कटारिया ने उदयपुर के बापू बाजार बैंक तिराहे पर इस विधानसभा के चुनाव के भाषण में भी यह बात कही। उन्होंने कहा था कि वर्ष 1969 का राष्ट्रपति चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेसी के आधिकारिक उम्मीदवार. सामने थे, सामने तत्कालीन उप-राष्ट्रपति वीवी गिरी. गिरी थे और उन्हें इंदिरा का समर्थन हासिल था। इंदिरा प्रधानमन्त्री थी, उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव से पहले वाली शाम को अपील कर अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने को कहा। तब वीवी गिरी करीबी मुकाबले में चुनाव जीत गए, कांग्रेस दो टुकड़ों में टूट गई थी, इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस को कांग्रेस(आर) कहा गया. ओल्ड गार्ड्स की कांग्रेस को कांग्रेस (ओ) कहा, जिसका नेतृत्व कर रहे थे के. कामराज।
उस समय इंदिरा के मन में सुखाडिय़ा के लिए जो नाराजगी पैदा हुई, कम ना हो सकी। 1971 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए, इंदिरा के नेतृव वाली कांग्रेस (आर) को 352 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल हुआ. कांग्रेस (ओ) के खाते में आई महज 16 सीटें. राजस्थान में कांग्रेस (ओ) का खाता भी नहीं खुला. लेकिन कांग्रेस (आई) को मेवाड़ की तीन सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा। तब सुखाडिय़ा को मुख्यमंत्री बने 17 साल हो चुके थे. कांग्रेस के भीतर उनके खिलाफ खेमेबाजी तेज होने लगी, भारी दबाव बनाया गया और आखिर 9 जुलाई 1971 को सुखाडिय़ा ने इंदिरा गांधी के नाम इस्तीफा भेज दिया जिसे स्वीकार कर लिया गया। बाद में सुखाडिय़ा को राज्यपाल बनाकर कर्नाटक भेज दिया गया था।