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उदयपुर

PICS: राजस्थान का इतिहास लिखने वाले कर्नल टॉड ने की थी ये बड़ी भूल, इसलिए पद्मावती को लेकर हैं ये भ्रांतियां..

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6 years ago
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टॉड को अमीर खुसरो के खजाईनुल फुतूह के बारे में पता होता तो वह खिलजी के सैन्य अभियान पर अपनी कृति एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान में सही जानकारी देता। सही तथ्यों की जानकारी की कमी के चलते जायसी के काव्य पद्मावत ने उसे अधिक आकर्षित किया। इसी तथ्य को मेवाड़ के इतिहासकार भी पुष्ट करते हैं कि टॉड के त्रुटिपूर्ण लेखन के कारण इस भ्रांति का विस्तार हुआ कि खिलजी ने चित्तौडगढ़़ पर आक्रमण रानी पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए किया।
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इतिहासकार मानते हैं कि साम्राज्यवादी शासक खिलजी के लिए चित्तौडगढ़़ का दुर्ग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। दक्षिण, मालवा और गुजरात पर प्रभुत्व के लिए चित्तौडगढ़़ पर अधिकार रखना चाहता था। खिलजी के चित्तौडगढ़़ दुर्ग के आक्रमण के 224 साल बाद 1540 में जायसी ने पद्मावत की रचना की।
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1818 से 1822 के दौरान टॉड लंबे समय तक उदयपुर में रहा। जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ का डबोक स्थित परिसर टॉड का निवास था। इस दौरान राजस्थान के विभिन्न भागों से जुटाई गई शिलालेख, पांडुलिपि आदि सामग्री का टॉड ने उदयपुर में संकलन किया। उदयपुर से इस सामग्री को गुजरात बंदरगाह होते हुए इंग्लैंड ले गया। इंग्लैंड में 1829, 1832 और 1839 में तीन खंडों में इसका प्रकाशन किया गया।
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कर्नल टॉड ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के राजस्व कर्मचारियों की ओर से संकलित सूचनाओं को एनल्स में शामिल किया। टॉड के वर्णन को इतिहास के तथ्यों की कसौटी पर जांचा-परखा जाना जरूरी है। जैसे महाराणा प्रताप द्वारा घास की रोटी खाने का जिक्र मिलता है, जो बाद में साहित्य के माध्यम से लोकप्रिय हो गया, जबकि यह तथ्य सत्य से परे है। ऐसा ही रानी पद्मिनी के इतिहास को लेकर हुआ है। टॉड ने जायसी के पद्मावत को इतिहास समझ लिया। डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, इतिहासकार, मेवाड़
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जायसी सूफी विचारधारा का था। वह खुद कहता है कि मैंने तो एक रूपक के रूप में पद्मावत को लिखा। टॉड के एनल्स में काफी भ्रामक बातें लिखी हैं, जो सत्य से काफी दूर हैं। टॉड के लेखन में बहुत सी बातें ऐसी हैं, जो इतिहास सम्मत नहीं हैं। प्रो. केएस. गुप्ता, इतिहासकार, मेवाड़
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ऐतिहासिक पात्रों का किसी भी माध्यम से गलत चित्रण नहीं होना चाहिए। रानी पद्मिनी ने सतीत्व की रक्षा के लिए सैकड़ों महिलाओं के साथ जौहर किया। वह पूरे देश की मातृशक्ति के स्वाभिमान का प्रतीक है। प्रो. एसएस. सारंगदेवोत, अध्यक्ष, इतिहास बचाओ समिति
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टॉड ने जायसी की साहित्यिक कृति को ऐतिहासिक मानकर अपने लेखन में शामिल कर लिया। टॉड के भ्रांतिपूर्ण लेखन के कारण इस भ्रांति का प्रसार हुआ। टॉड के एनल्स में काफी गलतियां हैं, बहुत सारी बातें भ्रामक हैं। प्रो. जीएन. माथुर, इतिहासकार मेवाड़
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