सन् 1869 में हैजा, प्लेग के कारण मेवाड़ बना था शरणार्थी केंद्र सन् 1869 में अकाल के बाद पूरा राजपूताना हैजा, प्लेग व भुखमरी से संकटग्रस्त था। उस त्रासदी में राजस्थान में लगभग 20 प्रतिशत जनहानि हुई। मेवाड़ में भी बड़ी संख्या में इस महामारी से जानमाल का नुकसान हुआ। इस स्थिति में मेवाड़ के सरदारों द्वारा महाराणा शंभु सिंह (रा. 1861-1874) को उदयपुर छोड़ कर जाने का आग्रह किया गया था किंतु महाराणा द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया गया। ऐसे समय में राज्य ने अपने पिछले अनुभव से सीखते हुए महाराणा शंभु सिंह के नेतृत्व में मेवाड़ में राहत कार्यों को प्राथमिकता दी गई थी। इस आपात स्थिति में राजपूताना के विभिन्न क्षेत्रों की जनता ने मेवाड़ में शरण ली। मेवाड़ की जनता ने शरणार्थियों के साथ मानवीयता का परिचय दिया एवं हर संभव चिकित्सा, खाद्यान्न एवं आवास उपलब्ध करवाने का प्रयास किया। मेवाड़ के महाराणा के आदेशानुसार प्रधान केसरी सिंह कोठारी द्वारा मालवा क्षेत्र से अन्न मंगवाकर, दैनिक कार्यकर भरण-पोषण करने वाली गरीब जनता में वितरित करवाया गया था। जिस क्षेत्र में रोग से प्रभावित जनता एवं शरणार्थियों का निवास था उनमें स्वच्छ भोजन वितरित कर स्वास्थ्य सुधार के प्रयास किये गये थे। राज्य द्वारा लिये जाने वाले करों में छूट प्रदान की गयी। महामारी की रोकथाम के बाद राजपूताना के विभिन्न क्षेत्रों से आये शरणार्थियों को आवास हेतु 11000 रुपए की राशि प्रदान की गई।
1896 में महामारी से बचाव के लिए की आइसोलेशन व्यवस्था सन् 1878-1879 अतिवृष्टि एवं उसके बाद अकाल से फैली महामारी के कारण सम्पूर्ण राजपूताना में आपात स्थिति बन गइ थी किंतु महाराणा सज्जन सिंह (रा. 1874-1884) एवं मेवाड़ सरकार के प्रभावी प्रयासों के कारण मेवाड़ में जनता पिछली आपदाओं की अपेक्षा सुरक्षित रही। इस समय मेवाड़ में लगभग 50 प्रतिशत पशु संपदा की ही हानि हुई। पिछले दशकों में घटित हुई आपदाओं के अनुभवों के कारण महाराणा फतेह सिंह (रा. 1884-1930) के काल के आरम्भ से ही निर्माण योजनाओं पर कार्य किया जाने लगा। इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य आधुनिक मेवाड़ के निर्माण के साथ भविष्य में आने वाली आपदाओं के लिए जनमानस को तैयार करना था। सन् 1890-1892 में मेवाड़ के आस-पास के राज्यों में हैजा, चेचक फैलने के कारण वहां की जनता ने मेवाड़ में शरण ली। महाराणा द्वारा राहत कार्य हेतु 1 लाख रुपए मंजूर करके ‘आपात राहत कोष’ का गठन किया। चिकित्सा व्यवस्था हेतु मेवाड़ के सभी क्षेत्रों से वैद्य-हकीमों को नियुक्त किया गया। सन् 1896 ई. में उदयपुर में फैले हैजे के कारण 620 मृत्यु दर्ज हुई। सन् 1899 ई. में वापस अकाल व हैजा, चेचक जैसी महामारियों का फैलना प्रारम्भ हुआ। पिछली जनहानि को ध्यान में रख कर मेवाड़ सरकार द्वारा ‘आइसोलेशन’ की प्रक्रिया को अपनाया गया। संक्रमित रोगियों को नगर से दूर कैंप में रखकर चिकित्सा व्यवस्था सुनिश्चित की गई एवं उदयपुर नगर में स्वच्छता व्यवस्था को सुचारू रूप से प्रारम्भ किया गया।विगत शताब्दियों में मेवाड़ राज्य द्वारा महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के समय चिकित्सा, आइसोलेशन, राहत सामग्री की उपलब्धता तथा स्वच्छता के अभियान के जितने भी कार्य किये गये वह आज भी उतने ही प्रासंगिकता लिए हुए हैं। आपात स्थितियों में राहत कार्य के लिये मेवाड़ राज्य एवं जनता दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी।
सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करना जरूरी वर्तमान में नोवेल कोरोना वायरस (कोविड 19) से निपटने के लिए भी कुछ इसी तरह के इंतजामात किए जा रहे हैं। महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी अरविन्द सिंह मेवाड़ ने सभी से आग्रह किया है कि इस रोग की रोकथाम के लिए हम सभी को जागरूक रहना चाहिए और सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियानों का समर्थन करना चाहिए। बीमारी की रोकथाम के लिए सरकार के सभी दिशा-निर्देशों की पालन भी करनी चाहिए। इस मुश्किल समय में इस वैश्विक कोविड महामारी को हराने में हम सभी को मिलकर प्रयास करने होंगेे। यही सफ लता का एकमात्र सूत्र है, जो हमें बहुत जल्द जीत की ओर अग्रसर करेगा।