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नाम का नेशनल हाई-वे, नौ दिन में चले ‘अढ़ाई कोस

locationउदयपुरPublished: May 20, 2019 12:35:21 am

Submitted by:

Sushil Kumar Singh

नेशनल हाई-वे 58 ई पर एक साल में हुआ 16 फीसदी काम, भूमि अवाप्ति की मुआवजा राशि और जंगल में उलझी सड़क

udaipur

नाम का नेशनल हाई-वे, नौ दिन में चले ‘अढ़ाई कोस

डॉ. सुशील कुमार सिंह/ उदयपुर. प्रदेश के उदयपुर जिले को अंतरराज्जीय गुजरात सीमा से जोडऩे वाले कुंडाल-झाड़ोल- सोम नेशनल हाई-वे संख्या 58 (ई) को निर्माण प्रशासनिक ढिलाई और विवादित वन भूमि में उलझ गया है। डेढ़ साल में बनकर तैयार होने वाली सड़क पर बीते एक साल के दौरान महज ‘अढाई कोस निर्माण कार्य हुआ है, जो कि कुल निर्माण का महज 16 फीसदी है। भूमि अवाप्ति के बाद खातेदारों को अदा की जाने वाली मुआवजा राशि के वितरण में देरी की ढिलाई प्रशासनिक स्तर पर बरती गई तो दूसरी ओर प्रस्तावित मार्ग में आने वाले वन क्षेत्र को लेकर उच्चाधिकारियों ने अनदेखी की। स्वयं वनविभाग के स्तर पर कार्य को लेकर लगातार उदासीनता बरती जा रही है। खामियां ही कहेंगे कि समयाविधि में सड़क मार्ग की क्लीरेंस दिलाने में विफल रहे नेशनल हाई-वे के जिम्मेदारों को संवेदक एजेंसियों की खरी-खरी सुननी पड़ रही है।
दो एजेंसियों की जिम्मेदारी
स्वीकृत नेशनल हाई-वे 58 (ई) पर प्रस्तावित 91 किलोमीटर निर्माण कार्य के लिए दो निर्माण एजेंसियों को जिम्मेदारी दी गई है। किलोमीटर 0/0 से 43 /00 तक निर्माण के लिए स्वीकृत 187 करोड़ का कार्यादेश 28 जून 2018 को जारी हुआ। इसके तहत एजेंसी को २० दिसम्बर 2019 तक निर्माण कार्य पूरा करना है। दूसरी ओर किलोमीटर 43/900 से 91/०० तक प्रस्तावित 158 करोड़ लागत के निर्माण कार्य को लेकर 21 मई 2018 को कार्यादेश जारी हुआ। ये कार्य 11 नवम्बर 2019 को पूरा होना है। हकीकत में बीते करीब एक साल में इन एजेंसियों की ओर से निर्माण की चाल केवल १६ से 17 फीसदी रही है।
दो उपखण्ड में भूमि अवाप्ति
कार्यादेश एवं स्वीकृत सड़क के अनुसार सड़क विस्तारीकरण के लिए झाड़ोल व गिर्वा उपखण्ड क्षेत्र से निजी खातेदारों की भूमि अवाप्ति प्रक्रिया पूरी हुई। इसके तहत झाड़ोल उपखण्ड क्षेत्र में खातेदारों के नाम पर ४६ करोड़ का अवार्ड पारित हुआ। इसमें चुनावी ड्यूटी एवं अन्य कारणों के बीच 14.22 करोड़ की अवाप्ति राशि ही दी जा सकी है। दूसरी ओर उपखण्ड गिर्वा के लिए पारित 36.10 करोड़ की अवाप्ति राशि में 10.14 करोड़ का भुगतान हो चुका है तो गिर्वा के ही अधीन आने वाले दूसरे टुकड़े में अवाप्त भूमि के लिए पारित 41.02 करोड़ राशि में 26.10 करोड़ का भुगतान हो चुका है।
नए सिरे से चली फाइल
तख्मीना व सड़क मार्ग के हिसाब से पहले फेज की सड़क पर करीब १२ किलोमीटर व दूसरे फेज में ५.५ किलोमीटर सड़क पर वन भूमि पड़ रही है। इसमें उंदरी पार का जंगल भी शामिल है। वनविभाग ने उसके इलाके में यह कहते हुए निर्माण कार्य रोक दिया कि पूर्व में बनी हुई डामर सड़क भी वनभूमि में बन गई थी। चूंकि सड़क वन क्षेत्र में है। अब बिना अनुमति इस पर नया निर्माण संभव नहीं। दूसरी ओर सच यह है कि स्थानीय वनविभाग को लेकर तैयार फाइल को जयपुर व लखनऊ मुख्यालय ने यह कहते हुए लौटा दी कि आवश्यक दस्तावेज साथ में संलग्र नहीं है। अब ये फाइल फिर से शून्य से शुरू होगी।
रिप्रजेंटेशन से सहूलियत
कार्य प्रगति पर है। नायब तहसीलदार की अध्यक्षता में गठित कमेटी आगामी दिनों में शिविरों के माध्यम से पारित अवार्ड राशि का वितरण करेगी। कुण्डाल, नाई सहित शहर के समीपवर्ती इलाकों में रूपान्तरित भूमि मालिक एवं प्लांटिंग से जुड़े अधिकृत प्रतिनिधियों को सहयोग के तौर पर लिखित में उनका रिप्रजेंटेशन दे देना चाहिए। ताकि कार्य में सहूलियत हो सके।
लोक बंधू, उपखण्ड अधिकारी, गिर्वा
जारी हैं प्रयास
हाल ही में पदभार संभाला है। भूमि अवाप्ति व अवार्ड भुगतान प्रक्रिया को लेकर लगातार विभागीय तालमेल बनाकर व्यवस्था सुधार में प्रयासरत हैं। वनभूमि के समस्या निस्तारण के लिए निरंतर लगे हुए हैं। प्रद्युम्नसिंह, अधिशासी अभियंता, नेशनल हाई-वे
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