माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान (टीआरआई)की ओर से 2 साल पूर्व गवरी को बढ़ावा देने के लिए कुछ दिन तक इसका मंचन कराया गया था। इसके बाद गवरी मंचन और इस पर शोध आदि कार्य बंद हैं। गवरी प्रेमियों कहना है कि टीआरआई को आदिम परम्पराओं पर शोध के लिए खासा बजट मिलता है। टीआरई गंभीरता से कार्य करे तो इस लोकनाट्य को नए और अंतरराष्ट्रीय आयाम दिए जा सकते हैं।
इसलिए घट रहे गवरी के कलाकार गवरी के अधिकांश कलाकार गरीब आदिवासी परिवारों से हैं। साल में एक बार 40 दिन तक उपवास रख कर संकल्प के साथ मंचन करते हैं। गवरी खेलने की परम्परा मेवाड़ में सालों से चली आ रही है। जीवन यापन के लिए आय अर्जित नहीं होने और किसी प्रकार का प्रोत्साहान नहीं मिलने से कलाकारों का इस मूल्यवान विद्या से मोह भंग हो रहा है।
पर्यटन को मिल सकता है बढ़ावा गवरी के लिए कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि गवरी में मेवाड़ के लोक जीवन के जीवंत दर्शन होते हैं। गवरी के कलाकार स्वस्थ मनोरंजन के साथ लोगों लाभप्रद संदेश भी देते हैं, इस लोकनाट्य उदयपुर संभाग में पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। गवरी देख कर पर्यटक स्थानीय शिल्पकारों द्वारा तैयार किए गए वस्त्र, खिलौने आदि खरीदने के लिए प्रेरित होंगे। इससे शिल्पकारों को रोजगार मिल सकेगा।
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पत्रकार डब्ल्यू डेविड क्यूविक, लोकेश पालीवाल, हरीश आग्नेय लंबे समय से गवरी संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। हरीश गवरी पर शोध कार्य कर कर पुस्तक लिख चुके हैं। तीनों कार्यकर्ताओं ने गवरी पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है। अब इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंचन का प्रयास कर रहे हैं। गवरी को विकिपीडिया पर भी इंद्राज किया है। पालीवाल का कहना है कि गवरी को पारंपारिक सांस्कृतिक धरोहर श्रेणी में शामिल कराए जाने की महती आवश्यकता है।
टीआरआई गवरी के विकास के लिए विशेष कार्य नहीं कर रहा है। गवरी राजस्थान और मेवाड़ का प्रमुख लोकनाट्य है। इसके कलाकार लगातार कम हो रहे हैं। यही हाल रहा तो यह लोकनाट्य समय के साथ विलुप्त हो जाएगा। गवरी के संरक्षण के लिए टीआरआई को विशेष प्रयास करने चाहिए।
डब्ल्यू डेविड क्यूविक, गवरी के लिए कार्य कर रहे विदेशी पत्रकार
पूर्व बजट मिला था जब गवरी का 40 दिनों तक मंचन कराया गया था। वर्तमान में गवरी को लेकर हमारे पास कोई विशेष प्रोजेक्ट नहीं है। बाबूलाल, निदेशक, टीआरआई उदयपुर