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VIDEO : उदयपुर में इस गांव का रंग तेरस पर्व देश ही नहीं बल्कि विश्व में भी है प्रसिद्ध

locationउदयपुरPublished: Apr 01, 2019 02:01:34 pm

Submitted by:

madhulika singh

उदयपुर के रुन्डेडा में कल होगा जबरी गेेर का आयोजन, जुटेंगे के देश विदेश के सैलानी, रुन्डेडा के ग्रामीण पारम्परिक परिधानों में सजे-धजे आएंगे नजर

gair dance

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हेमन्त गगन आमेटा/उमेश मेनारिया. उदयपुर जिले के वल्लभनगर तहसील का ग्राम रुण्डेडा़ मुख्यतः अपनी तेरस के आयोजन के लिए देेेेश ही नहीं बल्कि विश्व मेंं प्रसिद्ध है जो कि होली के 13वेंं दिन रुंडेडा मेंं बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार यह पर्व ग्राम रुंडेडा मेंं 2 अप्रैल को मनाया जाएगा । मूलतः रुंडेडा मेंं मेनारिया ब्राह्मण, जाट एवं जणवा समाज द्वारा जबरी गेेर व तेरस खेली जाती है और जिसेे हजारोंं की संख्या मेंं लोग देखने के लिए यहांं आते हैंं। इस पर्व को देखने देश विदेश से पर्यटक भी शामिल होते हैंं।
रंगतेरस का इतिहास

कहा जाता है कि करीब साढे चार सौ वर्षोंं से गांव में यह त्यौहार महात्मा जत्ती कलदास जी की स्‍मृति में उत्साह व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है जिसको लेकर अभी से गांंव मेंं तैयारियांं शुरू हो चुकी है। पूरे गांंव को रोशनी से सजाया जा रहा है । गांव के उत्तर दिशा में स्थित धूणी पर ग्रामीण तीन ढोल, थाली और मादल के साथ पहुंंचते हैंं। यहाँ पूजा-अर्चना कर जत्तीजी का ध्यान कर उन्हें कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आमन्त्रित किया जाता है। जत्तीजी को आमन्त्रित करने के बाद तीनो ढोल के साथ ग्रामीण रवाना होते हैंं। वे मार्ग में डेमन बावजी को भी आमन्त्रित कर आशीर्वाद लेते हैंं और यहां से गांव के बड़े मंदिर पहुंंचते हैंं। यहांं भांग लेने की रस्म पूरी कर जत्तीजी की अमानत माला, चिमटा व घोड़ी लेकर गेेर नृत्य शुरू किया जाता है। कुछ देर नृत्य के बाद ग्रामीण यहांं से चामुंडा माता मंदिर, तलहटी मंदिर, निंबड़िया बावजी, गायत्री मंदिर, जूना मंदिर, गणपति मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, महादेव मंदिर, जणवा समाज का मन्दिर होते हुए वापस बड़ा मंदिर पहुंंचते हैंं
रुंडेडा के ग्रामीणों मे है सजने-संवरने का जबर्दस्त शौक

पूरे दिन कार्य होने के बाद एवं मन्दिर में दर्शन व पूजा-अर्चना के बाद ग्रामीण अपने-अपने घर पहुंंचते हैंं तब शुरू होता है लोगोंं का सजना सवरना। गांव के युवा और बुजुर्ग सभी मेवाड़ की शान सफेद कुर्ता, धोती और सिर पर पगड़ी धारण करते हैंं और इस दरम्यान ग्रामीण गांव में पहुंंचे मेहमानोंं व रिश्तेदारोंं का स्वागत कर उन्हें अपने घरोंं पर ले जाते हैंं और घरों मे मेहमानों की मेहमाननवाजी होती है। उसके बाद रात करीब नौ बजे ग्रामीण फिर चौक पर एकत्रित होते हैंं, जहांं ढोल की लय-ताल पर गेेर नृत्य शुरू होता है जो देर रात तक चलता है। इसमें बुजुर्गोंं सहित युवाओंं व बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। गांव की महिलाओ द्वारा पारम्परिक परिधानों में सज धज कर अपने सर पर फूलो का सेंवरा लेकर घूूमर नृत्य किया जाता है। महिलाओंं द्वारा पुरुषों के साथ एक ताल पर एक साथ गेर नृत्य का आयोजन किया जाता है । गेेर नृत्य के साथ ही तलवार व आग के गोलोंं से हैरतअंगेज कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैंं। यह कार्यक्रम सुबह करीब चार बजे तक जारी रहता है। कार्यक्रम का समापन आतिशबाजी व तोप चलाकर किया जाता है। आयोजन में गांव के मेनारिया ब्राह्मण, जाट व जणवा सहित सभी समाजो का सहयोग रहता है।

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