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महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती विशेष : उदयपुर में यहां पानी पर पद्मासन लगा कर बैठते थे महर्षि दयानंद, video

locationउदयपुरPublished: Feb 12, 2019 02:15:10 pm

Submitted by:

madhulika singh

– नवलखा महल में 137 वर्ष पूर्व करीब सवा 6 माह किया था प्रवास
– इसी दौरान सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव की थी रचना

DAYANAND SARASWATI

महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती विशेष : उदयपुर में यहां पानी पर पद्मासन लगा कर बैठते थे महर्षि दयानंद

मधुलिका सिंह/प्रमोद सोनी. उदयपुर . यों तो आप दूधतलाई कई बार गए होंगे लेकिन इस तथ्य से अनजान होंगे कि यह वही जगह है जहां महर्षि दयानंद सरस्वती पानी की सतह पर ध्यान योग में बैठते थे। ऐसा करते हुए उन्हें एक शिष्य ने देखा था। यह बात उन दिनों की है जब महर्षि दयानंद सरस्वती उदयपुर प्रवास पर आए हुए थे। तब दूधतलाई और माछला मगरा पर अक्सर वह भ्रमण के लिए जाते थे। इसके बाद वह आसन लगाकर समाधिस्थ हो जाते थे।
यह उल्लेख उदयपुर में उनके प्रवास पर आधारित पुस्तकों में है, वहीं गुलाबबाग स्थित नवलखा महल में आर्यावर्त चित्र दीर्घा में भी चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। बाल विवाह, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जनजागरूक लाने वाले और स्वराज्य प्राप्ति का सर्वप्रथम मंत्र फूंकने वाले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती की मंगलवार को 195वीं जयंती है और इस अवसर पर हम उनके उदयपुर प्रवास के दौरान कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं जिनके बारे में लोग नहीं जानते हैं।
उदयपुर से पूरी दुनिया में फैलाया था सत्य का प्रकाश

मेवाड़ की आन-बान-शान की गौरव गाथा महर्षि दयानंद सरस्वती के जिक्र के बिना अधूरी है। महर्षि ने 137 पूर्व यहां सत्यार्थ प्रकाश के जरिए ज्ञान की ज्योत जलाई, जिसकी लौ आज भी आलोकित है। उन्होंने गुलाबबाग स्थित नवलखा महाल में सत्यार्थ प्रकाश का लेखन किया। इसके लिए वह 11 अगस्त 1882 से 27 फरवरी 1883 तक करीब सवा छह माह यहां रुके। कहा जाता है कि वह उत्कृष्ट योगी थे। उनको 18 घंटे की समाधिसुख प्राप्त था और योगज सिद्धियां भी उन्हें प्राप्त थीं लेकिन वे इन्हें प्रदर्शन की वस्तु नहीं समझते थे। ऐसे में वे नवलखा महल के समीप दूधतलाई जलाशय पर जाकर पद्मासन लगा कर ध्यानमग्न बैठते थे। इसे उनके नवदीक्षित शिष्य सहजानंद को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसके अलावा गुलाबबाग में आज भी बरगद का पेड़ है, जो महर्षि दयानंद सरस्वती के यहां आने का साक्षी माना जाता है। बताते हैं कि यह पेड़ करीब 400 साल पुराना है।
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पूर्व महाराणा सज्जन सिंह के निमंत्रण पर आए थे उदयपुर

महर्षि दयानंद सरस्वती 10 अगस्त 1882 को पूर्व महाराणा सज्जन सिंह के निमंत्रण पर उदयपुर आए थे। नवलखा महल के पुरोहित नवनीत कुमार शास्त्री ने बताया कि महर्षि का भवन व आर्यावर्त चित्र दीर्घा देखने के लिए यहां कई पर्यटक आते हैं। आकर्षण का केन्द्र वह स्थान है जहां उन्होंने बैठकर सत्यार्थ प्रकाश की रचना की थी। इस कक्ष में सत्यार्थ प्रकाश स्तंभ बनाया गया है जिस पर उनके उपदेश अंकित हैं। इस कक्ष में प्रवेश करते ही उनके अनुयायी उन्हें याद कर भावुक हो उठते हैं। जिस कक्ष में वे ठहरे थे, उसे अभी तक छेड़ा नहीं गया है। भवन की जर्जरावस्था देखते हुए उसका जीर्णोद्धार किया गया है। पर्यटकों को महर्षि से जुड़ी पुस्तकें भी उपलब्ध कराई जाती हैं।
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