जयपुर और उदयपुर शहर में डॉ. सोनी के शोध में सामने आया कि मेन-रोड एवं मुख्य स्थानों पर लगी बड़ी-बड़ी स्ट्रीट-लाइटों के आसपास लगे पेड़ पौधों पर इन कृत्रिम स्रोतों से निकलने वाले प्रकाश का विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। उनकी जैविक क्रियाएं नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही हैं। उनमें प्रकाश संश्लेषण की ओर से भोजन बनाने और पुष्पन प्रक्रिया में भी अवरोध देखा गया है। इसके अतिरिक्त 24 घंटे लगातार प्रकाश मिलने से इन पेड़-पौधों के रंध्र भी असमय खुलते और बंद होते पाए गए। प्रकाश के साथ अंधेरा भी उपयोगी डॉ. सोनी ने बताया कि दुनिया भर में वायु प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया चिंतित है। इनके साथ ही अब प्रकाश प्रदूषण का मुद्दा भी जुड़ गया है। उन्होंने बताया कि पेड़-पौधों के विकास के लिए जितनी जरूरत प्रकाश (सूरज की रोशनी) की होती है, उतनी ही अंधेरे की भी। शहरी क्षेत्रों में दिन में सूर्य के प्रकाश में रहने के बाद कृत्रिम लाइटों के चालू हो जाने से पेड़-पौधों को कभी अंधेरा नहीं मिल पाता। लगातार 24 घंटे लाइट मिलने से पेड़-पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। ये पौधे बाहर से दिखने में सामान्य दिखते हैं, परन्तु आतंरिक रूप से बहुत असामान्य होते हैं। अंधेरे की अनुपलब्धता के कारण इन पौधों की जैविक घड़ी बिगड़ जाती है।
READ MORE : सरकार ने इस हाथ दिया, उस हाथ ले लिया… सरकारी स्कूलों में कुक कम हेल्परों का भुगतान काटा प्रकाश प्रदूषण की वजह से कीटों, मछलियों, चमगादड़ों, चिडिय़ों व दूसरे जानवरों की प्रवासन प्रक्रिया प्रभावित भी हो रही है। इसका पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरनाक प्रभाव डाल रहा है। इससे जानवरों और छोटे-छोटे कीटों की नींद लेने की प्राकृतिक क्रिया बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। यूं बचा सकते हैं पेड़-पौधों को उन्होंने बताया कि कृत्रिम प्रकाश वर्तमान में हमारे जीवन का मुख्य घटक बन गया है, परन्तु सडक़ों पर स्ट्रीट लाइटों को पेड़ों से दूर लगाकर एवं विभिन्न मौकों पर होने वाली कृत्रिम चकाचौंध प्रकाश व्यवस्था को कम करके इस प्रदूषण के दुष्परिणामों को रोका जा सकता है।