यह निष्कर्ष मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के शोधार्थी डॉ विकास चौधरी के बजरंग बली पर विशेष शोध में सामने आया। डॉ. विकास संस्कृत और प्राकृत भाषा के धार्मिक गं्रथों के आधार पर हनुमानजी के जीवन चरित्र का अध्ययन और संकलन कर रहे हैं। अब तक के शोध में सामने आया है कि हनुमानजी का जीवन ज्ञान, कर्म और भक्ति योग का उत्कृष्ट उदाहरण है। वे बल, बुद्धि और विद्या का मानव कल्याण के लिए सार्थक उपयोग करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
प्रबंधन के कुशल गुरु हनुमान
लंका तक सेतु निर्माण के लिए नल-नील का उत्साहवर्धन करते हैं। इसके लिए सामग्री जुटाने में अहम भूमिका भी निभाते हैं। मानवता के लिए समर्पित समस्त सैन्य संगठनों को एक सूत्र में बांधने का सफल कार्य करते हैं, ताकि आसुरी शक्तियों का प्रबल और सशक्त तरीके से प्रतिकार किया जा सके। सुग्रीव संधि इसका सटीक उदाहरण है। लक्ष्मण के उपचार के लिए वैद्य सुषैण को लाकर युद्ध में कुशल प्रबंधन के मानवीय नियमों की नींव रखते हैं।
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बहुभाषाविद् हनुमान
शोध बताता है कि रामायणकाल की प्रमुख भाषा संस्कृत थी, परन्तु हनुमानजी को विश्व की तमाम भाषाओं का ज्ञान था। लंका में माता सीता को श्रीराम का संदेश देने के लिए हनुमान अयोध्या के आम नागरिक की भाषा का प्रयोग करते हैं, ताकि सीता विश्वस्त हो जाएं कि वह श्रीराम के ही दूत हैं।
बहुभाषाविद् हनुमान
शोध बताता है कि रामायणकाल की प्रमुख भाषा संस्कृत थी, परन्तु हनुमानजी को विश्व की तमाम भाषाओं का ज्ञान था। लंका में माता सीता को श्रीराम का संदेश देने के लिए हनुमान अयोध्या के आम नागरिक की भाषा का प्रयोग करते हैं, ताकि सीता विश्वस्त हो जाएं कि वह श्रीराम के ही दूत हैं।
श्रीराम भक्त हनुमान का शाश्वत जीवन चरित्र वर्तमान परिप्रेक्ष्य में और प्रासंगिक हो गया है। ज्ञान, कर्म और भक्ति तीनों माध्यमों से हनुमान मानवता, शांति और जन कल्याण की शिक्षा प्रदान करते हैं। हनुमानजी के कर्म प्रसंग में जीवन में आने वाली समस्याओं का प्रभावी समाधान उपलब्ध है।
प्रो. नीरज शर्मा, शोध निर्देशक, सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय उदयपुर दूरदर्शिता से भविष्य का निर्धारण लंका से जाकर हनुमानजी माता सीता की खोज करने के साथ लंका की सैन्य शक्ति की पड़ताल भी करते हैं। हनुमान सटीक अनुमान लगाते हैं कि अगर युद्ध होता है तो रावण की सेना की सब जानकारियां रखने वाले व्यक्ति की दरकार रहेगी। इसके लिए विभीषण का चयन करते हैं। रावण द्वारा शांति प्रस्ताव नहीं मानने पर लंका दहन कर उनके योद्धाओं के आत्मविश्वास को कमजोर करते हैं। भविष्य में यही विभीषण मैत्री, राम सेना की जीत का आधार बनती है।