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पद्मश्री डॉ. चंद्रप्रकाश देवल क्या बोल गए: हमारे नेता ही नहीं चाहते कि राजस्थानी भाषा बने

locationउदयपुरPublished: Jan 28, 2019 11:44:57 pm

Submitted by:

Sushil Kumar Singh

कटघरे में राजस्थानी भाषा की अस्मिता, उदयपुर की अनुश्री राठौड़ ने सवालों से मांगा जवाब

udaipur

पद्मश्री डॉ. चंद्रप्रकाश देवल क्या बोल गए: हमारे नेता ही नहीं चाहते कि राजस्थानी भाषा बने

उदयपुर. राजस्थानी की भाषाई और साहित्यिक परंपराएं इसकी विशिष्ट वाक्य रचनाओं और बोलियों को आवाज देती है। इसके बाद भी राजस्थानी अब तक भारतीय भाषाओं की संवैधानिक अनुसूची में अधिकारिक मान्यता का इंतजार कर रही है। समृद्ध भाषा के प्राचीन ग्रंथ अपने स्वामित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भाषा की अस्मिता सवालों के घेरे में है। उदयपुर शहर की साहित्यकार डॉ. अनुश्री राठौड़ ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के एक सत्र में राजस्थानी भाषा की अस्मिता कार्यक्रम के दौरान राजस्थानी भाषा को लेकर कुछ ऐसे सवाल उठाए। इससे पहले डॉ. राठौड़ ने कहा कि अपने ही घर में राजस्थानी उपेक्षा का शिकार हो रही है। जेएलएफ के इस सत्र में डॉ राठौड़ ने पद्मश्री डॉ. चंद्रप्रकाश देवल से बातचीत की। बातचीत के दौरान राठौड़ ने पूछा कि विधानसभा में सर्वसम्मति से संकल्प पारित होने के 15 साल बाद भी राजस्थानी मान्यता की मोहताज क्यो है? इतना ही नहीं जिस प्रदेश की अधिकांश आबादी राजस्थानी बोलती है। वहां राजस्थानी प्रथम ना सही द्वितीय राजभाषा का दर्जा नहीं पा सकी क्यों? अनुश्री के इस सवाल का जवाब देते हुए सीपी देवल ने कहा कि न भाषा में कोई कमी है । न बोलने वालों की संख्या में, बस कमी है तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की। देवल ने छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी का उदाहरण देते हुए कहा कि जब वे भाषाएं आठवीं अनुसूची से बाहर होते हुए भी प्रदेश की राजभाषा बन सकती है तो राजस्थान में राजस्थानी के लिए कहां दिक्कत है। बस यहां के जनप्रतिनिधि मातृभाषा का महत्व समझते ही नहीं हैं। 24 जनवरी से जयपुर के डिग्गी पैलेस में चल रहे अन्तराष्ट्रीय स्तर के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के सत्र में राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति, नामकरण, इसके समृद्ध भाषाई पक्ष और मातृभाषा के जीवन में महत्व को लेकर विस्तृत चर्चा की गई।

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