scriptकभी हिंदी भी नहीं बोल पाती थी,  अब फर्राटेदार अंग्रेजी में विदे शियों को सिखाती हैं खाने में तड़का लगाना | Meet Udaipur's ShashiKala Who Teach Indian Cooking To Foreigners | Patrika News

कभी हिंदी भी नहीं बोल पाती थी,  अब फर्राटेदार अंग्रेजी में विदे शियों को सिखाती हैं खाने में तड़का लगाना

locationउदयपुरPublished: Jun 02, 2023 10:58:07 pm

Submitted by:

madhulika singh

उदयपुर की शशि ने कम उम्र में शादी, पति की असमय मृत्यु का दर्द सहते हुए व दो बेटों की जिम्मेदारी उठाते हुए शुरू की कुकिंग क्लासेस, अब तक सैंकड़ों फ्रेंच, स्पेनिश, इटेलियन, जर्मन आदि को सिखा चुकीं भारतीय खाना बनाना, वे भी कायल हुए श शि की हिम्मत और जज्बे को देखकर

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मधुलिका सिंह. शशि के सामने जिंदगी ने मुश्किलों के पहाड़ खड़े कर दिए थे। कभी लगता नहीं था कि वे उन पहाड़ों पर चढ़ने में सफल होंगी लेकिन शशि ने उन तमाम तूफानों को पार करते हुए आ खिर फतह हासिल कर ही ली। उदयपुर की अंबामाता निवासी शशिकला सनाढ्य उदयपुर की किचन क्वीन हैं और कुकिंग क्लासेस चलाती हैं जहां दुनिया भर के विदेशी पर्यटक उनसे खाना बनाना सीखते हैं। शशि ने छोटे से गांव की होने के कारण और अधिक शिक्षित ना होने के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारी। विदे शियों से बात करने के लिए अंग्रेजी सीखी और खाने में काम आने वाले मसालों के नाम भी सीखे ताकि वे उन्हें उनकी ही भाषा में उन्हें ये समझा सकें। इस काम में उनके दोनों बेटों ने उनका पूरा साथ दिया। आज वे ना सिर्फ फर्राटे से अंग्रेजी में उनसे बात करती हैं ब ल्कि इटेलियन, स्पेनिश, फ्रेंच आदि भाषाओं में किस मसाले को क्या बोलते हैं, ये उन्हें समझा देती हैं।
विदेशियों के कपड़े व बर्तन तक धोए फिर शुरू की कुकिंग क्लास

शशिकला सनाढ्य बताती हैं, मेरी शादी 19 साल की उम्र में हो गई थी। मैं नाथद्वारा के पास एक छोटे से गांव ओड़ा में रहती थी और शादी के बाद उदयपुर आ गई। तब मैं ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाती थी, मेवाड़ी में ही बात करती थी। दो बेटों के होने के बाद वर्ष 2001 में दुर्भाग्य से पति की मृत्यु हो गई और मैं अकेली रह गई। मैं एक ब्राह्मण परिवार से हूं इसलिए मेरे पति की मृत्यु के बाद मुझे बहुत सख्त नियमों का पालन करना था। एक साल तक मुझे अपना घर छोड़ने की इजाजत नहीं थी, और अपने पति की मौत के शोक के पहले 45 दिनों तक मुझे अपने कमरे के कोने में बैठना पड़ा और किसी से बात नहीं करनी थी। हर दिन मेरे समुदाय की महिलाएं मेरे घर आतीं और सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक मेरे सामने रोतीं। करीब 45 दिनों तक यही मेरी जिंदगी थी। मेरे धर्म में विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं है। मुझे किसी भी रंग की साड़ी पहनने की अनुमति नहीं थी। समय के साथ चीजें अब धीरे-धीरे बदल रही हैं। चूंकि मैं एक छोटे से गांव से हूं, मुझे उचित शिक्षा का अवसर नहीं मिला। तब उदयपुर में जगदीश चौक के गणगौर घाट क्षेत्र में रहा करती थी। तब बच्चों की परवरिश और गुजारा चलाने के लिए विदेशियों के कपड़े व बर्तन धोने शुरू किए। वहीं आयरलैंड का एक व्यक्ति आया और उसे भारतीय खाने का शौकीन था। दोनों बेटे उसे घर ले आए और मेरे हाथ का खाना खिलाया तब उसने कुकिंग क्लास खोलने का आइडिया दिया। तब मुझे बहुत घबराहट हुई कि ऐसा संभव नहीं है लेकिन बेटों ने हिम्मत और आत्मविश्वास दिलाया तब मैंने कुकिंग क्लास शुरू की। आज ये आलम है कि दुनिया भर के देशों के लोगों को अब तक खाना बनाना सिखा चुकी हूं और उदयपुर में कुकिंग क्लासेस में खूब नाम है। सोशल मीडिया पर भी अब आ चुकी हूं। अब ये भी लगता है कि उस समय अगर हिम्मत हार जाती तो आज इस मुकाम तक नहीं पहुंचती।
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