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घाट पर छाई रही वीरानी, घरों में पूजी गणगौर

locationउदयपुरPublished: Mar 28, 2020 02:32:26 am

Submitted by:

Pankaj

मेवाड़ में पहली बार नहीं निकली गणगौर सवारी, गणगौर पूजन का पहला दिन, गणगौर प्रतिमाओं ने की मंदिर परिक्रमा

घाट पर छाई रही वीरानी, घरों में पूजी गणगौर

घाट पर छाई रही वीरानी, घरों में पूजी गणगौर

उदयपुर . पिछोला के घाट पर गणगौर उत्सव होने के कारण ही ‘गणगौर घाटÓ नाम हुआ। लिहाजा गणगौर उत्सव पर हर साल आबाद रहने वाले गणगौर घाट पर इस साल वीरानी छाई रही। यह पहला मौका है, जब गणगौर पर्व घरों में ही सिमट कर रह गया और दुनियाभर में पहचान रखने वाली गणगौर सवारी इस बार नहीं निकल पाई।
चैत्र शुक्ल तृतीया पर गणगौर पूजन किया गया। लॉकडाउन के चलते गणगौर पूजन की परंपरा घरों में ही निभाई गई। घरों में छोटी प्रतिमाओं का ही शृंगार किया और पूजा की गई। समाज स्तर पर होने वाले आयोजन भी मंदिरों तक ही सीमित रहे, इनमें तीन-चार महिलाओं ने ही गणगौर प्रतिमाओं को मंदिर परिक्रमा कराकर सवारी की रस्म पूरी की। जिन समाजों की ओर से समाज स्तर पर आयोजन होते हैं, उन्होंने भी कार्यक्रम को रस्म के तौर पर पूरा किया।
यह है परंपरा

सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत मेवाड़ भर में गणगौर उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। समाज स्तर पर ईसर-गणगौर के रूप में शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। राजघराने के समय से यह परंपरा निभाई जाती रही है, जिसे विश्व पटल पर विशेष पहचान मिली हुई है। समाजों के स्तर पर गणगौर प्रतिमाओं की सवारियां महिलाओं की ओर से निकाली जाती है, जो शोभायात्रा के रूप में गणगौर घाट पहुंचती है। जहां प्रतिमाओं की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
मंदिर में की पूजा
बड़ा भोईवाड़ा स्थित राजमाली समाज के मंदिर में गणगौर पूजा की गई। समाज के अनिल कुमार माली ने बताया कि कोरोना प्रकोप और लॉकडाउन के चलते चंद महिलाओं ने ही पूजा की रस्म पूरी की। प्रतिमाओं को घाट पर नहीं ले जाने के कारण मंदिर में ही घाट के जल से कुसुंबे दिए और आरती की गई।
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