व्यवस्था खामी ही है कि राष्ट्रीय ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा के माध्यम से प्रतिभाओं को तलाशने वाले एसआईईआरटी ने जिम्मेदारी से समझौता कर बहुत सी परीक्षा कॉपियों के बंडल को ही नहीं खोला। यह बण्डल आज भी सुई से सिले गए बण्डलों में पैक होकर रद्दी के भाव बिकने को तैयार हैं। प्रदेश में शिक्षा क्षेत्र में आदर्श माने जाने वाले संस्थान में इस तरह की गतिविधियों ने यहां के जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली को कठघरे में ला खड़ा किया है। इसी तरह पूरे संस्थान परिसर की सफाई व्यवस्था भी चरमराई हुई है।
READ MORE: नोटबंदी हो या जीएसटी, हर सूरत में टूरिस्ट की पहली पसंद लेकसिटी, अब दिवाली भी होगी रोशन, video गौरतलब है कि विशेषज्ञों से शोध और अध्ययन के नमूनों से तैयार होने वाली किताबों को राजकीय विद्यालयों की लाइब्रेरी में आदर्श बनाकर रखने के अलावा राजकीय विद्यालयों में अध्ययन ढर्रें को सुधारने के लिए इन किताबों का अलग ही महत्व है।
बरसों की खामियां उजागर
बरामदे में रखे हुए किताबों के ढेर ने प्रशासनिक स्तर पर बीते 10 साल में बरती गई लापरवाही को उजागर किया है। वर्ष 2005, 2007, 2008, 2011, 2012 और इसके बाद वाले वर्षों में छपाई गई सैकड़ों किताबें तो ऐसी हैं, जिनका कभी पन्ना तक पलट कर नहीं देखा गया। जबकि कुछ किताबों के बण्डल तो खोले ही नहीं गए।
कोशिश है बेकार न हो
हमारे प्रयास रहेंगे कि रद्दी हुई अधिकांश किताबों को आदर्श के तौर पर लाइब्रेरी में जगह दें। मैंने हाल ही में पदभार संभाला है। किताबें किस स्तर पर बर्बाद हुई, इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।
सुभाष शर्मा, उप निदेशक (विज्ञान-गणित व मूल्यांकन), एसआईईआरटी