बारिश की देरी होने पर स्त्रियां फोड़ती हैं कृत्रिम सरोवर और मटकियां उदयपुर में मानसून की शुरुआत हो चुकी है और अब लोग अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं। अगर बारिश में देरी होती है तो लोग कई तरह के टोटके हमेशा से करते आए हैं। ये महाराणाओं के समय से ही चले आ रहे हैं। इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार उदयपुर में जब जब भी बारिश की कमी हुई है। सामान्य स्त्रियां इंद्र देव को रिझाने में बड़ा योगदान देती हैं। इसके तहत गांवों के बाहर जाकर गाजे-बाजे के साथ जाती हैं और कृत्रिम सरोवर बना कर फोड़ती हैं, कई गोबर व पानी से भरी हुई मटकियां गांव की सीमा पर ले जाकर फोड़ती हैं और इंद्र देव को न्योता जाता है। ये परंपरा सुंदरवास, खेमपुरा, खटीकवाड़ा, बड़ी होली, जोगीवाड़ा, कुमावतपुरा आदि सभी बस्तियों में निभाई जाती रही है। एक बार कुछ महिलाएं महाराणा फतहसिंह के पास भी इस परंपरा को निभाने के तहत पहुंची और महाराणा ने भी इस टोटके में भाग लिया। वहीं, खुले में दाल-बाटी बनाने व सामूहिक प्रसादी करने की परंपरा भी है। हाल ही मेनारिया समाज की ओर से ये परंपरा निभाई गई। इस तरह कई और भी दिलचस्प परंपराएं हैं जो आज भी निभाई जा रही हैं।
ये टोटके भी हैं कमाल के — – बारिश में विलंब हुआ तो श्मशान को हल से हांकने की परंपरा निभाई जाती है, जबकि श्मशान में कभी नहीं चलाया जाता है। ये परंपरा सिंहाड़ और कुराबड़ के बीच कायम है।
– उदयपुर में बीएन कॉलेज, चंपा बाग के पास हस्तीमाता को पूजा जाता है। माता को चढ़ावा चढ़ाया जाता है और गीत गाते हैं बरसो नी इंदरराजा, थाने कुण जी विलमाया…- मुस्लिम समाज में भी आब-ए-बारां किया जाता है। यानी बारिश की पुकार की जाती है।
– रामचरित मानस के पाठ भी किए जाते हैं। सोई जल, अनल, अनिल संघाता, होइ जलद जग जीवनदाता।- अत्यधिक विलंब होने व उमस होने की स्थिति में शिवलिंग को पानी में डुबोया जाता है।
– घर से राब लेकर पहाड़ी पर जाते हैं और वहीं राब इंद्र देव को चढ़ाकर पीते हैं। ये परंपरा गोगुंदा में डूंगरी राब के नाम से निभाई जाती है है। कोलर का गुड़ा में आज भी राब बना कर जाते हैं।- इसी तरह उजरणी परंपरा के तहत गांव के प्रत्येक देवता को न्योता जाता है, प्रसन्न किया जाता है।
– आषाढ़ माह में आषाढ़ी तोल कर के वर्षा और फसल उत्पादन का अनुमान लगाने की परंपरा भी प्रचलित हैं।