पुराविज्ञानी प्रो. शान्ति पप्पू और डॉ. कुमार अखिलेश ने प्रतिभागियों को पाषाण कालीन औजार बनाने की तकनीक समझायी। सर्वप्रथम डॉ. कुमार अखिलेश ने औजार निर्माण के लिए पाषाण के चयन का तरीका समझाया और बताया कि औजार निर्माण के आकार और प्रकार बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसलिए उसी प्रकार के पाषाण का चयन करना चाहिए। सर्वप्रथम उन्होंने पाषाण का कालीन हस्त कुल्हाड़ी ने निर्माण का तरीका समझाया। स्वयं ने संस्थान में आयातित पाषाण से हस्त कुल्हाड़ी का निर्माण किया।
संस्थान निदेशक प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने बताया कि 5 दिवसीय इस कार्यशाला के चौथे दिन प्रतिभागियों द्वारा निर्मित औजारों का सब्जियों और कपड़ों पर इसका प्रयोग किया जाएगा। कार्यशाला के संयोजक डॉ. कुलशेखर व्यास ने बताया कि कार्यशाला तीसरे दिन प्रारम्भ में बून्दी से पधारे स्वतन्त्र पुरातत्वविद् ओम प्रकाश शर्मा ने बून्दी और भीलवाड़ा के शैल चित्रों के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी। साथ ही डॉ. व्यास ने बताया कि इस राष्ट्रीय कार्यषाला में देष के विभिन्न भागों यथा जयपुर, बीकानेर, पाली, सीकर, चित्तौडग़ढ़, सुमेरपुर, भरतपुर, छतीसगढ़, कलकत्ता, मोहाली, बडौदा, कर्नाटक, आदि स्थानों के प्रतिभागी भाग ले रहे हैं।
कार्यशाला में इतिहासकारों के साथ डॉ. राजशेखर व्यास, ओमप्रकाश शर्मा, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, प्रो. प्रतिभा, डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. मनीष श्रीमाली, जाकीर खान, डॉ. राजेश मीणा, हितेष बुनकर, डॉ. कृष्णपालसिंह देवड़ा, निर्मला खरकवाल, दिवा खरकवाल, नैत्री व्यास, भौम्यषेखर व्यास, डॉ. हंसमुख सेठ, अजय मोची, नारायण पालीवाल, शोयब कुरैशी, कंचन लवानिया, पलक व्यास, कोयल राय, ओशिन शर्मा, स्वाती जैन, रुचि सोलंकी, हरिश बरेठा, रवि देवड़ा, अरविन्द देवड़ा, चिन्तन ठक्कर, मोनीष पालीवाल, मुकेश शर्मा, सुनील दत्त, गोपालवन जोगी, क्षिप्रा भंडारी, प्रांजल गर्ग, यादराम मीणा, आस्था शर्मा, महेन्द्र सिंह, कमलेश सेनी, निखिल श्रीवास्तव, शंकरलाल डांगी, कैलाश मेघवाल के साथ संस्थान के पुरातत्व पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों ने भाग लिया।
संस्थान निदेशक प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने बताया कि 5 दिवसीय इस कार्यशाला के चौथे दिन प्रतिभागियों द्वारा निर्मित औजारों का सब्जियों और कपड़ों पर इसका प्रयोग किया जाएगा। कार्यशाला के संयोजक डॉ. कुलशेखर व्यास ने बताया कि कार्यशाला तीसरे दिन प्रारम्भ में बून्दी से पधारे स्वतन्त्र पुरातत्वविद् ओम प्रकाश शर्मा ने बून्दी और भीलवाड़ा के शैल चित्रों के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी। साथ ही डॉ. व्यास ने बताया कि इस राष्ट्रीय कार्यषाला में देष के विभिन्न भागों यथा जयपुर, बीकानेर, पाली, सीकर, चित्तौडग़ढ़, सुमेरपुर, भरतपुर, छतीसगढ़, कलकत्ता, मोहाली, बडौदा, कर्नाटक, आदि स्थानों के प्रतिभागी भाग ले रहे हैं।
कार्यशाला में इतिहासकारों के साथ डॉ. राजशेखर व्यास, ओमप्रकाश शर्मा, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, प्रो. प्रतिभा, डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. मनीष श्रीमाली, जाकीर खान, डॉ. राजेश मीणा, हितेष बुनकर, डॉ. कृष्णपालसिंह देवड़ा, निर्मला खरकवाल, दिवा खरकवाल, नैत्री व्यास, भौम्यषेखर व्यास, डॉ. हंसमुख सेठ, अजय मोची, नारायण पालीवाल, शोयब कुरैशी, कंचन लवानिया, पलक व्यास, कोयल राय, ओशिन शर्मा, स्वाती जैन, रुचि सोलंकी, हरिश बरेठा, रवि देवड़ा, अरविन्द देवड़ा, चिन्तन ठक्कर, मोनीष पालीवाल, मुकेश शर्मा, सुनील दत्त, गोपालवन जोगी, क्षिप्रा भंडारी, प्रांजल गर्ग, यादराम मीणा, आस्था शर्मा, महेन्द्र सिंह, कमलेश सेनी, निखिल श्रीवास्तव, शंकरलाल डांगी, कैलाश मेघवाल के साथ संस्थान के पुरातत्व पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों ने भाग लिया।