उदयपुर

जिन्दा मोरों के आंकड़ों पर नहीं एतबार

दो साल पहले हुई गणना पर पक्षीविदों ने उठाए सवाल, राजस्थान में छह लाख, चित्तौडग़ढ़, सवाईमाधोपुर और टोंक में सिर्फ दो हजार मोर बचे

उदयपुरJan 21, 2020 / 12:55 pm

jitendra paliwal

जिन्दा मोरों के आंकड़ों पर नहीं एतबार

उदयपुर. देशभर में राष्ट्रीय पक्षी मोरों की गणना नहीं हो रही है, इस बीच राजस्थान में दो साल पहले हुई मोरों की गणना के आंकड़ों पर भी पक्षीविदों को भरोसा नहीं है। इन आंकड़ों को वे झूठा का पुलिंदा बताते हैं। आंकड़ों के मुताबिक चित्तौडग़ढ़, सवाईमाधोपुर और टोंक जिले में सिर्फ दो हजार से कुछ ज्यादा तादाद में ही मोर बचे हैं, जबकि सरकार का दावा है कि पूरे राजस्थान में गणना के समय छह लाख मोर जिन्दा हैं।
जानकार बताते हैं दो साल पहले वन और पशुपालन विभाग ने मोरों की गणना के लिए अलग-अलग सर्कुलर जारी करके पक्षीगणना में रुचि रखने वाले लोगों से सम्पर्क जरूर किया, लेकिन गणना नहीं हुई। पिछले दो साल से कोई गणना नहीं हुई है। एक जनहित याचिका पर हाइकोर्ट ने निर्देश के बाद 2018 में हुई गणना के अनुसार चित्तौडग़ढ़ जिले में 708, सवाईमाधोपुर में 817 और टोंक में 754 मोर ही हैं। 2018 के बाद गणना कोई नहीं हुई।
पक्षीविद् बताते हैं कि एकतरफ मोरों की गणना को लेकर सरकार बिल्कुल गम्भीर नहीं है, वहीं दूसरी ओर उनकी तस्करी लगातार हो रही है। मोर के शिकार के मामले भी दर्ज नहीं हो रहे हैं। वे बताते हैं कि एक मोर पंख यूरोपियन देशों में एक-एक हजार रुपए तक में बिकता है। मोरों की तस्करी नहीं रुक पा रही है। जो मामले दर्ज होते हैं, उनमें अनुसंधान अधिकारी जानबूझकर मामले को लटकाए रखते हैं, सही पैरवी नहीं करते हैं। ऐसे में शिकारियों के हौसले बुलंद होते हैं। वे बताते हैं कि वन्यजीव अपराध अधिनियम की धारा 9, 50,51 के तहत इसे गैर जमानती अपराध बताया गया है कि लेकिन विभाग के पास बताने के लिए संतोषप्रद आंकड़े ही नहीं हैं।
इनके पास नहीं है नफरी
दरअसल, गणना, मोर के शिकार पर कानूनी कार्रवाई और संरक्षण कार्यक्रम चलाने के लिए वन विभाग के पास पर्याप्त नफरी भी नहीं है। जानकार बताते हैं कि प्रतिदिन राष्ट्रीय पक्षी की हत्याएं होती हैं, लेकिन वन विभाग पांच लोगों को भी आज तक जेल नहीं भेज सका है। यह गैर जमानती अपराध है। वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी कानून का अध्ययन नहीं कर रहे, न उसकी गम्भीरता कार्रवाइयों में दिख रही है। तस्करों में कोई खौफ नहीं है।
कहां से आ गए इतने मोर?
राजस्थान में मोरों की गणना के सरकार द्वारा दिए आंकड़े झूठ का पुलिंदा है। इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि सवाईमाधोपुर में इतनी संख्या में झुण्ड में मोर नजर आते हैं, लेकिन आंकड़ों में बेहद कम हैं। जोधपुर और बाड़मेर में इतने ज्यादा मोर बताए हैं, जबकि वहां इतनी मौजूदगी में नहीं हो सकते हैं। राजसमंद इतना ज्यादा मार्बल खनन हो रहा है कि मोरों के आवास उजड़ गए। आंकड़ों में 50 हजार मोर कहां से आ गए? नाथद्वारा के आसपास थोड़े मोर हैं। श्रीनाथजी की मंदिर की जमीन, कुम्भलगढ़ व पाली क्षेत्र में ठीक-ठाक संख्या में मोर हैं।
बाबूलाल जांजू, पर्यावरणविद्, भीलवाड़ा
सर्कुलर जारी हुए, गणना का पता नहीं
दक्षिण राजस्थान के बांसवाड़ा-डूंगरपुर में पिछले कुछ सालों में मोरों की संख्या बढ़ी हैं। लोगों में जागरूकता बढ़ी है कि यह हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। कुछ सजाओं से भी यह संदेश गया है कि यह अपराध नहीं करना चाहिए। पौधरोपण से इनके हेबिटाट भी सुरक्षित हुए हैं। हर जिले की अपनी अलग-अलग स्थिति हो सकती है। अगर उनका आवास सुरक्षित है, तो बेशक संख्या बढ़ेगी। पशुपालन विभाग ने कोशिश की थी। वन विभाग ने सर्कुलर जरूर जारी हुए, गणना हुई या नहीं, यह मुझे जानकारी में नहीं है।
दीपक द्विवेदी, पक्षीविद्, बांसवाड़ा
उदयपुर सम्भाग की स्थिति
जिला- मोरों की तादाद
उदयपुर- 2313
डूंगरपुर- 25487
प्रतापगढ़- 4291
बांसवाड़ा – 13657

शेष जिलों के आंकड़े
अलवर- 12518
अजमेर- 8760
बाड़मेर- 87001
बारां-2353
भरतपुर- 10380
धौलपुर- 6210
करोली- 7119
भीलवाड़ा- 15825
बीकानेर- 12737
बूंदी- 2042
चूरू- 12043
दौसा- 20778
हनुमानगढ़- 2591
जयपुर- 4838
जैसलमेर- 23557
जालौर- 50828
झालावाड़- 968
झुन्झुनूं- 14804
जोधपुर- 95170
कोटा- 843
नागौर- 19811
पाली- 40311
राजसमंद- 50357
सीकर- 12571
सिरोही- 43145
श्रीगंगानगर- 1773
कुल- 607360
(वर्ष 2015 से 2018 के बीच हुई गणना के आंकड़े)

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