डिजिटल एडिक्शन की परिणीति है ये गेम
डॉ. पीसी जैन इस बारे में कहते हैं, 12 से 17 साल के बच्चों को हमने ही इस डिजिटल एडिक्शन में डाला है। जब बच्चे को दूध पिलाने, खाना खिलाने और रात को सुलाने तक के लिए इन मोबाइल गे स और कार्टून फिल्मों का सहारा लिया जाता है तो वे इसके आदि क्यों नही होंगे। फिर एक बार वो आदि हो गए तो उन्हें ये गेम रास आने लगता है और उसका अंत इन घटनाओं के रूप में होता है।
डॉ. पीसी जैन इस बारे में कहते हैं, 12 से 17 साल के बच्चों को हमने ही इस डिजिटल एडिक्शन में डाला है। जब बच्चे को दूध पिलाने, खाना खिलाने और रात को सुलाने तक के लिए इन मोबाइल गे स और कार्टून फिल्मों का सहारा लिया जाता है तो वे इसके आदि क्यों नही होंगे। फिर एक बार वो आदि हो गए तो उन्हें ये गेम रास आने लगता है और उसका अंत इन घटनाओं के रूप में होता है।
चीन और अमरीका के हज़ार बच्चों पर किए परीक्षण के अनुसार जब इस तरह के बच्चों की एआईएमआरआई की गई और इसी तरह के दूसरे कोकीन लेने वाले बच्चों की एआईएमआरआई की गई तो उनमें समानता पाई गई। अत: इस डिजिटल एडिक्शन से बचने पर ही हम इस खतरनाक ब्लू व्हेल गेम से बच सकते हंै।
मोबाइल के नहीं खुद के करीब लाएं ब्लू व्हेल गेम के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एक शॉर्ट फिल्म बनाने वाले मुकेश माधवानी के अनुसार, आज की भागम भाग जिंदगी में हर मां-बाप अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं बच्चों के भविष्य की चिंताओं को लेकर अपने बच्चों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाते जिसके कारण वे अपने बच्चों को खोते जा रहे हैं। वहीं, बच्चों को मोबाइल की लत से बचाने के लिए बड़ों को भी इसकी लत छोडऩी होगी क्योंकि बड़ों को देखकर ही बच्चे सीखते हैं। ऐसे में जरूरी है कि मां-बाप मोबाइलमेनिया से खुद भी दूर रहें और बच्चों को भी दूर रखें। इसके अलावा वे अपने बच्चों की हर गतिविधि पर नजर रखे। बच्चों के शरीर पर किसी प्रकार की चोट का निशान हो तो ध्यान दें। बच्चा अगर घर से दूर होने की कोशिश कर रहा हो या अकेला रहने की कोशिश करता है तो बच्चे पर ध्यान दें। बच्चे की शारीरिक व मानसिक गतिविधियों पे ध्यान दें और बच्चों से बराबर मेल-जोल व वार्तालाप बनाए रखें।