——- ऐसे किया गायबराजस्थान निजी विश्वविद्यालय अधिनियम 2005 के तहत प्रदेश के राज्यपाल को ये शक्तियां दी गई है। जबकि विभिन्न विवि के अधिनियम अलग-अलग समय में विधानसभा द्वारा पास किए गए हैं, इसमें संवेधानिक प्रमुख यानी राज्यपाल जिसे कानून में विजीटर शब्द दिया गया है, इसे इन सभी अधिनियमों में विलोपित कर दिया गया है। इससे निजी विवि की मनमानी बढ़ती गई। इसके साथ ही सरकार के प्रतिनिधियों को अपने कार्यक्रमों, बैठकों और जरूरी नियुक्तियों आदि के कार्यो में बुलाना बंद ही कर दिया। यहां तक की प्रवेश नीति, पाठ्यक्रमों की स्वीकृति, सीटों की संख्या, परीक्षा के ओर्डिनेंस, डिग्रियां देने का तरीका, वार्षिक प्रतिवेदन, वार्षिक ऑडिट आदि सभी कानूनी कार्यो से सरकार को सूचना देना बंद कर दिया। व प्रतिनिधियों को बुलाना बंद कर दिया। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि स्वयं की स्वच्छदंता के लिए गैर कानूनी तरीके से ये कदम उठाया गया है। – सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि निजी विश्वविद्यालयों ने ओने पौने दामों में रिजर्व दरों से कम दरों पर ये प्रतिष्ठान खोलने के लिए सरकार से जमीनें ली है, इसके अलावा अनुदान व अन्य कई राहतें भी ली गई है। तो उन पर संवैधानिक नजर भी जरूरी है।
—— राजस्थान निजी विश्वविद्यालय अधिनियम 2005 के तहत ये है विजीटर … – राजस्थान के राज्यपाल विश्वविद्यालय के विजीटर यानी आगंतुक होंगे।- डिग्री और डिप्लोमा प्रदान करने के लिए आगंतुक को विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में आमंत्रित किया जाता है। – विश्वविद्यालय के मामलों से संबंधित किसी भी कागज या जानकारी को आधिकारिक रूप से ले सकते है।- विजीटर को प्राप्त जानकारी के आधार पर यदि वह संतुष्ट है कि विश्वविद्यालय के किसी भी प्राधिकारी द्वारा लिया गया कोई भी आदेश, कार्रवाई या निर्णय इस अधिनियम या विधियों, अध्यादेशों, विनियमों और नियमों के अनुरूप नहीं है तो वह ऐसे निर्देश जारी कर सकता है, जो विश्वविद्यालय के हित में हो। विजीटर की ओर से जारी किए गए निर्देशों का विश्वविद्यालय द्वारा अनुपालन किया जाना अनिवार्य है।
——- ऐसे किया विश्वविद्यालयों ने खेल- निजी विवि खेल रहे कई वर्षों से ये खेल: – भूपाल नोबल्स विवि उदयपुर विधेयक 2015 में बिन्दु संख्या 11 में विवि के अधिकारी लिखे हैं, इसमें सबसे ऊपर विजीटर यानी राज्यपाल का उल्लेख होना चाहिए, लेकिन इसमें सबसे ऊपर चेयरपर्सन है व इसके नीचे प्रेसीडेंट, प्रति प्रेसिडेंट, प्रोवोस्ट, कुलानुशासक, संकायों के संकायाध्यक्ष, कुल सचिव, मुख्य वित्ता व लेखाधिकारी व अन्य के पदनामों का उल्लेख है।
– श्याम विवि लालसोट दौसा के 2018 में बनाए गए कानून में भी 11 वें बिन्दु में कमोबेश ऐसे ही पदनाम शामिल किए हैं, लेकिन इसमें कही विजीटर शब्द का उल्लेख नहीं है। – साई तिरूपति विवि उदयपुर के 2016 में बनाए गए कानून में, आरएनबी ग्लोबल विवि बीकानेर के 2015 में बने विधेयक में, पेसिफिक चिकित्सा विवि उदयपुर के 2014 के विधेयक में, माधव विवि पिंडवाड़ा सिरोही के 2014 के विधेयक में, मौलाना आजाद विवि विधेयक 2013 में, मोदी विज्ञान व प्रौद्योगिकी विवि लक्ष्मणगढ़ सीकर, विधेयक 2013 में, ओपीजेएस विवि चूरू विधेयक 2013, संगम विवि भीलवाड़ा विधेयक 2012 और गीतांजली विवि उदयपुर विधेयक 2012 में, पेसिफिक उच्चतर शिक्षा और अनुसंधान अकादमी विवि उदयपुर विधेयक 2010 में स्वीकृत किया गया। सभी से विजीटर शब्द को हटा दिया गया है।
—- – ऐसे होता है गड़बड़झालायूजीसी नियमानुसार नियुक्तियां नहीं होती, वेतन भत्ते पीएफ देय नहीं होता, व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में मनमर्जी से सीट भरी जाती है, बिना योग्यता के पीएचडी गाइड बनाए जाते है। पीएचडी डिग्रियों का व्यापार किया जाता है। किसी भी शिकायत की सही तरीके से जांच तक नहीं होती, यहां तक की केन्द्रीय जांच एजेंसियों सीबीआई, एन्फोर्समेंट डायरेक्टे्रट की गहन जांच के बाद भी मान्यताएं गर्वनर की निर्णायक अनुपस्थिति में सरकार इन पर कार्रवाई नहीं करती। इसका खामियाजा राजस्थान के निजी विवि के विद्यार्थियों को भविष्य में उठाना पड़ता है, कई निजी बोर्ड उनके मान्यता पर सवाल खड़ा करते हैं। कई विवि यूजीसी की टू एफ के अन्तर्गत मान्यता नहीं रखते व नेक से अधिमान्यता नहीं होती, इससे शिक्षा सामाजिक सरोकार की जगह गैर कानूनी व्यापार बनकर रह गई है। ऐसे में मनमाना शुल्क वसूला जाता है।