यूं तो लकड़ी के खिलौने आदि बनाने में उदयपुर अव्वल रहा है। लेकिन गरबा का चलन गुजरात से जुड़ा होने के कारण डांडिया भी वहीं के ज्यादा बिकते हैं। हालांकि उदयपुर में भी इसका काफी निर्माण होने लगा है, लेकिन यहां डांडिया बनाना अभी भी मुश्किल भरा काम है। शहर में कारीगर इन दिनों डांडिया बनाने में जुट गए हैं। पहले यह हथकरघा उद्योग की तरह था, लेकिन अब काम मशीनों पर निर्भर हो गया है। मेवाड़ में लकड़ी की उपलब्धता में कमी के कारण लकड़ी की कला भी पिछडऩे लगी है। कारीगरों का कहना है कि यहां जो डांडिया बनाते थे, उस पर चपड़ी का रंग चढ़ाया जाता था। उनका रंग भी नहीं उतरता था। हालांकि लागत ज्यादा आती थी। अब डांडिया बनाते का काम कम हो गया है, क्योंकि गुजरात से काफी मात्रा में डांडिया कम दरों में मिल जाते हैं। मशीन से बने होने से लागत भी कम आती है। अब एलुमिनियम के डांडिये भी आने लगे हैं।
READ MORE: शारदीय नवरात्रि : आनेवाली हैं शेरोंवाली मां, उदयपुर में यूं हो रही स्वागत की तैयारियां, देखें तस्वीरें इनका कहना…
पहले गीनी की लकड़ी आती थी, लेकिन अब आनी बंद हो गई। पहले अच्छा काम चलता था, अब लकड़ी का काम कम हो गया है। थोड़ी बहुत लकड़ी खरीद कर लाते हैं और जरुरत के मुताबिक डांडिया बना लेते हैं।
पहले गीनी की लकड़ी आती थी, लेकिन अब आनी बंद हो गई। पहले अच्छा काम चलता था, अब लकड़ी का काम कम हो गया है। थोड़ी बहुत लकड़ी खरीद कर लाते हैं और जरुरत के मुताबिक डांडिया बना लेते हैं।
शंकरलाल कुमावत, कारीगर
शहर लकड़ी के खिलौने में मशहूर है, लेकिन लकड़ी की कमी व अधिक कीमत से कारोबार में कमी आई है। पहले कारीगर लकड़ी के डांडिया भी बनाते थे, लेकिन अब नही बनाते हैं, क्योकि लागत अधिक पड़ती है। अब अहमदाबाद से मंगवाते हैं।
शहर लकड़ी के खिलौने में मशहूर है, लेकिन लकड़ी की कमी व अधिक कीमत से कारोबार में कमी आई है। पहले कारीगर लकड़ी के डांडिया भी बनाते थे, लेकिन अब नही बनाते हैं, क्योकि लागत अधिक पड़ती है। अब अहमदाबाद से मंगवाते हैं।
दिलीप माधवा, व्यवसायी
डांडिया का चलन बढ़ गया है, लेकिन उदयपुर में इतने डांडिया नहीं बनते हैं, क्योंकि यहा पर लागत अधिक पड़ती है। बड़ौदा में थोक में बनते हैं तो लागत भी कम आती है। ऐसे में कम से कम लागत में उपलब्ध कराने के लिए लाते हैं।
डांडिया का चलन बढ़ गया है, लेकिन उदयपुर में इतने डांडिया नहीं बनते हैं, क्योंकि यहा पर लागत अधिक पड़ती है। बड़ौदा में थोक में बनते हैं तो लागत भी कम आती है। ऐसे में कम से कम लागत में उपलब्ध कराने के लिए लाते हैं।
हिमांशु जैन, थोक विक्रेता