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उदयपुर की इस पंचायत को मिल चुका है ओडीएफ का खिताब, हकीकत जानकर आपको भी नहीं होगा यकीन

एक साल पहले खुले में शौच मुक्त घोषित पई पंचायत की हकीकत…कई मकानों में नहीं बने शौचालय, कहीं अधूरे तो कहीं काम नहीं आ रहे

उदयपुरJan 04, 2018 / 01:33 pm

Hansraj Sarnot

falasiya
हंसराज सरणोत/फलासिया . करीब एक साल पहले खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित पई पंचायत में स्वच्छता अभियान की तस्वीर मकसद से उलट है। ज्यादातर परिवार सिर्फ इसलिए शौचालयों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि पानी की खासी परेशानी है। कई परिवारों ने तो शौचालय बनवाए ही नहीं हैं। राजस्थान पत्रिका ने पहाडिय़ों पर छितराई गिर्वा ब्लॉक की इस पंचायत की टोह ली। स्वच्छ भारत अभियान की चौंकाने वाली जमीनी हकीकत सामने आई। केमरी फला जैसे पिछड़े इलाकों में शौचालय के नाम पर खानापूर्ति ही हुई है। सडक़ किनारे के कई मकानों में भी अब तक शौचालय नहीं हैं। मगरों पर बसे जिन परिवारों ने शौचालय बनवा लिए हैं, उनके लिए पानी का बंदोबस्त करना भारी चुनौती हो गया है।

सवाल : पिछला काम अधूरा, नई योजना में जोड़ा नहीं, फिर ओडीएफ कैसे?
पई में पांच साल पहले निर्मल भारत अभियान के तहत 22 सौ रुपए सहायता राशि वाले शौचालय बनवाने की कवायद हुई थी। फंड बेहद कम होने के बावजूद सरकारी दबाव में शौचालय निर्माण की प्रगति कागजों में चलती रही। हकीकत यह है कि जिन लोगों ने शौचालय के लिए गड्ढे खुदवाए थे, वे आज भी उसी हालत में हैं। कई ग्रामीणों के तो गड्ढे तक नहीं खुद पाए। कागजी प्रगति के शिकार ग्रामीणों की स्थिति अब ऐसी है कि न उगलते बन रहा है, ना निगल पा रहे हैं। ये परिवार स्वच्छ भारत अभियान के तहत 12 हजार रुपए का प्रोत्साहन लेने लायक भी नहीं रहे हैं। क्योंकि पहले ही निर्मल भारत अभियान के तहत उपयोगिता पत्र भरवाने के साथ इन्हें लाभार्थी माना जा चुका है। पड़ताल में सामने आया कि पंचायत क्षेत्र के 292 परिवारों को निर्मल भारत अभियान का लाभार्थी माना गया था। अब इन्हें स्वच्छ भारत अभियान में अपात्र बताया गया है। पाबा फला की गंगा देवी पत्नी कालूलाल रहलोत ऐसे ही पीडि़तों में शामिल है, जिसका मकान मुख्य सडक़ किनारे है। गंगादेवी ने बताया, हमारे पास पैसे नहीं थे, इसलिए शौचालय नहीं बनवा पाए। यह सब जानते हैं। अब पंचायती राज जनप्रतिनिधि भी ऐसे परिवारों को दोबारा लाभ नहीं दिलवा पा रहे। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि पिछली योजना के अधूरे काम के बावजूद पंचायत को ओडीएफ कैसे घोषित किया गया।
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चुनौतियां तो हैं, समाधान भी कर रहे हैं

चुनौतियां तो हमारे सामने हैं हीं। अभियान चलाते समय भी समस्याएं आई थीं। इसके लिए हैंडपंप लगाने जैसे काम किए थे। लोगों को मोटीवेट भी कर रहे हैं कि जिस हैंडपंप से पीने का पानी ला रहे हैं, वहां से व्यवस्था के प्रयास करें। पहले यह चुनौती ज्यादा थी, लेकिन अब लोग जागरूक हो रहे हैं। गिर्वा ब्लॉक में 72 प्रतिशत जियो टैगिंग हो चुकी है, काम नियमित चल रहा है।
-अजय आर्य, विकास अधिकारी, गिर्वा

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