हैल्थ कार्ड से मिट्टी की पहचान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मृदा परीक्षण योजना की 15 फरवरी 2015 को गंगानगर के सूरतगढ़ से शुरूआत की थी। इसके अनुसार हर दो साल में मृदा की गुणवत्ता का एक बार परीक्षण करना है। जिले के अधिकतर किसानों से मिट्टी का नमूना लेने के बाद कृषि विभाग हैल्थ कार्ड बनाता है। इसमें पोषक तत्वों की मात्रा के साथ ही भूमि को और उपजाऊ बनाने की सलाह भी दी जाती है ताकि किसान भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाकर अधिक पैदावार ले सके।
मेवाड़ में मुख्य फसलें
मेवाड़ में मुख्यत: गेंहू, जौ, मक्का, चना, सरसो, मूंग, मोठ, उड़द, ज्वार, सोयाबीन, मूंगफली प्रमुख रूप से बोई जाती है। READ MORE : VIDEO : महाराणा प्रताप के दर पर लड़खड़ाए अमर सिंह के कदम, सीढ़ीयों पर गिरे, देखें वीडियो…
जांच का यह है पैमाना
केन्द्र सरकार ने मिट्टी परीक्षण के लिए पैमाना तय कर रखा है। इसके अनुसार सिंचित क्षेत्रों में 2.5 हैक्टेयर इकाई तथा असिंचित क्षेत्र में 5 हैक्टेयर को इकाई मानकर एक-एक नमूना लिया जाना है। क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक किसानों के खेतों से नमूने लेते हैं। पहाड़ी क्षेत्र विशेष रूप से उदयपुर, राजसमंद, चित्तौडगढ़़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, सिरोही में औसत जोत का आकार कम है, इसलिए यहां ढाई व पांच हैक्टेयर को मिट्टी की किस्म के अनुसार पैमाना माना गया है।
केन्द्र सरकार ने मिट्टी परीक्षण के लिए पैमाना तय कर रखा है। इसके अनुसार सिंचित क्षेत्रों में 2.5 हैक्टेयर इकाई तथा असिंचित क्षेत्र में 5 हैक्टेयर को इकाई मानकर एक-एक नमूना लिया जाना है। क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक किसानों के खेतों से नमूने लेते हैं। पहाड़ी क्षेत्र विशेष रूप से उदयपुर, राजसमंद, चित्तौडगढ़़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, सिरोही में औसत जोत का आकार कम है, इसलिए यहां ढाई व पांच हैक्टेयर को मिट्टी की किस्म के अनुसार पैमाना माना गया है।
मिट्टी में ये पोषक तत्व जरूरी
नाइट्रोजन- पौधों को गहरा हरा रंग प्रदान करता है। वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। यह फसल में दाना बनने में मदद करता है।
फॉस्फोरस- पौधों में अच्छा बीज बनता है। जड़ें तेजी से विकसित तथा मजबूत होती है। फल जल्दी आते हैं और दाने जल्दी पकते हैं।
पोटेशियम- जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है।
मैग्निशियम- पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है। इसकी कमी से पत्तियां आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं।
लौह तत्व- पौधों की कोशिकाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है। इसकी कमी से नई कलिकाएं जल्द खत्म हो जाती है। पौधे में बढ़वार नहीं हो पाती।
नाइट्रोजन- पौधों को गहरा हरा रंग प्रदान करता है। वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है। यह फसल में दाना बनने में मदद करता है।
फॉस्फोरस- पौधों में अच्छा बीज बनता है। जड़ें तेजी से विकसित तथा मजबूत होती है। फल जल्दी आते हैं और दाने जल्दी पकते हैं।
पोटेशियम- जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है।
मैग्निशियम- पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है। इसकी कमी से पत्तियां आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं।
लौह तत्व- पौधों की कोशिकाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है। इसकी कमी से नई कलिकाएं जल्द खत्म हो जाती है। पौधे में बढ़वार नहीं हो पाती।
मिट्टी का परीक्षण जारी है। पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि किसान अंधाधुंध रसायन का उपयोग नहीं करें। जैविक खाद ही इसका विकल्प है ताकि फसलों का उत्पादन दुगुना होने का सपना साकार हो सके। जिले में प्रथम व द्वितीय चरण में चार लाख से अधिक किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए हैं। – केएन सिंह, उपनिदेशक, कृषि विस्तार, उदयपुर