ये पेड़ बहुत कम रखरखाव एवं कम पानी में भी विकसित होने के कारण इन्हें शहर के सौभागपुराए हिरणमगरीए सविना व रेलवे स्टेशन मार्ग सहित कई इलाकों में लगाया है। इनकी पत्तियां लम्बी एवं नुकीली नोक वाली होती हैं तथा फल गोल बटननुमा गुच्छों में लगते हैंए इस कारण इसे सामान्य भाषा में लेंसलीफ बटनवुड भी कहा जाता है। इसकी ऊंचाई 10ण्20 मीटर तक एवं तने की मोटाई 90 सेमी तक होती है। इनकी पत्तियों में टैनिन पाया जाता हैए यह मनुष्यों व जीव जंतुओं के लिए कोई उपयोगी नहीं है। इस पर कोई कीट व पक्षी भी नहीं बैठते हैं।

जड़ेे भूमिगत लाइनों व सीवर तक को पहुंचाती है नुकसान
इस पेड़ की जड़ें गहराई तक फैलती है और ताकतवर होने से जमीन में पानी की पाइप लाइनों तक को नुकसान पहुंचा सकती है। अरब देशों में तो भूमिगत पाइप लाइनों को नुकसान पहुंचाने के कारण इन पेड़ों को हटाना पड़ा। इसकी जड़े भूमिगत सीवरेजए बिजलीए टेलीफोन लाइन और यहां तक की भूमिगत जल प्रवाहए अंडरग्राउंड ड्रेनेज तक को अवरुद्ध कर सकती है। यह पौधा जैवविविधता के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
लोग नहीं लगाए घर व फॉर्म हाउस में
पर्यावरणविद डॉण् सुनील दुबे व चेतन पण्ड्या ने बताया कि कोनोकार्पस की दो प्रजातियां हैए कोनोकार्पस लेंसीफोलियस एवं कोनोकार्पस इरेक्टस। लेंसीफोलियस सोमालियाए तंजानिया के समुद्र तटीय क्षेत्रों में भी बहुतायत पाया जाता है। वहीं इरेक्टस उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका के ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में फ्लोरिडाएमेक्सिको से लेकर ब्राजीलए पेरू तक एवं पश्चिमी अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रों में सेनेगल से अंगोला तक पाई जाती है। यह पेड़ किसी काम का नहीं है। पर्यावरणविदों ने लोगों से अपील की है कि वे इसे अपने घरए फॉर्महाउस आदि पर न लगाएंए अन्यथा इससे कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।