यह है परंपरा सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत मेवाड़ भर में गणगौर उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। समाज स्तर पर ईसर-गणगौर के रूप में शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। राजघराने के समय से यह परंपरा निभाई जाती रही है, जिसे विश्व पटल पर विशेष पहचान मिली हुई है। समाजों के स्तर पर गणगौर प्रतिमाओं की सवारियां महिलाओं की ओर से निकाली जाती है, जो शोभायात्रा के रूप में गणगौर घाट पहुंचती है। जहां प्रतिमाओं की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
मंदिर में की पूजा
बड़ा भोईवाड़ा स्थित राजमाली समाज के मंदिर में गणगौर पूजा की गई। समाज के अनिल कुमार माली ने बताया कि कोरोना प्रकोप और लॉकडाउन के चलते चंद महिलाओं ने ही पूजा की रस्म पूरी की। प्रतिमाओं को घाट पर नहीं ले जाने के कारण मंदिर में ही घाट के जल से कुसुंबे दिए और आरती की गई।