इन रियासतों के सिक्के संग्रह में धार, झाबुआ, दाहोद, छोटा उदयपुर, सैलाना, इंदौर, जयपुर, देवास, ग्वालियर, रतलाम, भोपाल, बड़ौदा, कुचबिहार, बांसवाड़ा, अहमदनगर, मैसूर, अलवर, बीकानेर, बूंदी, जावरा, किशनगढ़, मेवाड़, टोंक, सीतामऊ, उज्जैन, कोटा, जोधपुर, इचपुर, सलूम्बर, भीण्डर, चित्तौडगढ़़ समेत 35 रियासतों के सिक्कों का संग्रह है। रानी विक्टोरिया, पंचम जॉर्ज, सिक्स जॉर्ज, एडवर्ड, शाह आलम, मुगल काल सहित 2000 साल पुराने छत्रप राज्य का सिक्का भी शामिल है। परमारकालीन गढ़ैया सिक्के भी संग्रह में है।
ब्रिटिश काल के सभी सिक्के
औंकारलाल के पास ब्रिटिश काल में बने उन सिक्कों का संग्रह है, जो समय-समय पर बदलते रहे। इनमें 1862 का रानी विक्टोरिया क्वीन ब्रिटेन के सिक्के से लेकर 1945 में आए जार्ज षष्ठम के काल में जारी हुआ सिक्का भी है।
औंकारलाल के पास ब्रिटिश काल में बने उन सिक्कों का संग्रह है, जो समय-समय पर बदलते रहे। इनमें 1862 का रानी विक्टोरिया क्वीन ब्रिटेन के सिक्के से लेकर 1945 में आए जार्ज षष्ठम के काल में जारी हुआ सिक्का भी है।
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स्थानीय रियासतों के सिक्के त्रिशूलिया, ढ़ीगला तथा भीलाड़ी तांबे के सिक्के भी प्रचलित हुए। 1805-1870 के बीच सलूम्बर जागीर से पद्मशाही ढ़ीगला सिक्का चलाया गया, वहीं भीण्डर जागीर में तत्कालीन महाराजा जोरावरसिंह ने भीण्डरिया सिक्का चलाया। इनकी मान्यता जागीर लेन-देन तक ही सीमित थी। मराठा अतिक्रमण काल के मेहता प्रधान ने मेहताशाही मुद्रा चलाई, जो काफी सीमित संख्या में है। मेवाड़ में सोने, चांदी और तांबे के सिक्क प्रचलित रहे। ये सभी सिक्के भी संग्रह में है।
स्थानीय रियासतों के सिक्के त्रिशूलिया, ढ़ीगला तथा भीलाड़ी तांबे के सिक्के भी प्रचलित हुए। 1805-1870 के बीच सलूम्बर जागीर से पद्मशाही ढ़ीगला सिक्का चलाया गया, वहीं भीण्डर जागीर में तत्कालीन महाराजा जोरावरसिंह ने भीण्डरिया सिक्का चलाया। इनकी मान्यता जागीर लेन-देन तक ही सीमित थी। मराठा अतिक्रमण काल के मेहता प्रधान ने मेहताशाही मुद्रा चलाई, जो काफी सीमित संख्या में है। मेवाड़ में सोने, चांदी और तांबे के सिक्क प्रचलित रहे। ये सभी सिक्के भी संग्रह में है।
10वीं उत्तीर्ण करने का जुनून
सिक्का संग्रहकर्ता पालीवाल कामकाज के चलते 10वीं उत्तीर्ण नहीं कर पाए। इसके लिए इन्होंने 16 बार परीक्षा दी, फिर भी सफलता नहीं मिली। इन्होंने अपने जुनून को कम नहीं होने दिया। वे 68 वर्ष की उम्र में भी फिर 10वीं की परीक्षा देने की इच्छा रखते हैं।
सिक्का संग्रहकर्ता पालीवाल कामकाज के चलते 10वीं उत्तीर्ण नहीं कर पाए। इसके लिए इन्होंने 16 बार परीक्षा दी, फिर भी सफलता नहीं मिली। इन्होंने अपने जुनून को कम नहीं होने दिया। वे 68 वर्ष की उम्र में भी फिर 10वीं की परीक्षा देने की इच्छा रखते हैं।
‘सत्यकथा’ ने दिखाई राह पालीवाल ने बताया कि उन्हें सिक्के संग्रह करने का शौक 1975 में लगा, जब वे 25 वर्ष के थे। जब इन्होंने ‘सत्यकथा’ नामक पुस्तक में कुछ प्राचीन सिक्के हजारों रुपए में बिकने की कथा पढ़ी। इस कथा में डाक टिकट और पेंटिंग संग्रह का भी जिक्र था। इसके साथ ही शुरु हुआ जुनून अब भी कायम है।