मण की तरह प्रेम होना चाहिए। सगे भाइयों में कभी भी स्त्री के राग से परस्पर विध्वंस नहीं होना चाहिए।भाई की धन सम्पदा तो छीन सकते हो, लेकिन उसका भाग्य नहीं छीन सकते। सकल दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि 108 सौधर्म इन्द्रों के द्वारा चमत्कारिक सहस्रनाम विधान अनवरत जारी है। मंजू गदावत ने बताया कि प्रात: पूजा,अभिषेक, शांति धारा एवं विधान पूजन हुआ।
हुमड़ भवन में आयोजित धर्मसभा में सुमित्रसागर महाराज ने कहा कि भगवान के पास जो जैसी भावना लेकर जाता है। उसकी भावना अनुरूप ही उसका कार्य होता है। उन्होंने कहा कि भाइयों में राम-लक्ष्मण की तरह प्रेम होना चाहिए। सगे भाइयों में कभी भी स्त्री के राग से परस्पर विध्वंस नहीं होना चाहिए।भाई की धन सम्पदा तो छीन सकते हो, लेकिन उसका भाग्य नहीं छीन सकते। सकल दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि 108 सौधर्म इन्द्रों के द्वारा चमत्कारिक सहस्रनाम विधान अनवरत जारी है। मंजू गदावत ने बताया कि प्रात: पूजा,अभिषेक, शांति धारा एवं विधान पूजन हुआ।
हृदयहीन करता है व्यर्थ खर्चा
मुनि शास्त्रतिलक विजय ने कहा कि बेटे की शादी के लिए लाखों का खर्च करें और भगवान के महोत्सव के लिए कुछ न करें। बेटा विदेश से आ रहा है तो एयरपोर्ट लेने जाएंगे। धर्मगुरु विहार करने आ रहे है तो गांव के बाहर भी लेने न जाएं। इसका मतलब हुआ कि संबंधित व्यक्ति हृदय विहिन है।
मुनि शास्त्रतिलक विजय ने कहा कि बेटे की शादी के लिए लाखों का खर्च करें और भगवान के महोत्सव के लिए कुछ न करें। बेटा विदेश से आ रहा है तो एयरपोर्ट लेने जाएंगे। धर्मगुरु विहार करने आ रहे है तो गांव के बाहर भी लेने न जाएं। इसका मतलब हुआ कि संबंधित व्यक्ति हृदय विहिन है।
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आयड़ तीर्थ पर आचार्य यशोभद्र सूरिश्वर की निश्रा में गुरुवार को ज्योतिष की कक्षा में जिज्ञासुओं को अवकहडा यंत्र तथा वर्ग मैत्री का शिक्षण दिया गया। साथ ही स्वलिखित जैन हस्त रेखा ग्रंथ के आधार पर मुख्य रेखाओं तथा ग्रहों का प्रत्यक्ष दर्शन कराया गया। इस मौके पर आचार्य ने विचार व्यक्त किए।
आयड़ तीर्थ पर आचार्य यशोभद्र सूरिश्वर की निश्रा में गुरुवार को ज्योतिष की कक्षा में जिज्ञासुओं को अवकहडा यंत्र तथा वर्ग मैत्री का शिक्षण दिया गया। साथ ही स्वलिखित जैन हस्त रेखा ग्रंथ के आधार पर मुख्य रेखाओं तथा ग्रहों का प्रत्यक्ष दर्शन कराया गया। इस मौके पर आचार्य ने विचार व्यक्त किए।
सोच बदलना आवश्यक
जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ के तत्वावधान में आराधना भवन में पन्यास प्रवर श्रुत तिलक विजय ने धर्मसभा में कहा कि सुख-दु:ख की संवेदना का संबंध बाह्य सामग्री के साथ नहीं होकर आंतरिक सोच से है। आपकी सोच गलत दिशा में है तो पसंदीदा सामग्री पास होते हुए भी दु:ख का संवेदन होता है और यदि सही दिशा में आपकी सोच चल रही है तो बाह्य सामग्री खराब मिलने पर भी सुख का संवेदन हो सकता है।
जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ के तत्वावधान में आराधना भवन में पन्यास प्रवर श्रुत तिलक विजय ने धर्मसभा में कहा कि सुख-दु:ख की संवेदना का संबंध बाह्य सामग्री के साथ नहीं होकर आंतरिक सोच से है। आपकी सोच गलत दिशा में है तो पसंदीदा सामग्री पास होते हुए भी दु:ख का संवेदन होता है और यदि सही दिशा में आपकी सोच चल रही है तो बाह्य सामग्री खराब मिलने पर भी सुख का संवेदन हो सकता है।
साधना का सूत्र समता
आयड़ वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में ऋषभ भवन में मुनिश्रेष्ठ प्रेमचंद ने धर्मसभा में कहा कि साधना का एक सूत्र है-समता, जो समता के क्षण का अनुभव करता है। वह परमात्मा का दर्शन करता है। समता का दर्शन परमात्मा का दर्शन है। जो व्यक्ति समता की साधना करता है, वह परमात्मा की आराधना करता है।
आयड़ वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में ऋषभ भवन में मुनिश्रेष्ठ प्रेमचंद ने धर्मसभा में कहा कि साधना का एक सूत्र है-समता, जो समता के क्षण का अनुभव करता है। वह परमात्मा का दर्शन करता है। समता का दर्शन परमात्मा का दर्शन है। जो व्यक्ति समता की साधना करता है, वह परमात्मा की आराधना करता है।