गुरु रूठे तो भाग्य रूठे
साध्वी अभ्युदया ने कहा कि गुरु को कभी रूठने नहीं देना है। गुरु रूठ जाए तो भाग्य आपसे रूठ जाएगा। लक्ष्य तक पहुंचना है तो गुरु की अंगुली पकड़ लो। वो भवसागर पर करवा देगा। गुरु सौभाग्य से मिलते हैं। साध्वी अभ्युदया ने ये बात वासुपूज्य मंदिर स्थित दादाबाड़ी में विशेष प्रवचन में कही। गुरु के बिना जीवन की गति नहीं है। जीवन में कभी भी कोई गुरु बन जाता है, लेकिन अंतिम समय में सच्चा गुरु ही जीवन को पार लगा सकता है।
साध्वी अभ्युदया ने कहा कि गुरु को कभी रूठने नहीं देना है। गुरु रूठ जाए तो भाग्य आपसे रूठ जाएगा। लक्ष्य तक पहुंचना है तो गुरु की अंगुली पकड़ लो। वो भवसागर पर करवा देगा। गुरु सौभाग्य से मिलते हैं। साध्वी अभ्युदया ने ये बात वासुपूज्य मंदिर स्थित दादाबाड़ी में विशेष प्रवचन में कही। गुरु के बिना जीवन की गति नहीं है। जीवन में कभी भी कोई गुरु बन जाता है, लेकिन अंतिम समय में सच्चा गुरु ही जीवन को पार लगा सकता है।
भाव से किए धर्म से मिलता फल
मुनि भाग्य सुंदर ने कहा कि भाव से किए जाने वाले धर्म से फल अवश्य मिलता है। वे जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जिनालय समिति की ओर से सेक्टर 4 स्थित शंातिनाथ सोमचन्द्र सूरी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है।
मुनि भाग्य सुंदर ने कहा कि भाव से किए जाने वाले धर्म से फल अवश्य मिलता है। वे जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जिनालय समिति की ओर से सेक्टर 4 स्थित शंातिनाथ सोमचन्द्र सूरी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है।
प्रेम के लिए आत्म स्वरूप को समझें
आयड़ स्थित ऋषभ भवन में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य ज्ञानचंद्र ने कहा कि प्राणी मात्र के साथ अपनत्व का आंतरिक संबंध जिस कड़ी से जुड़ता है, वह प्रेम है। प्रेम से बढ़कर इस संसार में अन्य कुछ भी पवित्र नहीं है, लेकिन प्रेम के वास्तविक स्वरूप को समझना, जीवन के समस्त आचरण में रचा-बसा लेना सरल कार्य नहीं है।
आयड़ स्थित ऋषभ भवन में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य ज्ञानचंद्र ने कहा कि प्राणी मात्र के साथ अपनत्व का आंतरिक संबंध जिस कड़ी से जुड़ता है, वह प्रेम है। प्रेम से बढ़कर इस संसार में अन्य कुछ भी पवित्र नहीं है, लेकिन प्रेम के वास्तविक स्वरूप को समझना, जीवन के समस्त आचरण में रचा-बसा लेना सरल कार्य नहीं है।
किसी को हीन नहीं मानें
मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में मंगलवार को आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए विरागरत्न विजय ने कहा कि स्वयं को व दूसरों को हीन मानना छोड़ दें। हकीकत में आत्मा में हीनता होती ही नहीं है। कोई भी शक्तिशाली तत्व हीन कैसे हो सकता है? अहं भाव हो या हीन भाव दोनों आत्मशक्ति से व्यक्ति को विस्मृत बनाते हैं।
मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में मंगलवार को आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए विरागरत्न विजय ने कहा कि स्वयं को व दूसरों को हीन मानना छोड़ दें। हकीकत में आत्मा में हीनता होती ही नहीं है। कोई भी शक्तिशाली तत्व हीन कैसे हो सकता है? अहं भाव हो या हीन भाव दोनों आत्मशक्ति से व्यक्ति को विस्मृत बनाते हैं।
आत्मशक्ति को पहचानें
आयड़ तीर्थ पर आत्मवल्लभ आराधना भवन में मंगलवार को आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए साध्वी लक्षितज्ञा ने कहा कि जो अपनी सहायता नहीं कर सकता, उसकी सहायता तो ईश्वर भी नहीं करता है। पुरूषार्थी व्यक्ति को सभी ओर से प्रोत्साहन और सहयोग प्राप्त हो सकता है।
आयड़ तीर्थ पर आत्मवल्लभ आराधना भवन में मंगलवार को आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए साध्वी लक्षितज्ञा ने कहा कि जो अपनी सहायता नहीं कर सकता, उसकी सहायता तो ईश्वर भी नहीं करता है। पुरूषार्थी व्यक्ति को सभी ओर से प्रोत्साहन और सहयोग प्राप्त हो सकता है।
तेरापंथ स्थापना दिवस मनाया आचार्य भिक्षु ने पहले खुद को आत्म कल्याण रास्ते पर प्रतिष्ठित किया और फिर मार्गदर्शन दिया। ये विचार मुनि प्रसन्न कुमार ने मंगलवार को तेरापंथ धर्मसंघ के स्थापना दिवस पर आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म संघ का गुरु सही रास्ते पर नहीं होगा तो जनता भटक जाएगी। केवल दिखावा, चमत्कार, आडंबर वाले तथाकथित गुरु जनता को भटका देते हैं। सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने स्वागत किया। संरक्षक शांतिलाल सिंघवी, गणेश डागलिया ने भी जानकारी दी।