—– पारम्परिक तरीके नदारद चुनाव प्रचार के पारम्परिक तरीकों तो जैसे इस गायब ही हो गए हैं। किसी प्रत्याशी के ना तो बड़े बैनर-पोस्टर नजर आ रहे हैं और ना ही शहर की गलियां और बाजार झंडे व पोस्टरों से अटे हैं। अलबत्ता, जब नेताजी प्रचार में निकलते हैं, तो उनके साथ चलने वाले कार्यकर्ता टोपी जरूर चढ़ा लेते हैं, तो कुछ झंडियां और बड़ी स्क्रीन लगाए वाहन दौड़ा रहे हैं।
READ MORE : वह फैसला जिसमें न राहुल गांधी की चली, न ही वसुंधरा राजे की… मुखौटे भी खोए
पिछले चुनावों में मोदी, शाह, राहुल के मुखौटे खूब चले थे। लेकिन, इस बार बड़ी सभाओं को छोड़ बाजार से ये चेहरे भी नदारद हैं। पहले तो चुनाव की घोषणा के साथ ही प्रचार सामग्री घर-बाजार पहुंच जाती थी। ऐसे में तो चुनाव चिह्न के बैज बच्चों से बड़ों तक अपने कपड़ों पर टांग लेते थे, लेकिन अब ये कहीं नजर नहीं आता।
पिछले चुनावों में मोदी, शाह, राहुल के मुखौटे खूब चले थे। लेकिन, इस बार बड़ी सभाओं को छोड़ बाजार से ये चेहरे भी नदारद हैं। पहले तो चुनाव की घोषणा के साथ ही प्रचार सामग्री घर-बाजार पहुंच जाती थी। ऐसे में तो चुनाव चिह्न के बैज बच्चों से बड़ों तक अपने कपड़ों पर टांग लेते थे, लेकिन अब ये कहीं नजर नहीं आता।
—–
गड़बड़ाया दिनचर्या गणित नेताजी के दिनचर्या का गणित भी गड़बड़ाया हुआ है। घर से ज्यादा पार्टी दफ्तर और शहरों की सडक़ों पर वह समय गुजार रहे हैं। खास बात ये कि जब केन्द्र से कोई बड़ा नेता या स्टार प्रचारक पहुंचता हैं, तो पत्रकारों से चर्चा या सभा के बाद बैठक देर रात तक चलती है। नेताजी भी पूरे दमखम में तडक़े घरों से निकल अंधेरा होने तक अपने क्षेत्र में दौड़-भागकर प्रचार कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर उनके परिजन और मित्रगण भी कंधे से कंधा मिलाते हुए मतदाताओं को रिझाने में जुटे हैं।
गड़बड़ाया दिनचर्या गणित नेताजी के दिनचर्या का गणित भी गड़बड़ाया हुआ है। घर से ज्यादा पार्टी दफ्तर और शहरों की सडक़ों पर वह समय गुजार रहे हैं। खास बात ये कि जब केन्द्र से कोई बड़ा नेता या स्टार प्रचारक पहुंचता हैं, तो पत्रकारों से चर्चा या सभा के बाद बैठक देर रात तक चलती है। नेताजी भी पूरे दमखम में तडक़े घरों से निकल अंधेरा होने तक अपने क्षेत्र में दौड़-भागकर प्रचार कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर उनके परिजन और मित्रगण भी कंधे से कंधा मिलाते हुए मतदाताओं को रिझाने में जुटे हैं।