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REPUBLIC DAY SPECIAL: राणा की माटी ने वक्त पर देश को कुर्बान किए अपने जिगर के टुकड़े

locationउदयपुरPublished: Jan 26, 2018 05:46:08 pm

Submitted by:

Mukesh Hingar

गणतंत्र दिवस विशेष, मेवाड़ वागड़ धरा से हुए है 25 बेटे शहीद

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उदयपुर . राणा की माटी का कण-कण वीरता का पर्याय है। मेवाड़-वागड़ की धरा के 1965 से अब तक 25 बेटों ने देश के नाम ख़ुद को न्योछावर किया है। वीर भूमि में उपजे ये लाल हंसते-हंसते देश पर क़ुर्बान हो गए। आइए उन्हें आज के दिन सभी मिलकर नमन करते है।
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1965 में दुश्मन के दांत किए खट्टे
बात भारत पाक युद्ध 1965 की हो तो हम राजसमंद जिले के एक पनियो का गुड़ा गांव के शहीद सिपाही महार सगत सिंह, पावटिया गांव के सिपाही महार अजायब सिंह और खुमानपुरा गांव के एएसपी गमेर सिंह की क़ुर्बानी कैसे भूल सकते है। जिन्होंने ख़ुद की जान देश पर लुटाकर दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए थे।

1971 का भी पाक को दिया सबक
1971 के भारत-पाक युद्ध में 19 सितम्बर 71 को राजसमंद जिले के पाटिया गांव के ईएमई रामलाल, 4 दिसम्बर 1971 में लोहारो का बाडिया के राइफलमैन बवानसिंह, 6 दिसम्बर 1971 को बड़ों की रेल कुकड़ा गांव के राइफलमैन त्रिलोकसिंह, 7 दिसम्बर 71 को डूंगरपुर जिले के भाटपुर के गॉर्डमेन रामजी, राजसमंद के कनियाखेड़ा गांव के ग्रेनेडियर चतर सिंह 8 दिसम्बर 71 को शहीद हुए। इसी प्रकार 11 दिसम्बर 71 को डूंगरपुर जिले के देवलपाल के सिग्नलमेन कालिया, उदयपुर जिले के उड़ावतो का गुड़ा के आर्टीलरी देवीसिंह 11 दिसम्बर 71 को, ऋषभदेव की घोड़ी गांव के ग्रेनेडियर नगजी 17 दिसम्बर 71 को अमर शहीद हो गए। इसी प्रकार राजसमंद जिले के लाम्बोड़ी गांव के ग्रेनेडयिर किशनसिंह, रामाठाकुर बाडय़िा गांव के ग्रेनेडय़िर केशरखान और उदयपुर के निचला मांडवा के गॉर्डमेन 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद होकर देश को विजयश्री दिला गए।

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– ऑपरेशन ब्लू स्टार : राजसमंद के सिरोला गांव के लांसनायक ओंकारसिंह 1 सितम्बर 1984 को शहीद हुए।
– ऑपरेशन पवन : राजसमंद के जेतपुरा के सिपाही नरेंद्रसिंह 17 अक्टूबर 87, और डूंगरपुर गलंदरपाल के हवलदार भरतलाल 27 मई 88 को शहीद हुए।
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नमन इन्हें भी जो
ऑपरेशन पवन राजसमंद के नायक रतनसिंह, ग्रेनेडय़िर भंवर, ऑपरेशन कारगिल में राजसमंद के सिपाही नारायणसिंह, उदयपुर के कांस्टेबल रतनलाल, ऑपरेशन मेघदूत में अर्चित वर्डय़िा, ले. अभिनव नागोरी बेटल केजूलिटी, राजसमंद के हवलदार निम्बसिंह और बांसवाड़ा के हर्षित भदोरिया भी अमर हो गए।
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