इतिहासकार जीएन माथुर के अनुसार मेवाड़ के प्रसिद्ध और प्रमाण ऐतिहासिक ग्रंथ वीर विनोद में चित्तौडगढ़़ के साका और जौहर का वर्णन है। रत्न सिंह को बंदी बनाए जाने का नहीं। मेवाड़ के प्रसिद्ध इतिहासकार रहे गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने भी पद्मावत को नाटकीय करार दिया था। केएस लाल की पुस्तक खिलजी वंश का इतिहास में भी इसे काल्पनिक माना गया है। डॉ. चंद्रशेखर शर्मा का कहना है कि किसी भी शोधपरक रचना और पुस्तक में इस तथ्य को नहीं स्वीकारा गया है कि रत्न सिंह बंदी बनाए गए। नैणसी भी लिखता है कि रावल रत्न सिंह युद्ध करते हुए शहीद हुए।
READ MORE : अब अगर फतहसागर पर करना है नौकायन, बर्ड वॉचिंग, रिसर्च व जलापूर्ति तो पहले करना होगा ये काम खिलजी का चित्तौडगढ़़ पर आक्रमण करने का कारण सामरिक दृष्टि से अहम दुर्ग को प्राप्त करना था ताकि दक्षिण में सैन्य अभियान चलाए जा सकें। रावल रत्नसिंह को बंदी बनाना, रानी को दर्पण में दिखाना सब कल्पनाए हैं, इनका इतिहास कोई लेना-देना नहीं है। गोरा-बादल रावल रत्न सिंह के साथ साका करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। भंसाली को इतिहास की जानकारी नहीं है।
प्रो. पीएस राणावत, पुरा धरोहर समन्वयक मेवाड़
प्रो. पीएस राणावत, पुरा धरोहर समन्वयक मेवाड़
गुहिल वंश के वंशज थे रावल रतन सिंह रावल रतन सिंह का जन्म 13वी सदी के अंत में हुआ था | उनकी जन्म तारीख इतिहास में कहीं उपलब्ध नहीं है | रतनसिंह राजपूतों की रावल वंश के वंशज थे जिन्होंने चित्ताैड़गढ़ पर शासन किया था | रतनसिंह ने 1302 ई. में अपने पिता समरसिंह के स्थान पर गद्दी सम्भाली , जो मेवाड़ के गुहिल वंश के वंशज थे |