यूजीसी ने 2016 में विश्वविद्यालयों से शोधपीठ के प्रस्ताव मांगे थे। इस पर विश्वविद्यालयों में शोधपीठ स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सुखाडिय़ा व महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में महाराणा प्रताप शोधपीठ स्थापित की है। सुविवि की शोधपीठ इतिहास विभाग के तहत संचालित होगी। इतिहास विभाग की प्रो. दिग्विजय भटनागर को शोधपीठ का निदेशक बनाया गया है।
प्रो. दिग्विजय ने बताया कि कुलपति प्रो. जेपी शर्मा शोधपीठ के अध्यक्ष होंगे। इसके अलावा सात अन्य सदस्य होंगे जिसमें कला, साहित्य, संस्कृति से जुड़े प्रबुद्ध होंगे। ये परामर्श मंडल के रूप में काम करेंगे। विभाग के विद्यार्थी शोध व अध्ययन करेंगे।
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वंशावलियों पर रहेगा जोर
सुविवि शोधपीठ की निदेशक प्रो. भटनागर ने बताया कि प्राथमिकता पाण्डुलिपियों व वंशावलियों को संग्रहित करने पर रहेगी। इसके लिए लाइब्रेरी व संग्रहालय बनाना भी प्रस्तावित है। इसके अलावा विभिन्न कलाओं, साहित्य, संस्कृति का अध्ययन करेंगे।
वंशावलियों पर रहेगा जोर
सुविवि शोधपीठ की निदेशक प्रो. भटनागर ने बताया कि प्राथमिकता पाण्डुलिपियों व वंशावलियों को संग्रहित करने पर रहेगी। इसके लिए लाइब्रेरी व संग्रहालय बनाना भी प्रस्तावित है। इसके अलावा विभिन्न कलाओं, साहित्य, संस्कृति का अध्ययन करेंगे।
55 वर्ष बाद खुली प्रताप पर शोधपीठ
मेवाड़ के केन्द्र रहे उदयपुर के मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय ने 1962 में अपनी स्थापना के 55 वर्ष बाद महाराणा प्रताप पर शोधपीठ खोलने का निर्णय किया है, वह भी यूजीसी के कहने के बाद। दूसरी ओर विद्या प्रचारिणी संस्थान ने 1967 में ही प्रताप शोध प्रतिष्ठान की स्थापना कर प्रताप ही नहीं मेवाड़ के इतिहास पर 50 ग्रंथों का प्रकाशन किया है।
प्रताप के कृषि विकास कार्यों पर होगा शोध
एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने बताया कि विवि की शोधपीठ प्रसार शिक्षा निदेशालय के तहत संचालित होगी। इसके लिए अलग से बजट भी आवंटित किया है। प्रसार शिक्षा के निदेशक प्रभारी होंगे। इसके तहत महाराणा प्रताप के समय में किए गए कार्यों पर शोध होगा और उन्हें आमजन तक पहुंचाया जाएगा।
एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने बताया कि विवि की शोधपीठ प्रसार शिक्षा निदेशालय के तहत संचालित होगी। इसके लिए अलग से बजट भी आवंटित किया है। प्रसार शिक्षा के निदेशक प्रभारी होंगे। इसके तहत महाराणा प्रताप के समय में किए गए कार्यों पर शोध होगा और उन्हें आमजन तक पहुंचाया जाएगा।
READ MORE: Padmavati ही नहीं..भंसाली की फिल्मों का विवादों से है पुराना नाता … इन फिल्मों पर भी हो चुकी है controversy इसमें विशेष रूप से प्रताप की ओर से कृषि विकास, जैविक कृषि के प्रयासों पर काम होगा। साथ ही उनकी ओर से साहित्य व कला क्षेत्र में विकास के लिए किए गए कार्यों पर भी शोधकर लोगों को बताएंगे। अब तक प्रताप के युद्धकाल की जानकारी लोगों तक पहुंची हैं, चावण्ड में बिताए अन्ति दिनों पर भी शोध होगा। शोधपीठ मेवाड़ केन्द्रित शोध कार्य करेंगी।
ये कार्य करेंगी शोधपीठ
– देश की संस्कृति, साहित्य, कला, व इतिहास का अनुसंधान आधारित अध्ययन।
– पूर्व में हो चुके अनुसंधान का विश्लेषण करना।
– हस्तलिपियों व पाण्डूलिपियों का संग्रहण कर उस पर काम करना।
– ऐतिहासिक जानकारी को आमजन तक पहुंचाना।
– क्षेत्र विशेष की विशेष एतिहासिक चीजों की खोज करना।
– इतिहास से जुड़ी किसी धरोहर या घटना के पूर्णमूल्यांकन की मांग पर उसकी वास्तविकता का पता लगाना।
– पूर्व प्रचलित इतिहास से अलग परिणाम आने पर यूजीसी को भेजना सहित अन्य कार्य होंगे।
– देश की संस्कृति, साहित्य, कला, व इतिहास का अनुसंधान आधारित अध्ययन।
– पूर्व में हो चुके अनुसंधान का विश्लेषण करना।
– हस्तलिपियों व पाण्डूलिपियों का संग्रहण कर उस पर काम करना।
– ऐतिहासिक जानकारी को आमजन तक पहुंचाना।
– क्षेत्र विशेष की विशेष एतिहासिक चीजों की खोज करना।
– इतिहास से जुड़ी किसी धरोहर या घटना के पूर्णमूल्यांकन की मांग पर उसकी वास्तविकता का पता लगाना।
– पूर्व प्रचलित इतिहास से अलग परिणाम आने पर यूजीसी को भेजना सहित अन्य कार्य होंगे।