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बायोमेडिकल प्लान्ट के कार्मिक नहीं सतर्क : अभी छोटे क्लीनिक नहीं जुड़े प्लांट से

locationउदयपुरPublished: May 21, 2019 03:00:53 pm

Submitted by:

madhulika singh

संभाग के हॉस्पिटल गत सात वर्ष में चार गुना बायो मेडिकल वेस्ट उगलने लगे हैं। वर्ष 2012-13 में रोज करीब तीन सौ किलोग्राम बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण होता था, जो अब बढक़र 1200 से 1300 किलोग्राम प्रतिदिन पर पहुंच गया है, लेकिन वेस्ट निस्तारण के लिए एकमात्र इंसीनरेटर लगा हुआ है

Cooler closes in hospital, patient worried

Cooler closes in hospital, patient worried

भुवनेश पंड्या/उदयपुर . संभाग के हॉस्पिटल गत सात वर्ष में चार गुना बायो मेडिकल वेस्ट उगलने लगे हैं। वर्ष 2012-13 में रोज करीब तीन सौ किलोग्राम बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण होता था, जो अब बढक़र 1200 से 1300 किलोग्राम प्रतिदिन पर पहुंच गया है, लेकिन वेस्ट निस्तारण के लिए एकमात्र इंसीनरेटर लगा हुआ है जिसे 17-17 घंटे चलाना पड़ रहा है। चित्तौडगढ़़ और डूंगरपुर में दो प्लान्ट की स्थापना अंतिम चरणों में है, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण मंडल बोर्ड से हरी झंडी नहीं मिलने से ये शुरू नहीं हो पा रहे हैं।

उदयपुर में वर्ष 2005 में इंसीनरेटर प्लांट की शुरुआत हुई थी। वर्तमान में सूरत की एन विजन कंपनी संभाग के सभी जिलों से बायो मेडिकल वेस्ट संग्रहित कर इसका निस्तारण कर रही है। वर्ष 2012 में इस प्लांट से उदयपुर शहर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौडगढ़़, राजसमन्द व प्रतापगढ़ जिले के 170 हॉस्पिटल जुड़े थे, जो अब बढक़र 450 हो गए हैं। जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को भी इससे जोड़ रखा है। कुल बायोवेस्ट में से आधे से ज्यादा वेस्ट केवल उदयपुर शहर से निकलता है।

शहर से रोज उठता है वेस्ट
पत्रिका टीम शनिवार को उमरड़ा स्थित बायोमेडिकल ट्रीटमेंट प्लान्ट पर पहुंची तो देखा कि वहां कार्यरत कार्मिक पूरी तरह सावधानी नहीं बरत रहे हैं। कुछ बायोमेडिकल वेस्ट प्लान्ट से कुछ दूरी पर खुले में पड़ा था। मेडिकल वेस्ट को लेने के लिए कंपनी ने उदयपुर शहर, चित्तौडगढ़़ और बांसवाड़ा में दो-दो लोडिंग वाहन लगा रखे हैं, जबकि राजसमन्द, प्रतापगढ़ और सिरोही-माउंट आबू के लिए एक-एक वाहन चलाया जाता है। उदयपुर शहर से वेस्ट प्रतिदिन उठाया जाता है, जबकि अन्य जिलों में वेस्ट उठाने के लिए दो दिन में एक बार वाहन जाता है। उदयपुर शहर के कुछ छोटे-छोटे क्लीनिक हैं, उनके बायो मेडिकल वेस्ट का निस्तारण बेहतर तरीके से नहीं किया जा रहा है।

नहीं करते बायोवेस्ट रूल्स की पालना
सुपरवाइजर सिंह ने बताया कि हॉस्पिटल बायोवेस्ट रूल्स का पालन नहीं करते हैं। वे बायोवेस्ट की तीन थैलियों में नियमानुसार अलग-अलग वेस्ट नहीं डालकर उन्हें मिला देते हैं। ऐसे में कई प्रकार की परेशानी होती है। वेस्ट को समाप्त करने के दौरान दिक्कत आती है।

अब होगी बार कोडिंग
बायो मेडिकल वेस्ट की थैलियों की जल्द ही बार कोडिंग शुरू होगी। अस्पतालों में से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट की ऑनलाइन मॉनिटरिंग होगी। किस अस्पताल से कितना बायो वेस्ट निकला और कितना निकलना चाहिए था, इसका पूरा आकलन होगा। बायो वेस्ट को फेंकते मिले तो पकड़े जाने पर बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग एक्ट 1998 में पांच साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मेडिकल बायो वेस्ट निस्तारण एक्ट 1998 में संशोधन कर नया कानून बनाया है। इसके तहत अब प्रत्येक अस्पताल और पैथोलॉजी लैब को प्रदूषण नियंत्रण मंडल से अपने संस्थान का पंजीयन करवाना ही होगा। प्लांटों के वाहनों में जीपीएस लगे हैं। इससे उनके बारे में सभी जानकारी प्रदूषण नियंत्रण मंडल के पास जाएगी।

इंसीनरेटर में बायोवेस्ट को जलाकर निस्तारित किया जाता है। सुपरवाइजर दलपतसिंह ने बताया कि वे मास्क इसलिए नहीं पहनते क्योंकि वे गंध के आदी हो गए हैं। उन्हें बचाव के टीके भी लगे हैं। प्लांट के कार्मिक तय डे्रस के बजाय सामान्य कपड़ों में दिखे। वे संक्रमण को लेकर सावचेत नजर नहीं आए। इंसीनरेटर को बायोवेस्ट की बढ़ती मात्रा देखते हुए मॉडिफाइड किया गया है। वर्तमान में इंसीनरेटर को 17-17 घंटे चलाया जा रहा है।
यह है वर्गीकरण
पीली थैली : शीशी में पैक खराब दवाएं, खराब या कटे हुए अंग, भ्रूण, खून की थैलियां, ऊतकों को रखा जाता है।
सफेद पारदर्शी प्लास्टिक कंटेनर: अंग काटने व सिलने के उपकरण, सूइयां, सीरिंज, स्काल्पेस ब्लेड।
लाल थैली : बोतलें, सीरिंज, दस्ताने, टयूबिंग्स, कैथेटर, मूत्र की थैलियां, इंट्रावीनस ट्यूब।
ये हैं खतरे
हेजाडर्ट वेस्ट खतरनाक होता है, जिससे संक्रमण फैलने की आशंका रहती है। सामान्य पानी में इसके मिलने या जानवर के माध्यम से संक्रमण फैलता है। मक्खियों से भी खतरा रहता है। कचरा बीनने वाले बच्चे इससे संक्रमित हो सकते हैं।
हॉस्पिटल से निकले इंजेक्शन या शार्प नाइफ यदि किसी को चुभ गया तो उसे संक्रमण का खतरा रहता है।
सभी पीएचसी व सीएचसी को इससे जोड़ दिया गया है। वहां से हर दूसरे दिन वेस्ट उठाया जाता है। इसके लिए हम अनुबंध के आधार पर राशि जारी करते हैं। – डॉ दिनेश खराड़ी, सीएमएचओ उदयपुर
हमारा दायरा लगातार बढ़ रहा है। ज्यादातर हॉस्पिटल हमसे जुड़ चुके हैं, लेकिन कुछ छोटे क्लीनिक नहीं जुड़े हैं। जब पूरा वेस्ट डिस्पोज हो जाता है, तब हाइपोक्लोराइड सोल्यूशन डालकर इंसीनरेटर व नीचे के फर्श को साफ किया जाता है। इंसीनरेटर की संख्या इसलिए नहीं बढ़ा रहे हैं क्योंकि चित्तौडगढ़़ और डूंगरपुर के प्लान्ट प्रक्रिया में है, शुरू होते ही हमारा काम आधा हो जाएगा। – कौशलसिंह, अकाउन्टेंट एनविजन कंपनी
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