उदयपुर

मिलिए उदयपुर की मलाला से…किसी का खेत बिका तो किसी ने मवेशी चराकर जुटाई फीस…

परिजनों व समाजजनों ने किया विरोध, पर शिक्षा के द्वार पर हारी नहीं

उदयपुरJul 12, 2018 / 07:33 pm

Krishna

मिलिए उदयपुर की मलाला से…किसी का खेत बिका तो किसी ने मवेशी चराकर जुटाई फीस…

राकेश शर्मा राजदीप/उदयपुर . किसी ने पढ़ाई के लिए घरों में बर्तन मांजे, समाजजनों का विरोध हुआ तो कलक्टर से मदद मांगी…किसी के पिता ने गहने व खेत बेचे…दिन में पशु चराना और रात को चिमनी की रोशनी में पढ़ाई.. टीवी तो कभी देखी ही नहीं बस किताबों से इस कदर दोस्ती हुई कि अभाव को अपने संघर्ष से मात दी। ऐसे में कोई बनी गांव में दसवीं पास करने वाली पहली लडक़ी तो कोई आठ भाई-बहनों में अकेली शिक्षित। जज्बा ऐसा कि बारिश में भी नहीं रुकी। बीच में नाले में पानी बहा तो रस्से के सहारे आती-जाती। वक्त के साथ कदमताल नहीं छोड़ा, अब इनमें से कोई शिक्षिका बनी तो कोई अब प्रशासनिक अधिकारी और चिकित्सक बनने के लिए और पढ़ाई में जुटी हैं। ये आदिवासी अंचल की मलाला हैं, जो इन दिनों यहां उदयपुर में रहकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। पढ़ाई के लिए संघर्ष बताते हुए इनके आंसू टपक पड़े।भैंस चराने गई और चुपके से कलक्टर को किया फोन
पढ़ाई का जज्बा लेकिन पिता राजी नहीं। एक दिन कलक्टर के नम्बर पंचायत से लिए। भैंस चराने के बहाने जंगल गई और वहां से कलक्टर को फोन किया कि मुझे पढऩा है, मदद कीजिए। कलक्टर ने सरपंच को घर भेजा। ग्रामीणों ने पिता से कहा कि बच्ची को मत पढाओ। फिर भी हिम्मत नहीं हारी। पिता ने हामी भरी लेकिन पांच किलोमीटर दूर आने-जाने के पैसे नहीं। मजदूरी कर किराये की राशि का इंतजाम कर पढ़ी। नम्बर अच्छे आए तो परिजनों की मानसिकता बदली और गहने, खेत बेचकर पढ़ाया। दिन में पशु चराती और रात को चिमनी की रोशनी में पढ़ी उदयपुर जिले के मालों का ओड़ा गांव की मांगी मीणा का रीट में चयन हुआ है। अब वह उदयपुर में आरएएस की तैयारी कर रही है। परिजनों के साथ समाजजनों ने भी उसकी पढ़ाई का विरोध किया। इसके बावजूद वह गांव की पहली लडक़ी बनी, जिसने सबसे पहले दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की। घर से दूर स्कूल और बारिश में रस्सी के सहारा नाला पार करने की जहमत उठाई।
 

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इन्होंने भी संघर्ष से पाई शिक्षा
इसी तरह बांसवाड़ा की हूकी डिंडोर, गुलाबी मईड़ा, रीना कटारा, प्रतापगढ़ की दिव्यांग लीला व चावण्ड की आशा मीणा ने भी अभाव के साये में पढ़ाई की। अधिकतर के घरों में आज भी बिजली नहीं है। इनमें से कइयों ने पिता व भाई के साथ मजदूरी कर फीस की व्यवस्था की।

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