राजसमंद के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर भगवान कृष्ण के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। श्रीनाथजी वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्रीय पीठासीन देव हैं, जिन्हें पुष्टिमार्ग या वल्लभाचार्य की ओर से स्थापित वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है। श्रीनाथजी की मूर्ति पहले मथुरा के निकट गोकुल में स्थित थी। परंतु जब औरंगजेब ने इसे तोडऩा चाहा, तो वल्लभ गोस्वामीजी इसे राजपूताना (राजस्थान) ले आए। जिस स्थान पर मूर्ति की पुन: स्थापना हुई, उस स्थान को नाथद्वारा कहा जाने लगा। आराध्य प्रभु को जन्माष्टमी के दिन प्रात: मंगला की झांकी के बाद परंपरानुसार श्रीजी बावा को पंचामृत स्नान कराया जाता है। दर्शन लाभ के लिए सैंकड़ों वैष्णव श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। वहीं रात 12 बजे 21 तोपों की सलामी के साथ जन्मोत्सव मनाया जाता है। दूसरे दिन नंदमहोत्सव में श्रीजी बावा के सम्मुख केसर हल्दी युक्त दही की होली खेली जाती है। इस बार सभी आयोजन नहीं होंगे, लेकिन तोपों की सलामी दी जाएगी।
चारभुजा गढ़बोर का मन्दिर मेवाड़ के चार धाम में से एक माना जाता है। मंदिर में मुख्य मूर्ति एक ऊंचे आसन पर विराजित है और भगवान श्रीकृष्ण के चारभुजानाथ के सुदर्शन स्वरूप की है जिसकी चार भुजाओं में शंख, चक्र गदा और कमल पुष्प धारण किए हुए है। ये भगवान विष्णु का दुष्टों का संहार करने वाल स्वरुप है। मेवाड़ के चार धामों में श्रीनाथजी (नाथद्वारा), एकलिंग (कैलाशपुरी), द्वारकाधीश (कांकरोली) एवं चारभुजा (गढबोर) है। इनमें चारभुजा मंदिर, जो प्रभु बद्रीनाथ को समर्पित है। यहां इन्हें छोगाला नाथ भी कहा जाता है। यहां की जलझूलनी एकादशी बहुत ही प्रसिद्ध है। गढ़बोर में चारभुजानाथ का प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की एकादशी (जलझूलनी एकादशी) को विशाल मेला लगता है। चारभुजा गढ़बोर में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां पर आने वाले भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
मेवाड़ के प्रख्यात कृष्णधाम श्रीसांवलियाजी मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र बन चुका है। इसे मेवाड़ का वृंदावन धाम भी कहा जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी से पहले मंदिर पर भव्य सजावट होती हैै तो जन्माष्टमी पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है। चित्तौडगढ़़ से करीब 41 किलोमीटर दूर मण्डपिया गांव में स्थित भगवान सांवलिया सेठ के इस मंदिर में दर्शनों के लिए पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। हर वर्ग व उम्र के लोग पूरी श्रद्धा से यहां आते हैं। भगवान श्री सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से बताया जाता है। किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल है जिनकी वह पूजा किया करती थी। सांवलिया सेठ के बारे में यह मान्यता है कि नानी बाई का मायरा करने के लिए स्वयं श्रीकृष्ण ने वह रूप धारण किया था। लोग यहां जितना चढ़ाते हैं, उससे ज्यादा उन्हें वापस मिलता है। इसलिए व्यापारी व्यापार को बढ़ाने के लिए बिजनेस पार्टनर बनाते हैं।