scriptमेवाड़ में चमक बिखेर सकती है मोती की खेती, यहां सिखा रहे इसकी तकनीक | Pearl Agriculture Gram 2017 Udaipur | Patrika News

मेवाड़ में चमक बिखेर सकती है मोती की खेती, यहां सिखा रहे इसकी तकनीक

locationउदयपुरPublished: Nov 09, 2017 04:21:16 pm

Submitted by:

Bhagwati Teli

ग्राम में सिखाया जा रहा उत्पादन, पानी की प्रचुर मौजूदगी खेती में सहायक

pearl
भगवती तेली/उदयपुर. प्रदेश के उदयपुर संभाग में मोती की खेती की प्रचुर संभावनाएं हैं। संभाग के उदयपुर, राजसमंद, बांसवाड़ा जिलों में पानी की पर्याप्त उपलब्धता मोती उत्पादन में लाभकारी सिद्ध हो सकती है। इसी को देखते हुए ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट (ग्राम) में मोती की खेती की भी स्टॉल लगाई गई है। यहां पर किसानों को प्रायोगिक तौर पर मोती की खेती की तकनीक सिखाई जा रही है। नए ट्रेंड को लेकर जागरूक किया जा रहा है।
मोती की खेती पानी में होने वाला ऐसा व्यवसाय है, जिसकी तकनीक के बारे में पूरी जानकारी जरूरी है। छह चरणों में मोती उत्पादन होता है। इसके लिए प्रशिक्षण लेना जरूरी है। एक बार सफल होने पर किसान कम राशि में लाखों का मुनाफा ले सकता है। तैयार मोती की की बाजार में ऊंची कीमत मिल जाती है। इसका तैयार माल हल्का होता है और नष्ट नहीं होता। कृत्रिम या संवर्धित मोती का उत्पादन सीप या शंबुक में होता है। सीप में रेत, कीट जैसी कोई वस्तु प्रवेश कर जाती है और सीप उसे बाहर नहीं निकाल पाता तो मोती का निर्माण होता है। इस वस्तु पर चमकदार परतें जमा होती हैं जो मोती का स्वरूप लेती हैं। 15 से 20 माह में एक मोती तैयार होता है। मोतीपालकों को अनुदान भी दिया जाएगा। विभाग के अधिकारियों के अनुसार किसान को 50 फीसदी तक अनुदान दिया जाएगा, जिसे केन्द्र-राज्य मिलकर वहन करेंगे।
READ MORE: PICS: राजस्थान का इतिहास लिखने वाले कर्नल टॉड ने की थी ये बड़ी भूल, इसलिए पद्मावती को लेकर हैं ये भ्रांतियां..

ताजा पानी में मोती उत्पादन के 6 चरण

सीपों को एकत्र करना
पहले चरण में तालाब, नदी आदि से सीपों को एकत्र किया जाता है। इसके बाद इसे बरतन या बाल्टियों में रखा जाता है। इसका आदर्श आकार 8 सेंटीमीटर से अधिक होता है
अनुकूल बनाना
सीपों को इस्तेमाल से पहले दो-तीन दिन तक पुराने पानी में रखा जाता है, जिससे इसकी मांसपेशियां ढीली पड़ जाएं और सर्जरी में आसानी हो।
सर्जरी
सर्जरी स्थान के अनुसार तीन तरह से की जाती है। इसमें सतह का केन्द्र, सतह की कोशिका और प्रजनन अंगों की सर्जरी शामिल हैं। सर्जरी के लिए बीड या न्यूक्लियाई उपयोग में आते हैं, जो सीप के खोल या अन्य कैल्शियम युक्त सामग्री से बनाए जाते हैं।
देखभाल
सर्जरी के बाद इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है। मृत सीपों और न्यूक्लीयस को बाहर करके सीपों को हटा लिया जाता है।
तालाब में पालन
इसके बाद सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर दो सीप प्रति बैग बांस या पीवीसी की पाइप से लटकाकर तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। प्रति हेक्टेयर 20 से 30 हजार सीप पालन कर सकते हैं। उत्पादकता बढ़ाने के लिए तालाबों में जैविक और अजैविक खाद डाली जाती है। समय-समय पर सीपों का निरीक्षण किया जाता हैं। मृत सीपों को अलग कर लिया जाता है। 12 से 18 माह की अवधि में इन बैगों को साफ करने की जरूरत पड़ती है।
मोती का उत्पादन
पालन अवधि खत्म हो जाने के बाद सीपों को निकाल लिया जाता है। कोशिका या प्रजनन अंग से मोती निकाले जा सकते हैं। सतह वाले सर्जरी तरीका अपनाने पर सीपों को मारना पड़ता है। विभिन्न विधियों से प्राप्त मोती खोल से जुड़े एवं आधे होते हैं। कोशिका वाली विधि में ऐसा नहीं होता है।
आखिरी विधि से प्राप्त सीप काफ ी बड़े आकार के होते हैं।
pearl
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो