चुभन इसलिए : दुपहिया वाहन सवार हो या फिर पैदल राहगीर, कई बार मुश्किल हो जाती है। गिरना, चोटिल होना तो आम है। उड़ती धूल से खड़े तक नहीं हो सकते।
रात में खाना नहीं
कहने को उदयपुर पर्यटक सिटी है लेकिन यहां रात को पर्यटकों को खाना भी नहीं मिलता है। राज्य में कई छोटे जिले ऐसे है जहां पर रात में कई जगह बाजार खुला रहता है लेकिन शहर में 11 बजे के बाद सब बंद हो जाता है। कई बार सिर्फ कागजों में योजना बनी। खानापूर्ति के लिए फतहसागर के मुंबइया बाजार में 12 बजे तक की व्यवस्था की गई लेकिन पहली बार आने वाले पर्यटकों के लिए यह काफी दूर अनजान जगह है।
चुभन इसलिए : पर्यटक यहां से खराब छवि लेकर जाता है। रात को भोजन नहीं मिलने पर कई बार उसे भूखा ही सोना पड़ता है।
रात में खाना नहीं
कहने को उदयपुर पर्यटक सिटी है लेकिन यहां रात को पर्यटकों को खाना भी नहीं मिलता है। राज्य में कई छोटे जिले ऐसे है जहां पर रात में कई जगह बाजार खुला रहता है लेकिन शहर में 11 बजे के बाद सब बंद हो जाता है। कई बार सिर्फ कागजों में योजना बनी। खानापूर्ति के लिए फतहसागर के मुंबइया बाजार में 12 बजे तक की व्यवस्था की गई लेकिन पहली बार आने वाले पर्यटकों के लिए यह काफी दूर अनजान जगह है।
चुभन इसलिए : पर्यटक यहां से खराब छवि लेकर जाता है। रात को भोजन नहीं मिलने पर कई बार उसे भूखा ही सोना पड़ता है।
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शहर की बस्तियों से निकलने वाला गंदा पानी व सिवरेज आज भी सडक़ों पर पसरा रहता है। स्मार्ट सिटी में सिवरेज के नाम पर सडक़ें खोद दी लेकिन धीमी गति काम होने से आज भी लोग गंदगी को झेल रहे है। सिवरेज के नाम पर आज भी कई जगह सडक़े खुदी पड़ी है।
चुभन इसलिए : गंदगी से परेशान होने के अलावा टूटी सडक़ों से आए दिन हादसे हो रहे है।
शहर की बस्तियों से निकलने वाला गंदा पानी व सिवरेज आज भी सडक़ों पर पसरा रहता है। स्मार्ट सिटी में सिवरेज के नाम पर सडक़ें खोद दी लेकिन धीमी गति काम होने से आज भी लोग गंदगी को झेल रहे है। सिवरेज के नाम पर आज भी कई जगह सडक़े खुदी पड़ी है।
चुभन इसलिए : गंदगी से परेशान होने के अलावा टूटी सडक़ों से आए दिन हादसे हो रहे है।
सडक़ों पर आवारा पशुओं का राज
आवारा पशुओं को शहर से निकालकर अन्यत्र भेजने के मामले में हाइकोर्ट ने भी कड़े निर्देश दिए हैं तब कुछ पहल हुई, लेकिन फिर ढाक के वही तीन पात। विशेष रूप से जगदीश चौक, अम्बापोल, रावजी का हाटा, उदियापोल, सूरजपोल, शास्त्रीनगर चौराहा, देहली गेट, बापू बाजार, मल्लातलाई, यूनिवर्सिटी रोड, हिरणमगरी, गोवद्र्धनविलास सहित कई जगह यह समस्या है।
चुभन इसलिए : बच्चे व बड़े कई बार चपेट में आ जाते हैं, शहर की सडक़ों पर आमजन ही जोखिम लेता है।
आवारा पशुओं को शहर से निकालकर अन्यत्र भेजने के मामले में हाइकोर्ट ने भी कड़े निर्देश दिए हैं तब कुछ पहल हुई, लेकिन फिर ढाक के वही तीन पात। विशेष रूप से जगदीश चौक, अम्बापोल, रावजी का हाटा, उदियापोल, सूरजपोल, शास्त्रीनगर चौराहा, देहली गेट, बापू बाजार, मल्लातलाई, यूनिवर्सिटी रोड, हिरणमगरी, गोवद्र्धनविलास सहित कई जगह यह समस्या है।
चुभन इसलिए : बच्चे व बड़े कई बार चपेट में आ जाते हैं, शहर की सडक़ों पर आमजन ही जोखिम लेता है।
चहुंओर अतिक्रमण की भरमार
शहर के विस्तार के साथ ही अतिक्रमण ने लोगों को परेशान कर दिया। हाथ ठेले तो है ही, स्थायी दुकानदारों ने भी आगे सामान फैलाकर अतिक्रमण कर लिया। इससे कई बाजार संकरे हो गए, लोगों का चलना दुश्वार हो गया है। हिरणमगरी क्षेत्र, उदियापोल, गुलाबबाग रोड, फतहपुरा, अश्विनी बाजार सहित कई स्थानों पर अतिक्रमण है। धानमंडी तो जबर्दस्त अतिक्रमण की चपेट में है।
चुभन इसलिए : बाजार में आराम से चल नहीं सकते। गाड़ी पार्क नहीं हो सकती। जाम की समस्या आम हो गई।
करोड़ खर्च, समुचित उपचार नहीं
महाराणा भूपाल चिकित्सालय में संभाग भर के मरीज आने के बावजूद उन्हें समुचित उपचार मुहैया नहीं हो रहा है। करोड़ों रुपए की मशीनें लगने के बावजूद आज भी बीमार व्यक्ति की रिपोर्ट सही नहीं आती है। खुद चिकित्सक मरीजों को निजी लैब व बाहरी दवाई लेने की सलाह देते है। जीर्ण-शीर्ण होने से जनाना चिकित्सालय की शिफ्टिंग से गर्भवतियों की पीड़ा बढ़ गई है।
चुभन इसलिए : नि:शुल्क दवा व जांच व्यवस्था होने के बावजूद मरीजों को निजी लैब में जाकर पैसा खर्च करना पड़ रहा है। गरीब आदिवासी लोग पैसा खर्च नहीं कर पाने की स्थिति में पीड़ा झेल रहे हैं।
महाराणा भूपाल चिकित्सालय में संभाग भर के मरीज आने के बावजूद उन्हें समुचित उपचार मुहैया नहीं हो रहा है। करोड़ों रुपए की मशीनें लगने के बावजूद आज भी बीमार व्यक्ति की रिपोर्ट सही नहीं आती है। खुद चिकित्सक मरीजों को निजी लैब व बाहरी दवाई लेने की सलाह देते है। जीर्ण-शीर्ण होने से जनाना चिकित्सालय की शिफ्टिंग से गर्भवतियों की पीड़ा बढ़ गई है।
चुभन इसलिए : नि:शुल्क दवा व जांच व्यवस्था होने के बावजूद मरीजों को निजी लैब में जाकर पैसा खर्च करना पड़ रहा है। गरीब आदिवासी लोग पैसा खर्च नहीं कर पाने की स्थिति में पीड़ा झेल रहे हैं।